दिल्ली हाईकोर्ट ने मंडोली जेल में कैदियों के साथ मारपीट, डिजिटल माध्यम से वसूली और जेल प्रशासन की कथित लापरवाहियों पर कड़ी चिंता व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि ऐसी आरोपों से “गंभीर चिंता” पैदा होती है और इनकी निष्पक्ष जांच ज़रूरी है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने ये टिप्पणियाँ उस याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसमें फ़रमान नाम के एक अंडरट्रायल कैदी ने आरोप लगाया है कि उसे और अन्य कैदियों को जेल अधिकारियों के इशारे पर पैसे वसूलने के लिए प्रताड़ित और पीटा जा रहा है।
अदालत ने 7 नवंबर के आदेश में कहा कि इस याचिका को CBI की अदालत-निगरानी वाली जांच में शिकायत के रूप में लिया जाए, जो इसी तरह के आरोपों पर पहले से जारी है।
न्यायाधीश ने कहा कि जांच अधिकारी प्रारंभिक जांच के बाद यह तय कर सकते हैं कि क्या अलग FIR दर्ज होनी चाहिए या आरोपों की जांच मौजूदा केस में ही की जा सकती है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के आरोप प्रथमदृष्टया सामग्री से समर्थित प्रतीत होते हैं और इन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता।
अदालत ने टिप्पणी की:
“जेल परिसर के प्रशासन और निगरानी में कथित चूकें, खासकर कैदियों की सुरक्षा और उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार से जुड़ी, गंभीर चिंता के विषय हैं। राज्य की संरक्षण में रह रहे व्यक्तियों के जीवन और कल्याण को खतरे में डालने वाली कोई भी चूक उचित तंत्र के ज़रिए निष्पक्ष जांच की मांग करती है।”
फ़रमान ने आरोप लगाया कि 7 जून 2024 को कुछ कैदियों ने उसे पीटा और यह हमला जेल अधिकारियों के निर्देश पर किया गया। उसने दावा किया कि पूरी घटना CCTV में रिकॉर्ड हुई है।
उसने यह भी कहा कि जेल के भीतर डिजिटल भुगतान के ज़रिए पैसों की वसूली का बड़ा पैटर्न है और कैदी हिंसा की धमकी देकर भुगतान करने को मजबूर किए जाते हैं।
उसके मुताबिक, लगातार “काफी धनराशि” देने के बाद भी प्रताड़ना कम नहीं हुई, बल्कि और बढ़ गई।
सरकार की ओर से पेश वकील ने आरोपों को खारिज किया और बताया कि हाईकोर्ट की ही एक डिवीजन बेंच के 28 अक्टूबर के आदेश के बाद CBI ने पहले ही FIR दर्ज कर ली है।
FIR भारतीय दंड संहिता की धारा 386 और 120B, भारत न्याय संहिता की धारा 61(2) सहपठित धारा 308(5), और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत दर्ज की गई है।
दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने भी संभावित प्रशासनिक चूकों की जांच के लिए एक अधिकारी नियुक्त किया है।
याचिकाकर्ता ने मंडोली जेल से किसी अन्य जिला जेल में स्थानांतरण की मांग की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे इस चरण में स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
हालाँकि, अदालत ने कहा कि यदि जांच या पूछताछ के नतीजे उसके आरोपों को सही ठहराते हैं, तो वह उपयुक्त मंच पर राहत मांगने के लिए स्वतंत्र होगा।




