अरावली संरक्षण के लिए समिति को अंतिम अवसर, सुप्रीम कोर्ट ने 15 अक्टूबर तक दी मोहलत

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उसका मकसद अधिकारियों की आलोचना करना नहीं, बल्कि अरावली की पहाड़ियों और श्रृंखलाओं की रक्षा करना है। अदालत ने अरावली की “एक समान परिभाषा” तय करने के लिए गठित समिति को अंतिम मौका देते हुए दो महीने का और समय दे दिया।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ अरावली क्षेत्र में अवैध खनन से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी। अदालत ने कहा कि अलग-अलग राज्यों द्वारा अलग परिभाषाएं अपनाने के कारण खनन अनुमति देने में भिन्न मानक अपनाए जा रहे हैं।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने किसी मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर किसी आरोपी को दोषी ठहराने के लिए आवश्यक पंचशील/पांच सिद्धांतों की व्याख्या की है

“यह एक नीतिगत मुद्दा है जिसे तय करना जरूरी है। हम देरी पर सख्त रुख अपना सकते थे, लेकिन हम अधिकारियों को फटकारने में नहीं, बल्कि अरावली की पहाड़ियों और श्रृंखलाओं की रक्षा में रुचि रखते हैं,” पीठ ने टिप्पणी की।

समिति का गठन पिछले वर्ष तब हुआ था जब अदालत ने राज्यों की परिभाषाओं में असमानता पर चिंता जताई थी। 27 मई को अदालत ने समिति को दो महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था, जिसकी समयसीमा 27 जुलाई को समाप्त हो गई। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि चारों राज्यों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया जा रहा है और इसके लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता है।

अदालत ने 15 अक्टूबर तक का समय देते हुए कहा कि यह अंतिम अवसर होगा। साथ ही सुझाव दिया कि मुख्य समिति और तकनीकी सहायता समिति नियमित रूप से, आवश्यक होने पर वर्चुअल माध्यम से, बैठक कर रिपोर्ट को अंतिम रूप दें।

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट: अपीलकर्ता या वकील के अनुपस्थित रहने पर अपील को डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज किया जाना चाहिए, न कि गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए

पीठ ने आगाह किया कि यदि अनियंत्रित खनन जारी रहा तो अरावली क्षेत्र की पारिस्थितिकी को गंभीर खतरा होगा। “हम अरावली को किसी भी और नुकसान से बचाना चाहते हैं,” अदालत ने कहा।

9 मई 2024 के आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा व गुजरात राज्यों को संयुक्त रूप से अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियों के मुद्दे पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।

READ ALSO  धारा 498A आईपीसी भले ही गैर-शमनीय अपराध है परंतु समझौते के आधार पर प्राथमिकी को रद्द किया जा सकता है: हाईकोर्ट
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles