दिल्ली हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग के चुनाव चिह्न आरक्षण आदेश को जनता पार्टी की चुनौती को खारिज किया

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जनता पार्टी की उस याचिका के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसमें भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा कुछ चुनाव चिह्नों को केवल मान्यता प्राप्त पंजीकृत राजनीतिक दलों के लिए आरक्षित करने के फैसले को चुनौती देने की मांग की गई थी।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की अध्यक्षता में पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय और हाईकोर्ट दोनों द्वारा पिछले निर्णयों में निर्णायक रूप से हल किया गया था। न्यायाधीशों ने दोहराया कि राजनीतिक दल विशिष्ट चिह्नों पर स्थायी अधिकार का दावा नहीं कर सकते, खासकर यदि चुनावों में उनका प्रदर्शन आवश्यक मानकों को पूरा नहीं करता है। न्यायालय के अनुसार, “प्रतीक किसी भी पार्टी की अनन्य संपत्ति नहीं हैं और खराब प्रदर्शन के आधार पर उन्हें जब्त किया जा सकता है।”

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न्यायालय का निर्णय याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद आया, जिन्होंने दावा किया कि जनता पार्टी को पहले से ही मान्यता प्राप्त है और इसलिए उसे अपने पारंपरिक प्रतीक – किसान के कंधे पर हल – पर अधिकार बनाए रखना चाहिए। वकील ने तर्क दिया कि चुनाव चिह्न आदेश भेदभावपूर्ण था, मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त दलों के बीच अनुचित रूप से अंतर करता था और तर्क दिया कि 6 प्रतिशत वैध वोट न मिलने के कारण मान्यता खोने से किसी पार्टी का प्रतीक नहीं खोना चाहिए।

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हालांकि, चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता सिद्धांत कुमार ने बताया कि यह मामला पहले ही सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा लाए गए इसी तरह के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुलझाया जा चुका है। कुमार के तर्क ने इस बात को रेखांकित किया कि अदालत ने पहले ही मिसाल कायम कर दी है, जिससे जनता पार्टी के मौजूदा दावे बेमानी हो गए हैं।

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