दिल्ली हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत प्रदान की है जिस पर 10 वर्षीय बच्ची से यौन शोषण का आरोप है। अदालत ने पाया कि पीड़िता के बयानों में विरोधाभास है और फॉरेंसिक साक्ष्य भी उसके आरोपों की पुष्टि नहीं करते।
न्यायमूर्ति रविंदर डूडेजा ने आदेश में कहा कि इस स्तर पर आरोपों की सुसंगतता पर कोई टिप्पणी करना उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि इससे ट्रायल प्रभावित हो सकता है। उन्होंने कहा, “हालांकि, यह स्पष्ट है कि इस चरण पर पीड़िता के बयानों में विरोधाभास है।”
अदालत ने यह भी कहा कि फॉरेंसिक जांच के अनुसार, प्रस्तुत सैंपल्स से कोई पुरुष डीएनए प्रोफाइल नहीं मिला, जिससे यह आरोप पुष्ट नहीं हो सका। “इस प्रकार, फॉरेंसिक साक्ष्य अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं कर रहे,” अदालत ने कहा।
मामले में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, सितंबर 2023 में पीड़िता ने अपने पिता पर घर में यौन शोषण का आरोप लगाया था। इसके बाद पिता को गिरफ्तार किया गया और बाद में उन्हें जमानत मिल गई। अक्टूबर 2023 में बच्ची की मां ने पुलिस को पत्र लिखकर बताया कि बच्ची ने अब असली घटना बताई है — कि दुष्कर्म उसके पिता ने नहीं बल्कि पड़ोस के एक नाई ने किया था।
आरोपी के वकील ने अदालत को बताया कि न तो प्राथमिकी में उसका नाम है, और न ही उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष प्रमाण है। उन्होंने दावा किया कि बच्ची ने पहले अपने पिता पर आरोप लगाए और बाद में मां के कहने पर याचिकाकर्ता को फंसाया गया। वहीं अभियोजन पक्ष ने कहा कि आरोपी ने जान से मारने की धमकी दी थी, इसीलिए बच्ची ने पहले उसका नाम नहीं लिया।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए निर्देश दिया कि यदि उसे गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे ₹30,000 के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत पर रिहा किया जाए।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी पीड़िता या उसके परिवार से किसी भी प्रकार का संपर्क न करे और न ही उन्हें धमकाए। साथ ही, उसे जांच में सहयोग देना होगा।
मामला अभी विचाराधीन है और अदालत ने ट्रायल को प्रभावित न करने के लिए विस्तृत टिप्पणियों से परहेज किया है।