म्यूटेशन से नहीं मिलता मालिकाना हक; दिल्ली हाईकोर्ट ने पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी को लेकर बेटी का मुकदमा बहाल किया

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि राजस्व रिकॉर्ड में केवल नाम दर्ज होने (म्यूटेशन) से किसी व्यक्ति को संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिल जाता और न ही इससे अन्य कानूनी वारिसों के अधिकार समाप्त होते हैं। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने एक मृतक बेटी (उसके कानूनी वारिसों के माध्यम से) द्वारा दायर मुकदमे को खारिज करने वाले आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि जमीन के शहरीकृत (Urbanized) होने के बाद दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम (DLR Act) लागू होगा या हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA), यह कानून और तथ्यों का एक मिश्रित प्रश्न है, जिसे बिना ट्रायल (सुनवाई) के खारिज नहीं किया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील मूल वादी (Plaintiff), इंदु रानी उर्फ इंदु राठी के कानूनी वारिसों द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने एकल पीठ (Single Judge) के 1 दिसंबर, 2022 के आदेश को चुनौती दी थी। विवाद दिल्ली के गांव इरादत नगर, नया बांस में स्थित 41 बीघा और 9 बिस्वा पैतृक भूमि से संबंधित है।

वादी के पिता, राम गोपाल की 7 मार्च, 1993 को बिना वसीयत छोड़े मृत्यु हो गई थी। वादी का दावा था कि पिता की मृत्यु के बाद, वह, उसकी मां और दो भाई संपत्ति के सह-मालिक बन गए और प्रत्येक का एक-तिहाई हिस्सा था। हालांकि, आरोप है कि भाइयों ने वादी की सहमति के बिना 29 जून, 1994 को चुपके से जमीन का म्यूटेशन अपने नाम करवा लिया और बाद में इसे प्रतिवादियों को बेच दिया।

READ ALSO  कर्नाटक हाई कोर्ट ने सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ टिप्पणी पर सुलीबेले के खिलाफ एफआईआर पर रोक लगा दी

वादी ने तर्क दिया कि 7 सितंबर, 2006 की सरकारी अधिसूचना के द्वारा उक्त भूमि को शहरीकृत घोषित कर दिया गया था, जिसके बाद यह DLR Act के दायरे से बाहर हो गई। उन्होंने 2020 में एक सिविल सूट दायर कर बिक्री विलेखों (Sale Deeds) को शून्य घोषित करने और अपना हिस्सा मांगा।

प्रतिवादियों ने ऑर्डर VII रूल 11 सीपीसी (CPC) के तहत अर्जी दाखिल कर वाद खारिज करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि DLR Act की धारा 50 के तहत महिला वारिसों को भूमिधर अधिकार नहीं मिलते और 1993 में ही उत्तराधिकार केवल पुरुष वंशजों के पक्ष में तय हो गया था। सिंगल जज ने इस अर्जी को स्वीकार करते हुए वाद खारिज कर दिया था।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि सिंगल जज ने बिना ट्रायल के मुकदमा खारिज करके गलती की है। उनका कहना था कि 2006 में भूमि के शहरीकृत होने के बाद, DLR Act की पाबंदियां लागू नहीं होतीं और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (2005 के संशोधन सहित) प्रभावी होगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा फैसले का हवाला देते हुए कहा कि बेटी को जन्म से ही कोपार्सनर (Coparcener) का दर्जा प्राप्त है।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि उत्तराधिकार 1993 में खुला था जब DLR Act की धारा 50 लागू थी, जिसमें बेटियों को बाहर रखा गया था। उन्होंने हर नारायणी देवी बनाम भारत संघ के फैसले का सहारा लेते हुए कहा कि 2005 का संशोधन उन अधिकारों को नहीं बदल सकता जो पहले ही बेटों को मिल चुके थे।

READ ALSO  कोलकाता बलात्कार-हत्या मामला: सुप्रीम कोर्ट ने भारत में डॉक्टरों के लिए प्रणालीगत सुरक्षा मुद्दों पर प्रकाश डाला

हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणी

खंडपीठ ने कहा कि ऑर्डर VII रूल 11 के तहत किसी वाद को खारिज करने की शक्ति केवल याचिका में लिखे तथ्यों तक सीमित है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “उत्तराधिकार कभी भी एक पल के लिए भी स्थगित (Abeyance) नहीं रहता” और 1994 में बेटों के पक्ष में किया गया म्यूटेशन “न तो कोई टाइटल (Title) बनाता है और न ही अन्य वारिसों के अधिकारों को खत्म करता है।”

DLR Act की प्रयोज्यता के मुख्य मुद्दे पर, कोर्ट ने इस मामले को हर नारायणी देवी मामले से अलग माना। कोर्ट ने कहा कि वादी ने विशेष रूप से यह दलील दी है कि जमीन 2006 में शहरीकृत हो गई थी। पीठ ने टिप्पणी की:

“यह संदिग्ध हो जाता है कि संपत्ति के शहरीकृत होने के बाद उक्त अधिनियम (DLR Act) लागू होगा या नहीं… 1994 का म्यूटेशन, जो शहरीकरण से पहले राजस्व व्यवस्था के तहत किया गया था, शहरीकरण के बाद संपत्ति में उत्तराधिकार या अधिकारों को नियंत्रित नहीं कर सकता।”

कोर्ट ने सिंगल जज द्वारा हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की विस्तृत प्लीडिंग न होने के आधार पर वाद खारिज करने की आलोचना की। कोर्ट ने कहा:

READ ALSO  दिल्ली हाईकोर्ट ने पाकिस्तानी प्रवासियों के लिए पुनर्वास पैकेज को अनिवार्य बनाने से किया इनकार

“संपत्ति पैतृक कैसे है, इसका स्पष्टीकरण साक्ष्य (Evidence) का विषय है… वादी का दावा है कि संपत्ति पूर्वजों से मिली है और संयुक्त रही है। इसलिए, यह निष्कर्ष निकालना पूरी तरह से गलत है कि कोपार्सनरी पर कोई प्लीडिंग नहीं थी।”

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के पूर्वव्यापी (Retrospective) प्रभाव के बारे में, कोर्ट ने विनीता शर्मा केस का उल्लेख करते हुए कहा:

“एक बार जब वादी की कोपार्सनर के रूप में प्रथम दृष्टया स्थिति को मान्यता मिल जाती है, तो कानूनी आवश्यकता के सबूत के बिना भाइयों द्वारा एकतरफा बिक्री उसके हिस्से को बाध्य नहीं कर सकती।”

फैसला

हाईकोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए 1 दिसंबर, 2022 के आदेश को रद्द कर दिया। मुकदमे को उसके मूल नंबर पर बहाल कर दिया गया है और पक्षकारों को 13 जनवरी, 2026 को रोस्टर बेंच के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वादी ने एक विचारणीय कारण (Cause of Action) का खुलासा किया है और इन मुद्दों का निर्धारण गवाही और सबूतों के बिना नहीं किया जा सकता।

केस डीटेल्स:

केस टाइटल: इंदु रानी उर्फ ​​इंदु राठी (मृतक) जरिए एलआर बनाम पुष्पा वरात मान और अन्य

केस नंबर: RFA(OS) 3/2023

कोरम: जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles