कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह उन सभी संबंधित दस्तावेज़ों को न्यायालय के समक्ष पेश करे, जो दिल्ली हाईकोर्ट में चल रही उस याचिका से संबंधित हैं जिसमें कुछ व्यक्तियों को कथित रूप से दिल्ली में अवैध रूप से निवास करते हुए पाए जाने पर निर्वासित किए जाने का मामला है। यह निर्देश न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल के कुछ लोगों की कथित अवैध हिरासत को चुनौती देने वाली दो हैबियस कॉर्पस याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण मौखिक टिप्पणी भी की। जब पश्चिम बंगाल सरकार के वकील ने यह मुद्दा उठाया कि देश के विभिन्न हिस्सों में बंगाली भाषी लोगों से उनकी नागरिकता को लेकर पूछताछ की जा रही है, तो पीठ ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि वे इस बात की “सत्यता की पुष्टि करें” कि क्या इन आरोपों में कोई दम है। हालांकि, इस विषय पर कोई औपचारिक आदेश पारित नहीं किया गया।
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती ने अदालत को बताया कि जिन व्यक्तियों का मामला है, उन्होंने पहले दिल्ली हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की थी, जिसे बाद में यह कहकर वापस ले लिया गया कि संबंधित व्यक्तियों को विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी (FRRO) द्वारा पहले ही निर्वासित किया जा चुका है। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट में FRRO के निर्वासन आदेश को चुनौती देने वाली एक नई याचिका दायर की गई।

चक्रवर्ती ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने इन कार्यवाहियों की जानकारी कलकत्ता हाईकोर्ट को नहीं दी और तथ्यों को छिपाते हुए नई याचिकाएं दाखिल कर दीं, जिसे खारिज किया जाना चाहिए।
तथ्यों की इस कथित चुप्पी पर नाराज़गी व्यक्त करते हुए, कलकत्ता हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह 28 जुलाई तक विस्तृत हलफनामा दाखिल करे जिसमें सभी संबंधित दस्तावेज़ और रिकॉर्ड संलग्न हों। याचिकाकर्ताओं को 4 अगस्त तक अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई है। मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त को निर्धारित की गई है।
हैबियस कॉर्पस एक संवैधानिक उपचार है जिसके माध्यम से किसी अवैध हिरासत को चुनौती दी जाती है और न्यायालय से आग्रह किया जाता है कि वह संबंधित व्यक्ति को पेश करने का आदेश दे।