दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में एक व्यक्ति को व्यभिचार (adultery) के मामले से बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने अपने फैसले में महाभारत की द्रौपदी का उल्लेख करते हुए यह रेखांकित किया कि कैसे पुराने समय की पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं को पति की संपत्ति के रूप में देखती थी। कोर्ट ने कहा कि यह मानसिकता अब असंवैधानिक और अस्वीकार्य है।
यह मामला एक पति द्वारा दायर किया गया था, जिसने अपनी पत्नी पर आरोपी व्यक्ति के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगाया था। पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी और आरोपी एक साथ दूसरे शहर गए, होटल में ठहरे और उसके (पति) की अनुमति के बिना यौन संबंध बनाए। इस शिकायत पर पहले मजिस्ट्रेट कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था, लेकिन सत्र न्यायालय ने उस आदेश को पलटते हुए फिर से समन जारी किया।
न्यायमूर्ति कृष्णा ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का विस्तृत उल्लेख किया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया गया था। यह धारा एक पुरुष द्वारा विवाहित महिला के साथ संबंध बनाने को अपराध मानती थी, परंतु केवल इस आधार पर कि महिला के पति की अनुमति नहीं ली गई। सुप्रीम कोर्ट ने इसे महिला की गरिमा और उसकी व्यक्तिगत agency का उल्लंघन बताया था।
कोर्ट ने महाभारत में द्रौपदी की स्थिति को उद्धृत करते हुए कहा, “द्रौपदी को उसके पति युधिष्ठिर ने जुए में दांव पर लगा दिया था, जबकि उनके अन्य चार भाई मूकदर्शक बने रहे। द्रौपदी की गरिमा की कोई आवाज नहीं थी और वह स्वयं निर्णय नहीं ले सकी।”
17 अप्रैल के अपने निर्णय में न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि व्यभिचार को अपराध मानने वाला यह पुराना कानून विवाह की पवित्रता की रक्षा नहीं करता था, बल्कि केवल पति के ‘स्वामित्व के अधिकार’ को मान्यता देता था। उन्होंने कहा कि इस सोच की जटिलता को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने भी रेखांकित किया था।
अपने फैसले में उन्होंने कहा, “यह पूरा खंड (धारा 497) इसी सोच पर आधारित था कि महिला पति की संपत्ति है और यदि किसी अन्य पुरुष ने उस ‘संपत्ति’ का प्रयोग किया, लेकिन पति की अनुमति से किया, तो अपराध नहीं है।”