एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग: शिकायतकर्ता के FIR से मुकरने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ₹4.5 लाख मुआवजा वापस करने का आदेश दिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एससी/एसटी एक्ट के एक मामले में समन (summoning) आदेश को चुनौती देने वाली एक आपराधिक अपील को खारिज कर दिया। इसे “कानून की प्रक्रिया का गंभीर दुरुपयोग” (serious abuse of the process of law) मानते हुए, कोर्ट ने शिकायतकर्ता और उसकी दो बहुओं को राज्य सरकार से प्राप्त ₹4,50,000/- की मुआवजा राशि वापस करने का निर्देश दिया। यह आदेश तब आया जब शिकायतकर्ता ने खुद प्रारंभिक FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया था।

न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने रामेश्वर सिंह और 18 अन्य द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए, अपीलकर्ताओं पर ₹5,00,000/- का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने इसे “इस तरह के जोड़-तोड़ वाले आचरण की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए” (To deter recurrence of such manipulative conduct) आवश्यक बताया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह आपराधिक अपील (संख्या 9649/2024) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी एक्ट) की धारा 14-ए(1) के तहत दायर की गई थी। इसमें 19 अपीलकर्ताओं ने स्पेशल जज (एससी/एसटी एक्ट), प्रयागराज द्वारा 01.07.2024 को पारित संज्ञान और समन आदेश को रद्द करने की मांग की थी।

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यह ट्रायल (स्पेशल सेशंस ट्रायल नंबर 174/2024) केस क्राइम नंबर 0116/2021 से संबंधित है, जो IPC की धाराओं 147, 148, 149, 323, 504, 506, 452, 354(ख) और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(va) के तहत दर्ज किया गया था।

दलीलें और कोर्ट की कार्यवाही

4 नवंबर, 2025 को हुई सुनवाई के दौरान, अपीलकर्ताओं के वकील ने यह दलील दी कि FIR पीड़िता, श्रीमती राम कली (विपक्षी पक्ष संख्या 2) के अंगूठे के निशान के आधार पर दर्ज की गई थी। इसके विपरीत, श्रीमती राम कली के वकील ने इसका “स्पष्ट रूप से खंडन” (categorically denied) किया और तर्क दिया कि “पीड़िता द्वारा ऐसी कोई FIR कभी दर्ज नहीं की गई थी।”

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मामले की गंभीरता को देखते हुए, विशेष रूप से क्योंकि कथित पीड़िता अनुसूचित जाति समुदाय से हैं, कोर्ट ने यह आशंका जताई कि “उन्हें अपीलकर्ताओं द्वारा अनुचित प्रभाव या दबाव में लाया गया होगा।” (subjected to undue influence or coercion). नतीजतन, कोर्ट ने पुलिस उपायुक्त (यमुनापार), जांच अधिकारी और श्रीमती राम कली को 6 नवंबर, 2025 को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया।

आदेश के अनुपालन में, श्रीमती राम कली हाईकोर्ट के समक्ष पेश हुईं। फैसले के अनुसार, “कोर्ट द्वारा विशिष्ट पूछताछ पर, श्रीमती राम कली ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि उनका अंगूठा ‘चिक’ पर सादे कागज पर लिया गया था।” (categorically admitted that her thumb impression… on blank paper.)

हालांकि, सरकारी वकील, श्री पतंजलि मिश्रा ने इस बयान का खंडन किया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि FIR वास्तव में 16.04.2021 को श्रीमती राम कली द्वारा स्वयं प्रस्तुत एक लिखित शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी।

सरकारी वकील ने कोर्ट को यह भी सूचित किया कि जांच के दौरान:

  1. शिकायतकर्ता (श्रीमती राम कली) और उनकी दो बहुओं (श्रीमती कविता और श्रीमती सविता) के बयान Cr.P.C. की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए थे।
  2. तीनों महिलाओं की डॉक्टरी जांच कराई गई थी।
  3. बाद में उनके बयान Cr.P.C. की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए, जिसमें उन्होंने “स्पष्ट रूप से अभियोजन पक्ष के संस्करण का समर्थन किया।” (unequivocally supported the prosecution version.)
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कोर्ट के संज्ञान में यह भी लाया गया कि तीनों पीड़ितों को एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों के तहत राज्य सरकार से प्रत्येक को ₹1,50,000/- (कुल ₹4,50,000/-) का मुआवजा मिला था।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

कोर्ट ने इसे “अत्यंत परेशान करने वाला” (deeply disturbing) पाया कि “शिकायतकर्ता अब FIR दर्ज करने से इनकार कर रही हैं, जबकि उन्होंने धारा 164 Cr.P.C. के तहत बयानों में आरोपों की पुष्टि की थी और अत्याचार के वास्तविक पीड़ितों के लिए बनी वैधानिक योजना के तहत पर्याप्त मौद्रिक मुआवजा भी प्राप्त किया था।”

माननीय न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने टिप्पणी की, “ऐसा आचरण प्रथम दृष्टया कानून की प्रक्रिया का गंभीर दुरुपयोग और एससी/एसटी एक्ट के उदार प्रावधानों का घोर दुरुपयोग दर्शाता है।”

फैसले में आगे कहा गया, “घटनाओं का क्रम… गलत तरीके से सार्वजनिक धन प्राप्त करने के बाद आपराधिक न्याय प्रक्रिया में हेरफेर करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास” (deliberate attempt to manipulate…) सुझाता है, जो “राज्य के साथ धोखाधड़ी” (fraud upon the State) है।

अंतिम निर्णय और निर्देश

“मामले की गंभीर प्रकृति” (serious view of the matter) को देखते हुए, हाईकोर्ट ने 19 अपीलकर्ताओं के खिलाफ समन आदेश को बरकरार रखते हुए, आपराधिक अपील को खारिज कर दिया।

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कोर्ट ने निम्नलिखित बाध्यकारी निर्देश जारी किए:

  1. मुआवजे की वापसी: पीड़िता, श्रीमती राम कली, और उनकी बहुओं, श्रीमती कविता और श्रीमती सविता, को “संयुक्त रूप से और अलग-अलग” (jointly and severally) कुल ₹4,50,000/- की पूरी राशि “तत्काल” (forthwith) राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी को वापस करने का निर्देश दिया गया।
  2. जुर्माना: अपीलकर्ताओं पर ₹5,00,000/- का जुर्माना लगाया गया। यह राशि उन्हें बीस दिनों के भीतर हाईकोर्ट वेलफेयर फंड में जमा करनी होगी। डिफॉल्ट की स्थिति में, रजिस्ट्रार जनरल को “कानून के अनुसार उक्त राशि की वसूली के लिए उचित बलपूर्वक कदम” (appropriate coercive steps for recovery) उठाने का निर्देश दिया गया।
  3. ट्रायल जारी रहेगा: कोर्ट ने निर्देश दिया कि स्पेशल सेशंस ट्रायल नंबर 174/2024 की कार्यवाही जारी रहेगी। प्रयागराज के स्पेशल जज को “कोर्ट के समक्ष पीड़िता द्वारा लिए गए विरोधाभासी रुख या यहां की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना, कानून के अनुसार सख्ती से” (strictly in accordance with law, uninfluenced…) ट्रायल को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया गया।

इसके बाद डीसीपी, जांच अधिकारी और पीड़िता की व्यक्तिगत उपस्थिति को समाप्त कर दिया गया।

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