बलात्कार पीड़िता की गवाही की कानूनी मान्यता को दोहराते हुए, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के अपहरण और यौन शोषण के मामले में आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि “केवल पीड़िता की गवाही के आधार पर भी आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है, इसके लिए अन्य साक्ष्य की पुष्टि आवश्यक नहीं होती।”
यह फैसला क्रिमिनल अपील संख्या 1724/2023 में दिया गया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने आरोपी राजेलाल मेरावी (27 वर्ष), निवासी ग्राम सिंगबोरा, जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, की अपील को आंशिक रूप से मंजूरी दी। कोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्षों के कठोर कारावास में बदल दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
11 नवंबर 2021 की रात, एक 13 साल, 8 महीने और 23 दिन की नाबालिग लड़की अपने घर के बाहर खेल रही थी, तभी आरोपी राजेलाल मेरावी ने कथित रूप से उसका अपहरण कर लिया। अभियोजन के अनुसार, आरोपी ने लड़की का मुंह दुपट्टे से बांधा और उसे जबरन अपने घर ले जाकर दो बार बलात्कार किया।

अगली सुबह लड़की आरोपी के घर में डरी-सहमी और रोती हुई मिली। पीड़िता के पिता (गवाह संख्या-5) ने थाना सलेहवारा में मामला दर्ज कराया। इसके बाद आरोपी के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 342, 363, 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज किया गया।
विशेष अपर सत्र न्यायाधीश, खैरागढ़ ने 22 जून 2023 को विशेष सत्र प्रकरण क्रमांक 35/2021 में राजेलाल को दोषी करार देते हुए निम्न सजा सुनाई:
- धारा 342 IPC के तहत – 1 वर्ष का कठोर कारावास
- धारा 363 IPC के तहत – 7 वर्ष का कठोर कारावास
- पॉक्सो अधिनियम की धारा 3/4 के तहत – अजीवन कारावास (प्राकृतिक जीवनकाल तक)
इन सभी सजाओं को एकसाथ चलने का आदेश दिया गया था।
अपील और कानूनी तर्क
अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमित बक्सी ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने केवल पीड़िता की गवाही के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया, जबकि अभियोजन गवाहों की गवाही में विरोधाभास थे। उन्होंने यह भी कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई, और पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए कोई ऑसिफिकेशन टेस्ट (हड्डियों की जांच) नहीं कराई गई।
वहीं, राज्य की ओर से पैनल वकील नितांश जायसवाल ने यह दलील दी कि सरकारी स्कूल के प्रवेश-निकास रजिस्टर (Exhibit P/22C) और स्कूल के प्रधानाध्यापक (गवाह PW-9) की गवाही से पीड़िता की उम्र स्पष्ट रूप से साबित होती है। इसके अतिरिक्त, पीड़िता (PW-2), उसकी मां (PW-1) और पिता (PW-5) की गवाही आपसी तालमेल में रही और विश्वासपूर्ण थी।
कोर्ट की टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने उचित रूप से स्कूल के रिकॉर्ड और मौखिक गवाहियों को आधार बनाकर यह निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी।
सिर्फ पीड़िता की गवाही के आधार पर दोषसिद्धि पर विचार करते हुए, कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें प्रमुख रूप से निम्न निर्णय शामिल थे:
- State of Punjab v. Gurmit Singh [(1996) 2 SCC 384]
- Ganesan v. State [(2020) 10 SCC 573]
कोर्ट ने कहा:
“जब पीड़िता की गवाही सच्ची, निष्कलंक, भरोसेमंद और उच्च गुणवत्ता की हो, तो केवल उसी के आधार पर दोषसिद्धि दी जा सकती है।”
“ऐसे मामलों में उसकी गवाही की पुष्टि मांगना, उसके घावों पर नमक छिड़कने जैसा है।”
हालांकि मेडिकल अधिकारी डॉ. श्वेता कौमार्य (PW-12) ने किसी स्पष्ट शारीरिक चोट का उल्लेख नहीं किया, फिर भी कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब पीड़िता की गवाही स्पष्ट और भरोसेमंद हो, तो शारीरिक चोट का न पाया जाना निर्णायक नहीं होता।
कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने माना कि आरोपी ने नाबालिग लड़की का अपहरण कर उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए। उसने कानून की धाराओं के उल्लंघन में गंभीर अपराध किया है।
हालांकि दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया, लेकिन कोर्ट ने यह कहा कि सजा के अनुपात में कुछ संशोधन उचित है। इसलिए आजीवन कारावास को 20 वर्षों के कठोर कारावास में बदला गया।
अंतिम आदेश:
- धारा 342, 363 आईपीसी और धारा 3/4 पॉक्सो एक्ट के तहत दोषसिद्धि बरकरार
- अजीवन कारावास को संशोधित कर 20 वर्ष का कठोर कारावास किया गया
- जुर्माना और डिफॉल्ट सजा यथावत रखी गई
कोर्ट ने निष्कर्ष में कहा:
“अभियोजन पक्ष ने आरोपी के विरुद्ध सभी उचित संदेहों से परे अपराध सिद्ध कर दिया है।”