इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम कानूनी सवाल पर विचार शुरू किया है—क्या कोई ऐसा व्यक्ति, जो अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत नहीं है लेकिन कानून की जानकारी रखता है, अदालत में किसी और की ओर से बहस कर सकता है? यह सवाल इंजीनियर विश्राम सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने उठाया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला अधीनस्थ अदालत से जुड़ा है, जहां शील निधि जायसवाल ने याची विश्राम सिंह की ओर से बहस करने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने यह कहते हुए अनुरोध ठुकरा दिया कि सिंह पंजीकृत अधिवक्ता नहीं हैं, इसलिए उन्हें किसी अन्य व्यक्ति की ओर से बहस करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
इसके खिलाफ सिंह ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कहा कि वे पेशे से इंजीनियर हैं और निर्माण कार्य करते हैं। उन्हें कानून का ज्ञान है और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 100 से अधिक फैसले पढ़े हैं।

याची के तर्क
सिंह ने अपने पक्ष में संविधान के अनुच्छेद 22(1) और अनुच्छेद 227(3) का हवाला दिया। उनका कहना है कि अधीनस्थ अदालत का आदेश रद्द किया जाए और उन्हें ‘प्लीडर’ के रूप में बहस करने की अनुमति दी जाए।
हाईकोर्ट का निर्देश
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति दिवाकर ने आदेश की प्रति उत्तर प्रदेश के महानिबंधक और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के सचिव को भेजने का निर्देश दिया, ताकि इस मुद्दे पर उनकी स्थिति स्पष्ट हो सके।
मामले की अगली सुनवाई 15 सितम्बर 2025 को निर्धारित की गई है।