ऑपरेशन सिंदूर के बाद आपत्तिजनक व्हाट्सएप पोस्ट के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने FIR रद्द करने से किया इनकार

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे की निवासी फराह दीबा द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद व्हाट्सएप ग्रुप में सेना और प्रधानमंत्री के खिलाफ कथित आपत्तिजनक पोस्ट के लिए उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि FIR में prima facie अपराध का संकेत है और जांच जारी रहनी चाहिए।

मामले की पृष्ठभूमि

यह FIR 15 मई 2025 को पुणे के कालेपडल पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी, जिसमें फराह दीबा पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 152, 196, 197, 352 और 353 के तहत आरोप लगाए गए हैं।

याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता दोनों पुणे के मार्गोसा हाइट्स सोसायटी में रहती हैं। एक महिला-केवल व्हाट्सएप ग्रुप साथ साथ मार्गोसा लेडीज़ में करीब 380 महिलाएं जुड़ी थीं। 7 मई 2025 को जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया, तब ग्रुप में कई सदस्य भारतीय सेना और प्रधानमंत्री की प्रशंसा में संदेश भेज रहे थे।

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याचिकाकर्ता ने उस समय एक संदेश भेजा—“हमारे पास टीवी और मोबाइल है, इसलिए ग्रुप को नेशनल न्यूज़ चैनल की तरह इस्तेमाल न करें।” इस पर जब एक सदस्य ने ‘जय हिंद, जय भारत’ लिखा, तो याचिकाकर्ता ने हंसने वाला इमोजी भेजा। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री और देश के खिलाफ कुछ अन्य पोस्ट भी ग्रुप में भेजीं और अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर भारतीय झंडे को जलता हुआ दिखाने वाला वीडियो शेयर किया।

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याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता हर्षद साथे ने दलील दी कि:

  • याचिकाकर्ता उस समय मानसिक रूप से अस्थिर थीं।
  • उन्हें जैसे ही अपनी गलती का एहसास हुआ, उन्होंने मैसेज डिलीट कर दिए और शिकायतकर्ता से माफी भी मांगी।
  • उन्हें पहले ही स्कूल से निष्कासित कर दिया गया है।
  • CrPC की धारा 41-A के तहत नोटिस समय पर और विधिवत तरीके से नहीं भेजा गया।
  • FIR में ऐसा कोई गंभीर आरोप नहीं है जिससे जांच जरूरी हो।

राज्य की दलीलें

राज्य सरकार की ओर से APP ने विरोध करते हुए कहा कि:

  • याचिकाकर्ता ने जो पोस्ट कीं, उनमें भारत के झंडे को जलता दिखाना और “मक्कार” शब्द का प्रयोग शामिल है।
  • उनके मैसेज के बाद स्थानीय स्तर पर विरोध और धरना हुआ, जिससे सामाजिक अशांति फैली।
  • याचिकाकर्ता ने स्वयं माना है कि उनके माता-पिता के परिवार पाकिस्तान से हैं, ऐसे में उनके बयान की गंभीरता और बढ़ जाती है।
  • FIR में स्पष्ट रूप से अपराध के तत्व मौजूद हैं, इसलिए उसे रद्द नहीं किया जा सकता।
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कोर्ट का विश्लेषण

कोर्ट ने कहा:

  • याचिकाकर्ता एक शिक्षित महिला हैं, उनके पास अंग्रेज़ी में मास्टर्स और B.Ed की डिग्री है। उनसे एक जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार की अपेक्षा की जाती है।
  • उन्होंने जो वीडियो और मैसेज शेयर किए, वे “भारत विरोधी” और “प्रधानमंत्री व सेना का अपमान करने वाले” हैं।
  • कोर्ट ने कहा,


    “इस तरह के संदेश भेजने से पहले एक जिम्मेदार नागरिक को उनके प्रभाव पर विचार करना चाहिए, खासकर जब देश की सेना की उपलब्धि का उत्सव मनाया जा रहा हो।”

  • याचिकाकर्ता की यह दलील कि वह मानसिक रूप से अस्थिर थीं, कोर्ट ने खारिज कर दी।
  • CrPC की धारा 41-A के नोटिस को व्हाट्सएप पर भेजा गया, लेकिन याचिकाकर्ता को उसकी जानकारी थी, फिर भी उन्होंने जवाब नहीं दिया।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के संदर्भ

कोर्ट ने निम्नलिखित फैसलों का हवाला दिया:

  • State of Haryana बनाम भजनलाल, AIR 1992 SC 604
  • राजीव कोरव बनाम बैसाहब, (2020) 3 SCC 317
  • कप्तान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (2021) 9 SCC 35
    इन निर्णयों में यह कहा गया है कि धारा 482 CrPC के तहत FIR रद्द करने की शक्ति अपवाद है, नियम नहीं।
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कोर्ट ने अशरफ खान उर्फ निसरत खान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (अल्लाहाबाद हाईकोर्ट, 2025) के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाने वाले पोस्ट करने पर जमानत याचिका खारिज की गई थी। कोर्ट ने कहा था कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का अधिकार देश की एकता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की छूट नहीं देता।

फैसला

कोर्ट ने कहा:

“FIR की सामग्री और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों को देखकर हमें संतोष है कि इनमें आरोपित अपराध के तत्व मौजूद हैं।”

इसलिए याचिका खारिज की गई और FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया गया। याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट में डिस्चार्ज के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी गई।

याचिका खारिज।

 पीठ: न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल
मामले का शीर्षक: फराह दीबा बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य
मामला संख्या: क्रिमिनल रिट याचिका संख्या 3257/2025

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