सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें उन्होंने अनुपातहीन संपत्ति मामले में जमानत से इनकार किए जाने के पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने मजीठिया को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने मजीठिया की याचिका पर नोटिस जारी किया और मामले को 19 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
मजीठिया पंजाब विजिलेंस ब्यूरो द्वारा दर्ज उस मामले में हिरासत में हैं, जिसमें उन पर करीब 540 करोड़ रुपये की अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। उन्हें 25 जून को गिरफ्तार किया गया था। मजीठिया के खिलाफ दर्ज एफआईआर की पृष्ठभूमि पंजाब पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) द्वारा 2021 के एक ड्रग्स मामले में की जा रही जांच से जुड़ी है।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 4 दिसंबर को मजीठिया की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने कहा था कि इस स्तर पर उन्हें रिहा किए जाने पर उनके द्वारा जांच को प्रभावित किए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने पंजाब विजिलेंस ब्यूरो को तीन महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया था और यह भी कहा था कि उसके बाद मजीठिया जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।
अदालत ने यह भी नोट किया था कि मजीठिया पंजाब के एक प्रमुख राजनीतिक नेता हैं और वह सात वर्षों से अधिक समय तक कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। हाईकोर्ट ने दर्ज किया था कि जांच एजेंसी ने करीब 20 महत्वपूर्ण गवाहों का हवाला दिया है, जिन्हें संवेदनशील श्रेणी का बताया गया है।
“यदि इस चरण में याचिकाकर्ता को हिरासत से रिहा किया जाता है, तो आगे की जांच को प्रभावित करने, संदिग्ध लेनदेन को छिपाने, उनसे संबंधित रिकॉर्ड में हेरफेर करने और संबंधित व्यक्तियों/गवाहों को जांच एजेंसी के साथ सहयोग न करने के लिए प्रभावित करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता,” हाईकोर्ट ने कहा था।
मजीठिया की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता को पहले नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985 के तहत दर्ज एक मामले में जमानत मिल चुकी है और उस जमानत को चुनौती देने वाली पंजाब सरकार की याचिका को भी शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया था।
“उस एनडीपीएस मामले में उन्होंने इस अदालत के समक्ष एक अनुपूरक हलफनामा दायर कर कहा था कि उन्होंने एनडीपीएस मामले में धन प्राप्त होने से संबंधित साक्ष्य उजागर किए हैं। उसी वित्तीय लेनदेन को अब भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक नया मामला गढ़ने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है,” मुरलीधर ने कहा।
हाईकोर्ट के समक्ष मजीठिया की ओर से यह भी दलील दी गई थी कि इस मामले में एफआईआर अवैध है और स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए केवल उन्हें जेल में रखने के उद्देश्य से दर्ज की गई है। यह भी कहा गया था कि एफआईआर में जिन कंपनियों या संस्थाओं का उल्लेख है, उनकी राज्य सरकार द्वारा एनडीपीएस मामले में पहले ही पूरी तरह जांच की जा चुकी है।
मजीठिया के वकील ने यह भी कहा था कि उस मामले में विजिलेंस ब्यूरो ने याचिकाकर्ता और कंपनियों के खातों में कथित अनुपातहीन संपत्ति और नकद जमा को स्वयं “ड्रग मनी” बताया था।
सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट किया कि इस स्तर पर वह अंतरिम जमानत देने के पक्ष में नहीं है।

