पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बीच पीओपी की मूर्तियों पर प्रतिबंध लगाने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को धार्मिक मूर्तियों में प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने की मांग वाली याचिका पर जवाब देने का निर्देश जारी किया। यह प्रतिबंध मुख्य रूप से प्राकृतिक जल निकायों में विसर्जन के लिए बनाई गई मूर्तियों पर लगाया गया है, जिसका उद्देश्य ऐसी प्रथाओं से होने वाले गंभीर जल प्रदूषण से निपटना है।

यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब राज्य व्यापक रूप से मनाए जाने वाले गणेश उत्सव की तैयारियों में जुटा है। चिंतित नागरिकों और मिट्टी की मूर्ति बनाने वालों के एक समूह द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में चिंता जताई गई है, जिसमें 12 मई, 2020 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी “मूर्ति विसर्जन के लिए संशोधित दिशा-निर्देशों” के ढीले क्रियान्वयन की ओर इशारा किया गया है। इन दिशा-निर्देशों में पर्यावरण पर इसके हानिकारक प्रभाव के कारण पीओपी के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।

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मामले की देखरेख कर रहे मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर ने राज्य सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता रोनिता भट्टाचार्य ने तर्क दिया कि राज्य सरकार सीपीसीबी के 2020 के प्रतिबंध को लागू करने में देरी कर रही है, जिसे 2021 में लागू किया जाना था, ताकि पीओपी मूर्ति निर्माताओं को खुश किया जा सके।

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याचिका में पर्यावरण मानकों के अनुरूप प्राकृतिक मिट्टी और अन्य बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों से बनी मूर्तियों को अपनाने की भी वकालत की गई है। इसके अलावा, इसमें जिला-स्तरीय समितियों की स्थापना की मांग की गई है, जिन्हें यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है कि दिशा-निर्देशों को सक्रिय रूप से लागू किया जाए।

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