भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने शुक्रवार को उस धारणा पर प्रतिक्रिया दी कि सुप्रीम कोर्ट केवल मुख्य न्यायाधीश की अदालत बनकर रह गई है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत में समावेशी और सामूहिक निर्णय लेने की परंपरा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने और उनके पूर्ववर्तियों — जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस संजीव खन्ना — ने मिलकर प्रयास किए हैं।
नागपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में बोलते हुए सीजेआई गवई ने कहा,
“यह धारणा बन रही है कि सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश की अदालत है, न कि सभी जजों की अदालत। लेकिन मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस संजीव खन्ना और मैंने इस धारणा को दूर करने का प्रयास किया है। जस्टिस ललित के मुख्य न्यायाधीश बनने के अगले ही दिन उन्होंने फुल कोर्ट मीटिंग बुलाई थी। मैंने भी पदभार संभालने के तुरंत अगले दिन फुल कोर्ट मीटिंग की और सभी निर्णय सभी जजों की राय लेकर ही लिए।”
“न्यायिक सक्रियता आवश्यक, लेकिन अतिरेक खतरनाक”
न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं पर बोलते हुए सीजेआई गवई ने कहा,
“मैं हमेशा मानता हूं कि जब कार्यपालिका और विधायिका विफल हो जाती है, तब न्यायपालिका को नागरिकों के अधिकारों के रक्षक के रूप में आगे आना पड़ता है। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि तीनों संस्थाएं — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — को अपने-अपने सीमित क्षेत्र में कार्य करना चाहिए। न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी, लेकिन वह न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलनी चाहिए। मैं आज भी उसी सिद्धांत में विश्वास रखता हूं।”

विनम्र पृष्ठभूमि और समावेशिता के मूल्य
सीजेआई गवई ने अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा,
“मैंने अपने पिता के निर्णय का अनुसरण करते हुए वकालत को अपनाया। यह मेरी मां की मेहनत थी जिसने मुझे आगे बढ़ाया। हमारे परिवार की पृष्ठभूमि साधारण थी, लेकिन समावेशिता का जो मूल्य मुझे मिला, वही मेरे जीवन की दिशा बना।”
उन्होंने पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) बेंच पर अपने कार्यकाल के दौरान नागपुर-जबलपुर हाईवे परियोजना में किए गए हस्तक्षेप को भी याद किया। उन्होंने बताया कि कैसे अदालत ने न केवल सड़क परियोजना को पूर्ण कराया, बल्कि पारिस्थितिकी और वन्यजीवों के हितों की रक्षा भी सुनिश्चित की।
“हमने विकास के सतत मॉडल को अपनाया। हमने यह सुनिश्चित किया कि सड़क बने, लेकिन जंगल में रहने वाले जानवरों को सुरक्षित आवाजाही के लिए लंबे सबवे (अंडरपास) भी बनाए जाएं ताकि वे यह महसूस करें कि वे उसी जंगल में चल रहे हैं।”
न्यायाधीशों के लिए ‘वन रैंक, वन पेंशन’
सीजेआई गवई ने न्यायपालिका में सेवा दे चुके सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए ‘वन रैंक, वन पेंशन’ लागू करने को अपने सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक बताया।
“मैं हैरान रह गया जब मुझे पता चला कि एक हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को ₹7,000 से ₹8,000 पेंशन मिल रही थी। यह अत्यंत असंगत था। मैंने ‘वन रैंक, वन पेंशन’ का सिद्धांत लागू किया।”
न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता का दावा
न्यायिक नियुक्तियों को लेकर पारदर्शिता के सवाल पर सीजेआई गवई ने कहा,
“हम पारदर्शिता का पालन कर रहे हैं। चयन के मामलों में वरिष्ठता और योग्यता को बनाए रखने का प्रयास करते हैं। जस्टिस चंदूरकर इसका जीवंत उदाहरण हैं।”
समारोह में उपस्थित गणमान्य व्यक्ति
इस समारोह में कई प्रमुख न्यायिक और विधिक अधिकारी उपस्थित रहे, जिनमें पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, प्रशांत बी वराले और अतुल एस चंदूरकर, बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे, बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनिल एस किलोर और नितिन डब्ल्यू सांब्रे, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तथा महाराष्ट्र के महाधिवक्ता डॉ. बीरेंद्र सराफ शामिल थे।