केंद्र के गृह मंत्री अमित शाह द्वारा विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी पर दिए गए बयान को लेकर 18 पूर्व न्यायाधीशों के समूह ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने शाह के बयान को सुप्रीम कोर्ट के 2011 के सलवा जुडूम फैसले की “पूर्वाग्रहपूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण गलत व्याख्या” बताया और चेतावनी दी कि ऐसे राजनीतिक बयानों से न्यायपालिका पर “चिलिंग इफेक्ट” पड़ सकता है।
इस संयुक्त बयान पर पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर, जे. चेलमेश्वर, ए.के. पत्नायक, अभय ओका, गोपाला गौड़ा और विक्रमजीत सेन के साथ-साथ तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीश— संजीब बनर्जी, गोविंद माथुर और एस. मुरलीधर — के हस्ताक्षर हैं। उन्होंने शाह से राजनीतिक अभियानों में “नाम लेकर आरोप लगाने” से बचने की अपील की। बयान में कहा गया, “फैसले में कहीं भी, न तो स्पष्ट रूप से और न ही किसी निहितार्थ से, नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन किया गया है।” साथ ही यह भी कहा गया कि उपराष्ट्रपति चुनाव का प्रचार विचारधारा पर आधारित हो सकता है, लेकिन इसे “सभ्यता और गरिमा” के साथ होना चाहिए।
शाह ने शुक्रवार को केरल में भाषण देते हुए आरोप लगाया था कि रेड्डी ने सलवा जुडूम फैसले के जरिए “नक्सलवाद को मदद” दी और अगर यह फैसला न हुआ होता तो “नक्सली आतंकवाद 2020 तक खत्म हो जाता।” इसके जवाब में रेड्डी ने स्पष्ट किया कि 2011 का फैसला केवल उनका व्यक्तिगत फैसला नहीं था, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय था, जो उन्होंने न्यायमूर्ति एस.एस. निज्जर के साथ मिलकर दिया था। उन्होंने कहा कि अगर शाह पूरा फैसला पढ़ते तो उन्हें इसका संदर्भ समझ में आता।

2011 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य समर्थित मिलिशिया सलवा जुडूम को भंग करने और माओवादी समस्या से निपटने के लिए आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) बनाने की प्रथा को अवैध करार दिया था। अदालत ने इसे संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों का उल्लंघन माना था।
उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 9 सितंबर को होगा, जिसमें जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद नए पदाधिकारी का चयन किया जाएगा।