इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: यूपी के सभी वकीलों के आपराधिक मामलों का ब्यौरा तलब, कहा- रसूखदार पदों पर बैठे दागी वकील ‘कानून के शासन’ के लिए खतरा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) और पुलिस महानिदेशक (अभियोजन) को राज्य भर में वकीलों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विस्तृत ब्यौरा पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि आपराधिक इतिहास वाले वकील, जो बार एसोसिएशनों में रसूखदार पदों पर बैठे हैं, “कानून के शासन के लिए संभावित खतरा” हैं।

न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ मोहम्मद कफील नामक एक अधिवक्ता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अपने परिवाद (complaint case) को खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान जब कोर्ट को यह पता चला कि याचिकाकर्ता स्वयं कई आपराधिक मामलों में शामिल है, जिसमें गैंगस्टर एक्ट भी शामिल है, और उसके भाई “कुख्यात अपराधी” (hardened criminals) हैं, तो कोर्ट ने मामले का दायरा बढ़ा दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

याची मोहम्मद कफील ने अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने इटावा के अपर सत्र न्यायाधीश के 18 मार्च 2025 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, इटावा के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें पुलिस अधिकारियों को तलब करने की उनकी प्रार्थना खारिज कर दी गई थी।

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने एक अनुपालन हलफनामा दाखिल कर याचिकाकर्ता और उसके भाइयों के आपराधिक इतिहास का खुलासा किया। वहीं, याचिकाकर्ता ने भी पूरक हलफनामे दाखिल कर स्वीकार किया कि उस पर कुछ मामले दर्ज हैं, हालांकि उसने पुलिस पर प्रताड़ना का आरोप भी लगाया।

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तथ्य और दलीलें

कोतवाली थाना, जिला इटावा के इंस्पेक्टर द्वारा दाखिल हलफनामे से यह खुलासा हुआ कि याचिकाकर्ता वकील तीन आपराधिक मामलों में शामिल है:

  1. एफआईआर संख्या 0023/2023: धारा 506, 504, 323 आईपीसी के तहत।
  2. एफआईआर संख्या 0358/2023: धारा 120-बी, 506, 384, 406, 471, 468, 467, 420 आईपीसी के तहत।
  3. एफआईआर संख्या 0159/2024: धारा 3/2 यूपी गैंगस्टर एक्ट के तहत।

याचिकाकर्ता ने बताया कि वह यूपी बार काउंसिल में पंजीकृत (नामांकन संख्या UP01413/2022) एक प्रैक्टिसिंग वकील है। उसने आरोप लगाया कि 13 नवंबर 2025 को रेलवे स्टेशन के पास एक अंडे के स्टॉल पर खाना खाते समय एक पुलिस कांस्टेबल ने उसके साथ मारपीट की।

राज्य के हलफनामे में यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता के पांच भाई—शकील, नौशाद, अकील, फैजान उर्फ गुड्डन और दिलशाद—गंभीर अपराधों में नामजद हैं, जिनमें हत्या का प्रयास, गोहत्या, जुआ अधिनियम और गैंगस्टर एक्ट व पॉक्सो एक्ट जैसे गंभीर मामले शामिल हैं।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने नोट किया कि यह स्वीकार्य तथ्य है कि याचिकाकर्ता तीन आपराधिक मामलों में फंसा हुआ है और उसके सभी भाई “कुख्यात अपराधी” हैं। कोर्ट ने वकीलों के आपराधिक पृष्ठभूमि के न्याय प्रशासन पर प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की।

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हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा:

  • पेशेवर अखंडता पर: “कानूनी प्रणाली अपनी ताकत केवल वैधानिक प्रावधानों से नहीं, बल्कि उस नैतिक वैधता से प्राप्त करती है जो इसकी निष्पक्षता में जनता के विश्वास से आती है। अधिवक्ता और बार एसोसिएशन के पदाधिकारी एक विशिष्ट संस्थागत स्थिति रखते हैं—वे कोर्ट के अधिकारी भी हैं और पेशेवर नैतिकता के संरक्षक भी।”
  • अपराध और आचरण का संबंध: “अपराध विचार में उत्पन्न होता है, और विचार आचरण को प्रभावित करता है। इसलिए, जब गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति कानूनी प्रणाली में प्रभाव वाले पदों पर होते हैं, तो यह वैध चिंता का विषय है कि वे पेशेवर वैधता की आड़ में पुलिस अधिकारियों और न्यायिक प्रक्रियाओं पर अनुचित प्रभाव डाल सकते हैं।”

निर्णय और निर्देश

हाईकोर्ट ने अपने पर्यवेक्षी अधिकार क्षेत्र (Supervisory Jurisdiction) का प्रयोग करते हुए कहा कि कानून के शासन के लिए किसी भी खतरे को संवेदनशीलता से निपटाना उसका कर्तव्य है।

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कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  1. डेटा प्रस्तुत करें: सभी कमिश्नर/एसएसपी/एसपी और संयुक्त निदेशक (अभियोजन) को यूपी बार काउंसिल में नामांकित वकीलों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का व्यापक विवरण प्रस्तुत करना होगा।
  2. जानकारी का प्रारूप: विवरण एक तालिका (Tabular format) में दिया जाना चाहिए जिसमें शामिल हो:
    • एफआईआर पंजीकरण की तिथि और अपराध संख्या।
    • धाराएं और संबंधित पुलिस थाना।
    • विवेचना (Investigation) की वर्तमान स्थिति।
    • चार्जशीट दाखिल करने और आरोप तय (Framing of charge) करने की तिथि।
    • अब तक परीक्षित गवाहों का विवरण और ट्रायल की स्थिति।
  3. जिम्मेदारी: पुलिस से संबंधित विवरण डीजीपी द्वारा और अभियोजन पक्ष की जानकारी डीजीपी (अभियोजन) द्वारा प्रस्तुत की जाएगी।
  4. अगली सुनवाई: मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर 2025 को होगी।

कोर्ट ने चेतावनी दी कि प्रशासन द्वारा किसी भी तरह की ढिलाई को गंभीरता से लिया जाएगा।

केस डिटेल्स:

  • केस टाइटल: मोहम्मद कफील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
  • केस नंबर: मैटर्स अंडर आर्टिकल 227 नंबर 12231 ऑफ 2025
  • कोरम: न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर

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