इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक समन्वय पीठ (कोऑर्डिनेट बेंच) के समक्ष एक मामले की अनियमित लिस्टिंग की जांच के निर्देश दिए हैं, जिससे न्यायालय के क्षेत्राधिकारिक ढांचे में संभावित छेड़छाड़ को लेकर चिंता व्यक्त की गई है। यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान ने रिट-सी संख्या 4521/2001 की सुनवाई के दौरान पारित किया, जिसे नरेश चंद जैन और अन्य बनाम गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और अन्य के रूप में दर्ज किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि याचिकाकर्ताओं ने 26 दिसंबर 2000 के एक आदेश को चुनौती देते हुए इसे निरस्त करने के लिए एक रिट ऑफ सर्टियोरारी दायर की थी। यह मामला जिस उपयुक्त पीठ के समक्ष सुना जाना था, वह अनियमित रूप से एक अन्य समन्वय पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दिया गया। इस असामान्य लिस्टिंग ने न्यायालय को रजिस्ट्री की कार्यप्रणाली और मामलों के आवंटन के लिए जिम्मेदार सॉफ़्टवेयर की जांच करने के लिए प्रेरित किया।
उठाए गए कानूनी मुद्दे

- क्षेत्राधिकार में अनियमितता: न्यायालय ने पाया कि अपने क्षेत्राधिकार के बावजूद, मामला एक समन्वय पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिससे प्रक्रियागत चूक की संभावना बढ़ गई।
- सॉफ़्टवेयर-निर्मित लिस्टिंग में हेरफेर: अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि क्या न्यायालय के कंप्यूटर डेटाबेस में किसी ने मैन्युअल रूप से हस्तक्षेप कर केस आवंटन प्रणाली को प्रभावित किया।
- न्यायिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन: अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि बेंच आईडी में बिना अधिकृत अनुमति के कोई बदलाव न्यायिक प्रशासन में हस्तक्षेप के समान है।
न्यायालय के अवलोकन और निर्देश न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान ने इस मुद्दे की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा:
“बिना उचित अनुमति के बेंच आईडी में बदलाव करना, प्रथम दृष्टया, न्यायिक प्रशासन में हस्तक्षेप के समान है।”
अदालत ने आगे कहा कि मामलों की लिस्टिंग क्षेत्राधिकार के अनुसार होनी चाहिए और इसे मनमाने ढंग से पुनर्निर्देशित नहीं किया जाना चाहिए। यह भी उल्लेख किया गया कि ऐसी विसंगतियां कई मामलों में देखी गई हैं, जो न्यायालय की रजिस्ट्री में प्रणालीगत खामियों की ओर इशारा करती हैं।
न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश:
- रजिस्ट्रार जनरल को इस मामले की जांच कर यह पता लगाना होगा कि लिस्टिंग प्रक्रिया में अनियमितता कैसे हुई और क्या न्यायालय के डेटाबेस में बेंच आईडी को मैन्युअल रूप से बदला गया।
- यदि ऐसा पाया जाता है, तो उत्तरदायी अधिकारियों की पहचान की जानी चाहिए।
- रजिस्ट्रार जनरल को व्यक्तिगत रूप से इस जांच की निगरानी करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि केस आवंटन प्रणाली में कोई अनधिकृत संशोधन न हो।
- बेंच आईडी में अनधिकृत बदलाव को रोकने के लिए टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन प्रणाली लागू की जाए।
- इन निर्देशों की अनुपालन रिपोर्ट 12 मार्च 2025 तक प्रस्तुत की जाए।
भविष्य की कार्रवाई मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च 2025 को होगी, जिसमें रजिस्ट्रार जनरल को जांच रिपोर्ट के साथ न्यायालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि यह मामला विशेष रूप से उसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिससे आगे किसी प्रकार की लिस्टिंग अनियमितता को रोका जा सके।
कानूनी प्रतिनिधित्व
- याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व: अमित सक्सेना और संतोष त्रिपाठी।
- प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व: ए.के. मिश्रा, आदित्य सिंह, प्रदीप कुमार त्रिपाठी, और एस.सी।