छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कोंडागांव में करोड़ों रुपये की लागत से बने नए अंतर-राज्यीय बस टर्मिनल को चालू न करने पर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने 22 मार्च 2025 को ‘द हितवाद’ समाचार पत्र में प्रकाशित एक खबर का स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले को जनहित याचिका (WPPIL No. 38 of 2025) के रूप में दर्ज किया। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने यह कार्यवाही की।
पृष्ठभूमि: 6.51 करोड़ की लागत वाला बस स्टैंड बना असामाजिक तत्वों का अड्डा
हाईकोर्ट ने ‘Inter-state bus stand lies unused, turns into den for miscreants’ शीर्षक वाली खबर का हवाला देते हुए कहा कि 6.51 करोड़ रुपये की लागत से बने बस टर्मिनल का दो वर्षों से उपयोग नहीं हो रहा है। रिपोर्ट में बताया गया कि निगरानी की कमी और बस सेवाएं शुरू न होने के कारण यह स्थान शराबखोरी, उपद्रव और स्टंटबाजी जैसी असामाजिक गतिविधियों का अड्डा बन गया है। स्थानीय लोगों ने सुरक्षा व्यवस्था और सीसीटीवी कैमरे लगाने की मांग की है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि वहां एक बड़ा डिस्प्ले स्क्रीन भी लगा है, जो बस संचालन न होने की वजह से बेकार पड़ा है।

कानूनी प्रश्न: जनता का पैसा, सार्वजनिक संपत्ति और प्रशासनिक जवाबदेही
कोर्ट ने इस मामले में कई अहम सवाल उठाए:
- 6.51 करोड़ की सार्वजनिक परियोजना को पूरा होने के बावजूद चालू क्यों नहीं किया गया?
- संपत्ति की सुरक्षा और उपद्रव रोकने के लिए क्या उपाय किए गए?
- क्या राज्य सरकार अनुच्छेद 21 (जीवन जीने का अधिकार) के तहत अपनी जिम्मेदारी निभा रही है?
- सार्वजनिक धन का सही उपयोग और जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
कोर्ट की तीखी टिप्पणी
खंडपीठ ने टिप्पणी की:
“जब राज्य सरकार ने बस स्टैंड के निर्माण पर इतनी बड़ी राशि खर्च की है, तो उसे चालू न करने का कारण समझ से परे है।”
कोर्ट ने जिला प्रशासन की उदासीनता को अपराधों के बढ़ने का कारण बताया और कहा कि लापरवाही से कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है और भविष्य में सरकार को इसकी मरम्मत पर और धन खर्च करना पड़ सकता है।
सुनवाई की कार्यवाही और निर्देश
सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने राज्य, नगरीय प्रशासन सचिव, कलेक्टर और कोंडागांव के पुलिस अधीक्षक (प्रतिवादी सं. 1 से 4) का पक्ष रखा, जबकि संदीप दुबे की ओर से मनस वाजपेयी ने प्रतिवादी सं. 5 (मुख्य नगर पालिका अधिकारी, कोंडागांव) का पक्ष रखा।
ठाकुर ने स्वीकार किया कि बस स्टैंड शहर के बाहरी इलाके में स्थित है, इसलिए वह उपयोग में नहीं आ रहा है। उन्होंने हाल की तस्वीरें कोर्ट के समक्ष पेश कीं और बताया कि इस विषय पर हितधारकों की बैठक भी हुई है।
कोर्ट ने इस स्पष्टीकरण को असंतोषजनक मानते हुए नगरीय प्रशासन और विकास विभाग, छत्तीसगढ़ शासन के सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें बताया जाए:
- बस स्टैंड को नजरअंदाज क्यों किया गया?
- अब तक क्या-क्या कदम उठाए गए?
- भविष्य में इसे चालू करने के लिए क्या योजना है?
साथ ही, प्रतिवादी सं. 5 (मुख्य नगर पालिका अधिकारी) को भी निर्देश दिया गया कि वे संबंधित निर्देश प्राप्त कर एक विस्तृत जवाब दाखिल करें।
अगली सुनवाई की तिथि: 16 अप्रैल 2025
मामले का विवरण:
मामले का शीर्षक: स्वत: संज्ञान जनहित याचिका – ‘द हितवाद’ में प्रकाशित खबर पर
मामला संख्या: WPPIL No. 38 of 2025
पीठ: मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल
वकील: शशांक ठाकुर (राज्य के लिए उप महाधिवक्ता), मनस वाजपेयी (मुख्य नगर पालिका अधिकारी की ओर से)