सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए भी जांच अधिकारी को एक निश्चित समय सीमा के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया गया था और तब तक आरोपियों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई थी।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेइकापम कोटेश्वर सिंह की पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट के निर्देश निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र के मामले में स्थापित कानून के विपरीत थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “जांच के लिए समय सीमा प्रतिक्रियात्मक (reactively) रूप से तय की जाती है, न कि एहतियातन (prophylactically)।” साथ ही, आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार करते हुए गिरफ्तारी से पूर्ण सुरक्षा (blanket protection) देना कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला लखनऊ स्थित एसटीएफ मुख्यालय के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा एक गुमनाम याचिका पर शुरू की गई जांच से जुड़ा है। 31 जुलाई 2024 की एक शिकायत में आरोप लगाया गया था कि कुछ व्यक्तियों ने फर्जी दस्तावेजों और झूठे हलफनामों के आधार पर शस्त्र लाइसेंस (arms licenses) प्राप्त किए और उनका उपयोग किया।
जांच रिपोर्ट के आधार पर, 24 मई 2025 को आगरा के थाना नाई की मंडी में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420, 467, 468, 471 और आर्म्स एक्ट की धारा 3/25/30 के तहत एफआईआर (केस क्राइम नंबर 33 ऑफ 2025) दर्ज की गई थी।
आरोपियों के खिलाफ मुख्य आरोप इस प्रकार थे:
- मोहम्मद ज़ैद खान: आरोप है कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों का उपयोग करके शस्त्र लाइसेंस संख्या 1227/03 प्राप्त किया। दस्तावेजों में उनकी जन्मतिथि 25 नवंबर 1975 दिखाई गई थी, जबकि जांच में उनकी वास्तविक जन्मतिथि 25 नवंबर 1972 पाई गई।
- मो. अरशद खान: इन पर फर्जी पैन कार्ड, आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस का उपयोग करके पांच शस्त्र लाइसेंस प्राप्त करने का आरोप है। जांच में सामने आया कि उन्होंने खुद को कुशल निशानेबाज दिखाने और विदेशों से हथियार आयात करने के लिए अपनी जन्मतिथि 1988 से बदलकर 1985 कर ली थी।
- संजय उर्फ संजय कपूर: आगरा के अपर जिलाधिकारी कार्यालय में तत्कालीन शस्त्र लिपिक (Arms Clerk), जिन पर लाइसेंस धारकों के साथ मिलकर जालसाजी और तथ्यों को छिपाने में शामिल होने का आरोप है।
हाईकोर्ट का आदेश
आरोपियों ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एफआईआर रद्द कराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने 4 जुलाई 2025 और 16 जून 2025 के आदेशों के जरिए एफआईआर को रद्द करने से तो इनकार कर दिया, लेकिन शोभित नेहरा बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. के मामले का हवाला देते हुए निर्देश दिया कि:
- जांच अधिकारी 90 दिनों के भीतर जांच पूरी करें।
- संबंधित अदालत द्वारा संज्ञान (cognizance) लेने तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य रूप से दो सवालों पर विचार किया: क्या जांच के लिए समय सीमा निर्धारित करना और एफआईआर रद्द करने से इनकार करते हुए गिरफ्तारी पर रोक लगाना सही है?
जांच की समय सीमा पर (Time-Bound Investigation)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि त्वरित सुनवाई और लगन से जांच संविधान के अनुच्छेद 226 का अभिन्न अंग है, लेकिन अदालत द्वारा समय सीमा निर्धारित करना “नियम के बजाय अपवाद” होना चाहिए।
जस्टिस संजय करोल ने फैसले में लिखा कि जांच एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कई उतार-चढ़ाव आते हैं। उन्होंने कहा:
“निष्कर्ष यह है कि अदालतों द्वारा जांचकर्ताओं के लिए शुरुआत से ही समय सीमा तय नहीं की जानी चाहिए… समय सीमा तब लगाई जाती है जब ऐसा न करने पर प्रतिकूल परिणाम होंगे, यानी जब रिकॉर्ड पर अनुचित देरी या ठहराव जैसी सामग्री मौजूद हो। संक्षेप में, समय सीमा प्रतिक्रियात्मक (reactively) होती है, एहतियातन (prophylactically) नहीं।”
गिरफ्तारी से सुरक्षा पर (Protection from Arrest)
गिरफ्तारी पर रोक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने गलती की है। पीठ ने कहा कि शोभित नेहरा के फैसले पर हाईकोर्ट का भरोसा यांत्रिक (mechanical) था, क्योंकि वह मामला एक पारिवारिक और दीवानी विवाद से जुड़ा था, जबकि वर्तमान मामला शस्त्र लाइसेंस के लिए जालसाजी से संबंधित है।
निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर मामले में तीन जजों की पीठ के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि एफआईआर रद्द करने या जांच पर रोक लगाने से इनकार करते हुए पुलिस को जांच पूरी होने तक गिरफ्तार न करने का निर्देश देना “पूरी तरह से अकल्पनीय” है।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की अपीलों को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों (समय सीमा और गिरफ्तारी पर रोक) को रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने निर्देश दिया कि प्रतिवादियों के पक्ष में अंतरिम सुरक्षा अगले दो सप्ताह तक जारी रहेगी, जिसके बाद कानून के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है।
केस डिटेल्स:
केस टाइटल: स्टेट ऑफ यू.पी. व अन्य बनाम मो. अरशद खान व अन्य (एवं अन्य याचिकाएं)
केस नंबर: क्रिमिनल अपील संख्या 5610 ऑफ 2025
कोरम: जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेइकापम कोटेश्वर सिंह
साइटेशन: 2025 INSC 1480

