इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण (GDA) द्वारा सार्वजनिक भूमि पर कथित अवैध रूप से बनाए गए मकानों को गिराने के नोटिस पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है। साथ ही, अदालत ने जिला प्रशासन और GDA को इन वर्षों पुराने निवासियों के पुनर्वास की ठोस योजना अगली सुनवाई में प्रस्तुत करने को कहा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने 31 जुलाई को एक रिट याचिका की सुनवाई करते हुए पारित किया। यह याचिका GDA द्वारा 16 जून 2025 को जारी किए गए ध्वस्तीकरण नोटिस को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई थी। यह नोटिस उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 की धारा 26-A के तहत जारी किया गया था।
GDA ने 6 सितंबर 2024 को सार्वजनिक भूमि पर बसे 172 लोगों को नोटिस जारी किया था, जिनमें से 89 लोगों ने आपत्तियाँ दर्ज कराई थीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया कि वे बीते 40-50 वर्षों से उस ज़मीन पर रह रहे हैं और अधिकांश लोग आर्थिक रूप से कमजोर तबके से आते हैं। पुनर्वास योजना के अभाव में यदि उन्हें हटाया गया, तो उन्हें अपूरणीय क्षति होगी।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “मामले की परिस्थितियों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता पिछले कई दशकों से उस स्थान पर रह रहे हैं। ऐसी स्थिति में कमजोर वर्ग के लोगों को कुछ राहत और सहानुभूति दी जानी चाहिए।”
इसके साथ ही, अदालत ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे विवादित भूमि पर कोई नया निर्माण न करें और न ही किसी तीसरे पक्ष को अधिकार दें। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि “पूर्व आदेशों के बावजूद अब तक GDA ने इन पुराने निवासियों के पुनर्वास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।”
अब अदालत ने GDA और जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि वे अगली सुनवाई में, जो 22 अगस्त को होगी, पुनर्वास योजना प्रस्तुत करें।