छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि जब कोई संपत्ति ई-नीलामी (e-auction) में ‘जहाँ है, जैसी है’ (As Is Where Is) के आधार पर बेची जाती है, तो पिछले मालिक का बकाया बिजली बिल चुकाने की जिम्मेदारी नीलामी में संपत्ति खरीदने वाले (नीलामी क्रेता) की होती है।
न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की एकल पीठ ने पॉलीबॉन्ड रॉक फाइबर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (CSPDCL) को भुगतान किए गए बिजली बकाया की वापसी की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि एक समझदार खरीददार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह नीलामी में भाग लेने से पहले संपत्ति पर मौजूद भार और बिजली कनेक्शन कटने के कारणों के बारे में उचित पूछताछ करे।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला मेसर्स पॉलीबॉन्ड रॉक फाइबर प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ा है, जिसने एक संपत्ति खरीदी थी जो पहले अरिहंत रॉक वूल फाइबर प्राइवेट लिमिटेड के स्वामित्व में थी। मूल मालिक (अरिहंत) द्वारा बैंक ऑफ इंडिया से लिए गए ऋण को चुकाने में विफल रहने पर, बैंक ने सरफेसी अधिनियम, 2002 (SARFAESI Act) के तहत कार्यवाही की। बैंक ने संपत्ति को अपने कब्जे में ले लिया और 19 अप्रैल 2012 को उसकी नीलामी कर दी।
याचिकाकर्ता, जिसे सफल बोलीदाता घोषित किया गया था, ने 2,62,18,000 रुपये का भुगतान किया और बिक्री प्रमाणपत्र (Sale Certificate) प्राप्त किया। याचिकाकर्ता का दावा था कि बिक्री प्रमाणपत्र में यह उल्लेख था कि संपत्ति “सुरक्षित लेनदार को ज्ञात सभी भारों से मुक्त” (free from all encumbrances known to the secured creditor) है।
हालांकि, जब याचिकाकर्ता ने बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन किया, तो CSPDCL ने उन्हें सूचित किया कि पिछले मालिक पर 2008 से 17,67,873 रुपये का बकाया है। कनेक्शन प्राप्त करने के लिए, याचिकाकर्ता ने विरोध जताते हुए राशि का भुगतान कर दिया, लेकिन बाद में रिफंड की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका तर्क था कि वे पिछले मालिक के कर्ज के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि नीलामी क्रेता से बकाया की वसूली “अवैध, मनमानी और कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं” है। उन्होंने दलील दी कि यह कर्ज ‘टाइम-बार्ड’ (time-barred) हो चुका था और प्रतिवादियों की कार्रवाई ने संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 300A के तहत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के अहमदाबाद इलेक्ट्रिसिटी कंपनी लिमिटेड बनाम गुजरात Inns प्राइवेट लिमिटेड के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नीलामी क्रेता से पिछला बकाया नहीं वसूला जा सकता।
इसके विपरीत, CSPDCL के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वेच्छा से किस्तों में बकाया राशि का भुगतान करने का वचन (undertaking) दिया था और अब वे रिफंड की मांग नहीं कर सकते। उन्होंने जोर देकर कहा कि विद्युत आपूर्ति संहिता (Electricity Supply Code) नए मालिक से बकाया की वसूली की अनुमति देती है।
बैंक ऑफ इंडिया के वकील ने तर्क दिया कि नीलामी नोटिस में विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि बिक्री ‘जहाँ है, जैसी है’ (as is where is basis) के आधार पर थी। उन्होंने कहा कि यह बोलीदाता का कर्तव्य था कि वह नीलामी में भाग लेने से पहले उत्पाद शुल्क, संपत्ति कर और अन्य देनदारियों जैसे अज्ञात बकाये के बारे में जानकारी प्राप्त करे।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
न्यायमूर्ति गुरु ने कहा कि नीलामी नोटिस में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि बिक्री “जहाँ है, जैसी है, जो है” के आधार पर है।
कोर्ट ने इस मुद्दे पर कानून तय करने वाले सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के.सी. निनान बनाम केरल राज्य बिजली बोर्ड और अन्य (2023) 14 SCC 431 पर विस्तार से भरोसा किया। मिसाल का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने कहा:
“‘जहाँ है-जैसी है’ आधार पर बिक्री यह मानती है कि क्रेता संपत्ति को उसके सभी मौजूदा अधिकारों, दायित्वों और देनदारियों के साथ अधिग्रहित करेगा। जब कोई संपत्ति ‘जहाँ है-जैसी है’ के आधार पर बेची जाती है, तो बिक्री पर संपत्ति के भार क्रेता को हस्तांतरित हो जाते हैं।”
कोर्ट ने आगे कहा कि विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 की धारा 49 के तहत आपूर्ति की एक शर्त, जिसमें नए मालिक को बिजली आपूर्ति का लाभ उठाने से पहले पिछले मालिक के बकाये को चुकाने की आवश्यकता होती है, एक “वैधानिक चरित्र” (statutory character) रखती है।
बकाये के बारे में अज्ञानता के याचिकाकर्ता के दावे को संबोधित करते हुए, कोर्ट ने टिप्पणी की:
“वास्तव में, बिजली कटने के बारे में जानकारी उचित परिश्रम (due diligence) के साथ आसानी से पता लगाई जा सकती है, जो एक विवेकपूर्ण नीलामी क्रेता को बिजली कटने के कारणों के बारे में उचित पूछताछ करने के लिए प्रेरित करती है। जब किसी परिसर की बिजली आपूर्ति काट दी गई हो, तो क्रेता के लिए यह दावा करना अविश्वसनीय होगा कि वे बकाया बिजली राशि के अस्तित्व से अनजान थे।”
फैसला
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ई-नीलामी के मामलों में जहां बिक्री ‘जहाँ है, जैसी है’ के आधार पर होती है, बिजली बकाया भुगतान करने का दायित्व नीलामी क्रेता पर होता है। कोर्ट ने यह कहते हुए रिट याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता किसी भी राहत का हकदार नहीं है।
मामले का विवरण:
केस टाइटल: पॉलीबॉन्ड रॉक फाइबर प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड और अन्य
केस नंबर: डब्ल्यूपीसी नंबर 2752/2016
कोरम: न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु
याचिकाकर्ता के वकील: श्री रजा अली, अधिवक्ता और श्री करुणेंद्र नारायण सिंह, अधिवक्ता
प्रतिवादियों के वकील: सुश्री मीना शास्त्री (CSERC के लिए), श्री यू.के.एस. चंदेल (उप महाधिवक्ता, राज्य के लिए), श्री आनंद शुक्ला (बैंक ऑफ इंडिया के लिए)

