भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने शुक्रवार को कहा कि न्यायपालिका जनता की आकांक्षाओं और संविधान में निहित आदर्शों के बीच सेतु का कार्य करती है। वे काठमांडू में आयोजित नेपाल-भारत न्यायिक संवाद 2025 में बोल रहे थे।
सीजेआई गवई ने कहा कि न्यायालय केवल विवादों का निपटारा करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनका दायित्व न्याय, समानता और मानव गरिमा के सिद्धांतों को व्यवहार में सुनिश्चित करना भी है। उन्होंने कहा, “दोनों देशों में न्यायपालिका जनता की आकांक्षाओं और संविधान में निहित आदर्शों के बीच सेतु का कार्य करती है।”
गवई ने कहा कि न्यायपालिका लोकतांत्रिक नींव की संरक्षक होने के साथ-साथ सुधारों को प्रोत्साहित करने वाली उत्प्रेरक भी है। समकालीन चुनौतियों के आलोक में कानून की व्याख्या करके, अदालतें न केवल शासन को दिशा दे सकती हैं, बल्कि जनविश्वास को भी प्रेरित कर सकती हैं और उन मूल्यों को सुदृढ़ कर सकती हैं जिन पर लोकतंत्र टिका है।

उन्होंने कहा, “यह बदलती भूमिका न्यायपालिका के पारंपरिक कार्यों का व्यापक विस्तार है, जो पहले केवल कानून की सख्त व्याख्या और प्रवर्तन तक सीमित था। आज न्यायपालिका से अपेक्षा की जाती है कि वह केवल पाठ आधारित व्याख्या से आगे बढ़कर कानून के गहरे उद्देश्यों और परिणामों से भी जुड़े।”
सीजेआई गवई ने यह भी रेखांकित किया कि सर्वोच्च न्यायालय ने केवल न्यायिक फैसलों के माध्यम से ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक और संस्थागत सुधारों के जरिए भी लोकतंत्र को मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि मामले प्रबंधन, डिजिटल अवसंरचना और न्याय तक पहुंच बढ़ाने की पहलों ने न्यायपालिका को “उत्तरदायी, दक्ष और समावेशी” बनाने की दिशा में योगदान दिया है।
भारत में डिजिटल विस्तार का उल्लेख करते हुए गवई ने बताया कि अब 95 प्रतिशत से अधिक गांव इंटरनेट से जुड़े हैं और 2014 से 2024 के बीच इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 280 प्रतिशत बढ़ी है। कोविड-19 महामारी ने भी तकनीकी सुधारों को तेज किया, जिससे न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी आधारित सुधारों को बढ़ावा मिला। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका की भूमिका, चाहे वह न्यायिक हो या प्रशासनिक, उभरती चुनौतियों का समाधान करने और न्याय तक पहुंच को प्रोत्साहित करने की दिशा में विकसित हुई है।”
गवई ने कहा कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में न्यायालय एक-दूसरे से सीखते हुए अधिक प्रभावी बन सकते हैं। उन्होंने कहा, “ज्ञान और अनुभवों का ऐसा आदान-प्रदान आधुनिक न्यायपालिकाओं की वृद्धि और प्रभावशीलता के लिए आवश्यक तत्व बन गया है।”