इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैर-सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों के लिए ग्रेच्युटी और अन्य लाभों की गणना के लिए नियमित सेवाओं के साथ-साथ तदर्थ सेवा अवधि को भी शामिल करने के पक्ष में फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर द्वारा जारी यह फैसला श्यामा देवी की ओर से उनके दिवंगत पति के रोजगार लाभों के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई के बाद आया है।
श्यामा देवी के पति कलंदर त्रिपाठी को 1988 में सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज में आदर्श इंटर कॉलेज में तदर्थ आधार पर सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था और 1998 में वे नियमित कर्मचारी बन गए थे। 2012 में 56 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद श्यामा देवी ने पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य लाभों के लिए आवेदन किया, जिसे विंध्य क्षेत्र, मिर्जापुर के क्षेत्रीय उप शिक्षा निदेशक ने अस्वीकार कर दिया। यह अस्वीकृति 1 मार्च, 2021 के सरकारी आदेश पर आधारित थी, जिसमें कहा गया था कि पेंशन के प्रयोजनों के लिए अर्हक सेवा की गणना केवल नियमितीकरण की तिथि से की जानी चाहिए, प्रभावी रूप से केवल 14 वर्ष की सेवा को मान्यता दी जानी चाहिए, जो ग्रेच्युटी पात्रता के लिए अपर्याप्त है।
अदालत ने दलीलें सुनीं कि 1 मार्च, 2021 का सरकारी आदेश त्रिपाठी के मामले पर लागू नहीं होना चाहिए। तदर्थ और नियमित अवधि को मिलाकर उनकी कुल सेवा 23 वर्ष और तीन महीने है, जो उन्हें ग्रेच्युटी के लिए योग्य बनाती है। न्यायमूर्ति मुनीर ने फैसला सुनाया कि निजी सहायता प्राप्त संस्थानों के कर्मचारियों के लिए, 1964 के पेंशन नियम लागू होने चाहिए, जहाँ तदर्थ और नियमित सेवाओं को मिलाकर पात्र सेवा की गणना की जाती है। अदालत ने कहा कि इन नियमों के बाद किए गए किसी भी संशोधन से पहले से अर्जित अधिकारों को समाप्त नहीं किया जा सकता है।