यूपी लैंड रिकॉर्ड मैनुअल के पैरा 87 के खिलाफ दर्ज राजस्व रिकॉर्ड प्रविष्टियों को भूमि अधिकारों का दावा करने के लिए आधार नहीं बनाया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

एक महत्वपूर्ण फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत अधिग्रहित भूमि के मुआवजे की पुनर्गणना करने का निर्देश दिया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 संख्या – 210/2023 की धारा 37 के तहत अपील में सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि:

अपीलकर्ता, श्रीमती सावित्री देवी, मौजा मडवानगर, जिला बस्ती में 0.038 हेक्टेयर भूमि के एक भूखंड (संख्या 294, जिसे बाद में 323 के रूप में पुनः क्रमांकित किया गया) की मालिक थीं। यह भूमि, दो आवासीय भवनों सहित, राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 28 के निर्माण के लिए अधिग्रहित की गई थी। शुरू में निर्धारित कुल मुआवजा रु. 14,87,493.70, जो 2 दिसंबर, 2008 को अपीलकर्ता को भुगतान किया गया था।

मूल्यांकन से व्यथित होकर, श्रीमती सावित्री देवी ने मध्यस्थता की मांग की। मध्यस्थ ने 11 दिसंबर, 2008 को दिए गए एक निर्णय में, केवल भवन के मूल्यांकन को पुनः निर्धारित किया, तथा अपीलकर्ता को 18,67,881 रुपये का पुरस्कार दिया। दोनों पक्षों ने इस निर्णय को मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बस्ती के समक्ष चुनौती दी, जिन्होंने 21 अक्टूबर, 2022 को उनके आवेदनों को खारिज कर दिया।

कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय:

1. मध्यस्थता निर्णय में पेटेंट अवैधता:

न्यायालय ने पाया कि मध्यस्थ भूमि मूल्यांकन के संबंध में अपीलकर्ता के तर्कों पर विचार करने में विफल रहा, तथा केवल भवन के मूल्य पर ध्यान केंद्रित किया। न्यायमूर्ति सराफ ने फैसला सुनाया कि यह चूक पेटेंट अवैधता का गठन करती है, जिसके लिए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत हस्तक्षेप करना उचित है।

2. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रयोज्यता:

न्यायालय ने इस बात पर विचार किया कि क्या अपीलकर्ता तरसेम सिंह बनाम भारत संघ (2019) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार लाभ का दावा कर सकता है। न्यायमूर्ति सराफ ने माना कि चूंकि मध्यस्थता तरसेम सिंह के निर्णय से पहले 2008 में संपन्न हुई थी, इसलिए अपीलकर्ता उस निर्णय के आधार पर अतिरिक्त क्षतिपूर्ति या ब्याज का दावा नहीं कर सकता।

3. निर्णयों का पूर्वव्यापी अनुप्रयोग:

न्यायालय ने पी.वी. जॉर्ज बनाम केरल राज्य (2007) और मनोज परिहार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य (2022) जैसे मामलों का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के पूर्वव्यापी अनुप्रयोग के सिद्धांत पर चर्चा की। हालांकि, इसने निष्कर्ष निकाला कि बाद के न्यायिक निर्णयों के आधार पर समाप्त मध्यस्थता को फिर से खोलने से कानूनी अराजकता पैदा होगी।

अंतिम निर्णय:

न्यायमूर्ति सराफ ने भूमि के मुआवजे पर विचार न करने की सीमित सीमा तक 11 दिसंबर, 2008 के मध्यस्थता पुरस्कार को रद्द कर दिया। मामले को मध्यस्थ के पास वापस भेज दिया गया है और निर्देश दिया गया है कि अपीलकर्ता की भूमि के लिए मुआवजे की गणना कानून के अनुसार पुनर्गणना की जाए।

Also Read

शामिल वकील:

– अपीलकर्ता की ओर से: श्री राहुल अग्रवाल और सुश्री आकाशी अग्रवाल

– प्रतिवादियों की ओर से: श्री वैभव त्रिपाठी

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles