बंबई हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) ने हिंदू उत्तराधिकार कानून को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी पिता को बंटवारे में संपत्ति मिली थी और उसकी मृत्यु के बाद वह संपत्ति उसके बेटे को विरासत में मिलती है, तो वह संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 के तहत बेटे की ‘पृथक संपत्ति’ (Separate Property) मानी जाएगी, न कि ‘पैतृक संपत्ति’ (Ancestral Property)।
न्यायमूर्ति रोहित डब्लू. जोशी की पीठ ने निचली अपीलीय अदालत के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें संपत्ति को ‘पैतृक’ मानते हुए उसकी बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के डिक्री को बहाल करते हुए कहा कि विक्रेता (पिता) के पास उस संपत्ति को बेचने का पूर्ण और निरपेक्ष अधिकार था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद अमरावती जिले के दर्यापुर में स्थित कृषि भूमि (गट नंबर 138, पुराना सर्वे नंबर 81) से जुड़ा है। इस जमीन के मालिक किशोर मालिये (प्रतिवादी संख्या 1/विक्रेता) ने अपीलकर्ता अरुण नारायणराव काले (क्रेता) के साथ 1,29,500 रुपये में जमीन बेचने का करार किया था।
क्रेता के अनुसार, 11 जुलाई 2007 को बिक्री विलेख (Sale Deed) निष्पादित किया गया और कब्जा सौंप दिया गया। हालांकि, सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में विक्रेता की पत्नी (प्रतिवादी संख्या 1) द्वारा हंगामा किए जाने के कारण दस्तावेज का पंजीकरण (Registration) नहीं हो सका।
इस मामले में दो अलग-अलग दीवानी मुकदमे दायर किए गए थे:
- नियमित दीवानी मुकदमा संख्या 39/2007: यह मुकदमा विक्रेता की पत्नी और बच्चों (आपत्तिकर्ताओं) द्वारा दायर किया गया था। उन्होंने निषेधाज्ञा (Injunction) की मांग करते हुए दावा किया कि यह “संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति” है और किशोर शराब की लत के कारण इसे बेच रहे हैं, जिस पर उनका अधिकार नहीं है।
- नियमित दीवानी मुकदमा संख्या 15/2012: यह मुकदमा क्रेता (अरुण काले) ने दायर किया। उन्होंने स्वामित्व की घोषणा और बिक्री विलेख के पंजीकरण के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग की।
ट्रायल कोर्ट ने क्रेता के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन प्रथम अपीलीय अदालत ने इसे पलट दिया और संपत्ति को पैतृक मानते हुए बिक्री को अवैध ठहराया। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा।
पक्षकारों की दलीलें
आपत्तिकर्ताओं (पत्नी और बच्चों) का तर्क था कि चूंकि यह संपत्ति किशोर मालिये को परिवार के बंटवारे के जरिए मिली थी, इसलिए यह ‘संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति’ का चरित्र रखती है। उनका कहना था कि जन्म से ही बच्चों का इस संपत्ति में अधिकार है, इसलिए पिता इसे अकेले नहीं बेच सकते।
दूसरी ओर, क्रेता की ओर से दलील दी गई कि यह विक्रेता की स्व-अर्जित या पृथक संपत्ति है। तर्क दिया गया कि किशोर मालिये को यह संपत्ति अपने पिता से विरासत में मिली थी, जिन्हें 11 अगस्त 1982 के बंटवारे में यह हिस्सा मिला था। इसलिए, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के तहत, यह संपत्ति किशोर को उनकी व्यक्तिगत क्षमता में एक वारिस के रूप में प्राप्त हुई है।
न्यायालय का विश्लेषण और अवलोकन
हाईकोर्ट ने सबसे पहले संपत्ति की प्रकृति (पैतृक बनाम पृथक) पर विचार किया। अदालत ने पाया कि 1982 के पंजीकृत विभाजन विलेख (Partition Deed) के माध्यम से विवादित भूमि किशोर के पिता के हिस्से में आई थी। पिता की मृत्यु के बाद यह संपत्ति किशोर को विरासत में मिली।
अदालत ने कहा:
“उक्त बंटवारे के मद्देनजर वाद संपत्ति विक्रेता के पिता की पृथक संपत्ति बन गई थी। पिता की मृत्यु के बाद विक्रेता को यह संपत्ति विरासत में मिली है।”
सुप्रीम कोर्ट के कमिश्नर ऑफ वेल्थ टैक्स, कानपुर बनाम चंद्र सेन (AIR 1986 SC 1753) के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1956 के अधिनियम ने पुरानी शास्त्रीय हिंदू विधि की स्थिति को काफी बदल दिया है। पुरानी व्यवस्था में पुत्र को उत्तरजीविता (Survivorship) के आधार पर संपत्ति मिलती थी, लेकिन 1956 के बाद स्थिति अलग है।
न्यायमूर्ति जोशी ने अपने निर्णय में कहा:
“यह अभिनिर्धारित किया जाता है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के लागू होने के बाद, किसी पुरुष हिंदू की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति उसके प्रथम श्रेणी (Class-I) के कानूनी वारिसों को उत्तराधिकार/विरासत (Succession) के द्वारा मिलती है, न कि उत्तरजीविता (Survivorship) द्वारा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना है कि धारा 8 के तहत पुत्र को प्राप्त संपत्ति उसकी पृथक संपत्ति होती है, न कि पैतृक संपत्ति।”
अदालत ने आपत्तिकर्ताओं की उन दलीलों को खारिज कर दिया जिनमें कहा गया था कि बंटवारे में मिली संपत्ति वंशजों के लिए संयुक्त परिवार की संपत्ति बनी रहती है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में संपत्ति पिता से पुत्र को विरासत (Inheritance) में मिली है, इसलिए यह नियम यहां लागू नहीं होगा।
निर्णय
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि चूंकि यह संपत्ति किशोर मालिये की पृथक संपत्ति थी, इसलिए उन्हें इसे बेचने का पूर्ण अधिकार था। पत्नी और बच्चों (आपत्तिकर्ताओं) को इस लेनदेन को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।
अदालत ने क्रेता द्वारा दायर अपील (सेकंड अपील नंबर 455/2023 और 457/2023) को स्वीकार कर लिया और आपत्तिकर्ताओं की अपील को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने प्रथम अपीलीय अदालत के फैसले को रद्द करते हुए ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें विक्रेता को बिक्री विलेख का पंजीकरण कराने और क्रेता के कब्जे में बाधा न डालने का निर्देश दिया गया था।
केस विवरण:
केस का शीर्षक: अरुण पुत्र नारायणराव काले बनाम मीना पत्नी किशोर मालिये व अन्य (और संबंधित अपीलें)
केस नंबर: सेकंड अपील नंबर 455/2023, सेकंड अपील नंबर 148/2024, सेकंड अपील नंबर 457/2023, सेकंड अपील नंबर 156/2024
कोर्ट: बंबई हाईकोर्ट, नागपुर बेंच
कोरम: न्यायमूर्ति रोहित डब्लू. जोशी
उद्धृत कानून: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 और 19; संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 54; पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 77।

