सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि आपराधिक गतिविधियों में लिप्त दोषी ठहराए गए व्यक्ति को 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा होती है। और उसकी दोषसिद्धि पर रोक नही लगाई जाती है तो ऐसा व्यक्ति जन प्रतिनिधतव्य कानून के तहत चुनाव में खड़े होने के आयोग्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 के केरल लोकसभा चुनाव में केरल की एर्नाकुलम संसदीय सीट पर सरिता एस नायर का नामांकन पत्र निरस्त करने के निर्वाचन अधिकारी के निर्णय के खिलाफ दायर अपील पर सुनाए गए फैसले पर यह टिप्पणी दी।
नायर का नामांकन पत्र निरस्त होने का मामला-
कोर्ट ने सरिता नायर की अपील खारिज कर दी । निर्वाचन अधिकारी ने केरल सौर घोटाले से संबंधित आपराधिक मामलो में सरिता को आरोपी ठहराय जाने और सजा होने के मद्देनजर उनका नामांकन पत्र निरस्त कर दिया था। एर्नाकुलम सीट पर कांग्रेस के हिबी एडेन विजयी हुए थे। सरिता नायर ने वायनाड संसदीय सीट पर कांग्रेस के राहुल गांधी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने के लिए दाखिल नामांकन पत्र इसी आधार पर निरस्त किये जाने को चैलेंज करते हुए अपील दायर की थी । दायर अपील को 2 नवंबर को कोर्ट ने खारिज कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ,एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की संयुक्त पीठ ने अनिता नायर के इस दलील को अस्वीकार कर दिया की उसका नामांकन पत्र निरस्त करना गलत था। दरअसल तीन साल की सजा की अपील को कोर्ट ने निलंबित कर दिया था। और कहा था कि सजा के अमल का निलंबन दोषसिद्दी की स्थिति नही बदलता है। इसलिए ऐसा व्यक्ति चुनाव लड़ने के आयोग्य रहता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाइकोर्ट की इस व्यवस्था की आलोचना की है। और कहा कि नायर की याचिका में तीन त्रुटियों उचित सत्यापन अधूरी प्राथना और पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोप का सुधार नही किया जा सकता था।
कोर्ट ने कहा हुई त्रुटियां सुधार योग्य थीं और याचिकाकर्ता को उन्हें दूर करने का अवसर नही दिया जाना चाहिए था। कोर्ट ने कहा की जनप्रतिनिधितव्य कानून की धारा 8(3) के प्रवधान में साफ है की सजा के अमल पर रोक लगाना अयोग्यता के दायरे से बाहर निकलने के लिए पर्याप्त नही है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सजा के अमल का निलम्बन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 के संदर्भ में पढ़ना होगा। इस प्रावधान के अंतर्गत सजा नही बल्कि सजा पर अमल निलंबित किया गया है।