“शुरुआती दौर में वकीलों को होती है गंभीर आर्थिक तंगी”: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जूनियर वकील पति का गुजारा भत्ता घटाया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि वकालत के पेशे में शुरुआती दौर में वकीलों को अक्सर गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कोर्ट ने माना कि जिला अदालतों में प्रैक्टिस शुरू करने वाले वकीलों की आय अनिश्चित होती है। इस आधार पर कोर्ट ने एक जूनियर वकील पति द्वारा अपनी पत्नी को दिए जाने वाले मासिक गुजारा भत्ते की राशि को घटा दिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की पीठ एक आपराधिक निगरानी याचिका (Criminal Revision) पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका पति (याची) द्वारा पीलीभीत के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय के 16 मई, 2024 के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।

निचली अदालत ने अपने आदेश में पति को दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी को आवेदन की तिथि से 5,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था।

पक्षकारों की दलीलें

याची (पति) के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने वर्ष 2016 में एल.एल.बी. (L.L.B.) की पढ़ाई पूरी की है और वह वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। कोर्ट को बताया गया कि पति ने एक वरिष्ठ वकील के मार्गदर्शन में जिला न्यायालय में अपनी प्रैक्टिस शुरू की है, जिसके कारण उनकी आय “अत्यधिक अनिश्चित” है।

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दलील दी गई कि कभी-कभी वह दिन में 300 से 400 रुपये कमा लेते हैं, और कभी-कभी उन्हें कुछ भी आय नहीं होती। ऐसी स्थिति में, उनके लिए अपना खुद का बुनियादी खर्च उठाना भी “बेहद मुश्किल” है।

दूसरी ओर, पत्नी (विपक्षी संख्या 2) और सरकारी वकील (A.G.A.) ने इसका विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि याची एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं और उनकी “अच्छी खासी आमदनी” है। पत्नी के पक्ष ने दावा किया कि पति के पास 8 बीघा जमीन और दो मकान हैं, जिनसे उन्हें 50,000 रुपये प्रति माह से अधिक किराया मिलता है। उन्होंने कहा कि मौजूदा महंगाई को देखते हुए निचली अदालत द्वारा तय की गई राशि अधिक नहीं है।

हाईकोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन

न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह ने मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए कहा कि दोनों पक्षों के बीच विवाह एक स्वीकृत तथ्य है।

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पति की आर्थिक स्थिति के संबंध में, कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि यद्यपि उसने 2016 में कानून की डिग्री पूरी कर ली है, लेकिन उसने हाल ही में एक वरिष्ठ वकील के अधीन प्रैक्टिस शुरू की है। हाईकोर्ट ने वकालत के पेशे की शुरुआत में आने वाली चुनौतियों का न्यायिक संज्ञान लिया।

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा:

“यह सर्वविदित (common knowledge) है कि जिला न्यायालयों में प्रैक्टिस के शुरुआती चरण में अधिकांश वकील पर्याप्त आय अर्जित करने के लिए संघर्ष करते हैं और अक्सर गंभीर वित्तीय कठिनाई का सामना करते हैं।”

पीठ ने पाया कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है जो पति की किसी स्थिर या नियमित आय को साबित करता हो। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों—रजनेश बनाम नेहा (2021), कल्याण डे चौधरी बनाम रीता डे चौधरी (2017), और कुलभूषण कुमार बनाम राज कुमारी (1970)—का हवाला देते हुए कहा कि गुजारा भत्ते की राशि “उचित और पति की भुगतान क्षमता के अनुपात में” होनी चाहिए।

निर्णय

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि परिवार न्यायालय द्वारा दिया गया 5,000 रुपये का गुजारा भत्ता याची की अनिश्चित और अस्थिर आय के अनुरूप नहीं है।

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कोर्ट ने कहा कि यद्यपि पत्नी का भरण-पोषण करना पति का कानूनी दायित्व है, लेकिन यह राशि उसकी वित्तीय क्षमता के भीतर होनी चाहिए। तदनुसार, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को संशोधित कर दिया।

कोर्ट ने आदेश दिया:

“तदनुसार, गुजारा भत्ते की राशि आवेदन की तिथि से घटाकर 3,750 रुपये प्रति माह की जाती है।”

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि कोई बकाया (arrears) शेष है, तो उसका भुगतान याची द्वारा पंद्रह समान मासिक किस्तों में किया जाएगा। पहली किस्त का भुगतान 20 दिसंबर, 2025 या उससे पहले किया जाना सुनिश्चित किया गया है।

केस डीटेल्स:

  • केस शीर्षक: श्री हीरालाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
  • केस संख्या: क्रिमिनल रिवीजन संख्या 3510, वर्ष 2024
  • पीठ: न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह
  • याची (पति) के वकील: श्री चक्षुवेंद्र पचौरी
  • विपक्षी (पत्नी) के वकील: श्री अतुल पांडेय, जी.ए.
  • साइटेशन: 2025:AHC:206396

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