सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2010 के एक हत्या मामले में पांच दोषियों की आजीवन कारावास की सजा को रद्द करते हुए उन्हें बरी कर दिया है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ ‘संदेह से परे’ (Beyond Reasonable Doubt) मामला साबित करने में विफल रहा है।
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यद्यपि किसी ‘हितबद्ध गवाह’ (Interested Witness) या रिश्तेदार की गवाही को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वह मृतक का परिजन है, लेकिन ऐसे गवाहों के बयानों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए। वर्तमान मामले में, एकमात्र चश्मदीद गवाह (मृतक की मां) की गवाही में गंभीर विरोधाभास पाए गए और अन्य साक्ष्यों से उसकी पुष्टि नहीं हुई।
पीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों को पलटते हुए अपीलकर्ताओं की अपील को स्वीकार कर लिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 14 जुलाई 2010 की एक घटना से संबंधित है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतक गोरेलाल तालाब में नहाने गया था, जहां लोगों के एक समूह ने उस पर हमला कर दिया। शिकायतकर्ता पारसबाई (PW-4), जो मृतक की मां हैं, ने बताया कि वह खाना बना रही थीं तभी उनकी पोती इंदु बाई ने आकर सूचना दी कि ‘तेली’ जाति के लोग उसके पिता के साथ मारपीट कर रहे हैं।
अभियोजन का दावा था कि जब पारसबाई मौके पर पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि आरोपीगण—सोनाईबाई, पुनीमती, पुनीबाई, श्यामबाई, दयालु, गजाधर और दयानिधि साहू—उनके बेटे को लाठियों और पत्थरों से मार रहे थे और उसके हाथ पीछे बंधे हुए थे। बाद में गोरेलाल की मृत्यु हो गई।
इस मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या), धारा 148 और 149 के तहत आरोप तय किए गए। ट्रायल कोर्ट ने 1 सितंबर 2012 को आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 17 फरवरी 2021 को उनकी अपील खारिज कर दी थी, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ताओं (आरोपियों) का तर्क: अपीलकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि सजा मुख्य रूप से PW-4 (मृतक की मां) की गवाही पर आधारित है, जो एक ‘हितबद्ध गवाह’ हैं। उनकी दलीलों के मुख्य बिंदु थे:
- PW-4 एक ‘चांस विटनेस’ हैं और उनके बयानों में भारी विरोधाभास है।
- मृतक की जिस पोती (इंदु बाई) ने कथित तौर पर घटना की सूचना दी थी, उसका परीक्षण (Examination) ही नहीं कराया गया।
- स्वतंत्र गवाह (PW-1, PW-2, PW-3 और PW-9) पक्षद्रोही (Hostile) हो गए और उन्होंने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया।
- मेडिकल साक्ष्य भी चश्मदीद गवाह के बयानों से मेल नहीं खाते।
राज्य सरकार का तर्क: छत्तीसगढ़ राज्य के महाधिवक्ता ने अपील का विरोध करते हुए कहा:
- PW-4 मृतक की मां हैं, इसलिए उनका आरोपियों को झूठा फंसाने का कोई कारण नहीं है और घटना स्थल पर उनकी उपस्थिति स्वाभाविक थी।
- डॉ. चैन सिंह पैंकरा (PW-7), जिन्होंने पोस्टमार्टम किया, ने चश्मदीद गवाह के बयान का समर्थन किया है कि चोटें बरामद हथियारों से लग सकती थीं।
- जांच के दौरान आरोपियों ने लाठियां और पत्थर बरामद कराए थे।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों की विस्तृत जांच की और विशेष रूप से एकमात्र चश्मदीद गवाह की विश्वसनीयता और मेडिकल रिपोर्ट पर ध्यान केंद्रित किया।
1. हितबद्ध गवाह (PW-4) की जांच कोर्ट ने कानूनी सिद्धांत को दोहराया: “यह स्थापित कानून है कि केवल इसलिए कि गवाह हितबद्ध या रिश्तेदार है, उसकी गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता। हालांकि, ऐसे गवाहों के बयानों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए।”
जांच करने पर कोर्ट ने पाया कि PW-4 की गवाही में “महत्वपूर्ण विरोधाभास” थे। पीठ ने नोट किया कि जहां PW-4 ने पहले मारपीट देखने का दावा किया, वहीं क्रॉस-एग्जामिनेशन में उन्होंने स्वीकार किया कि “जब वह मौके पर पहुंचीं, तो आरोपी वहां खड़े थे और गोरेलाल घायल अवस्था में था।” उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वह यह नहीं बता सकतीं कि किस आरोपी ने कौन सा हथियार इस्तेमाल किया।
2. महत्वपूर्ण गवाह का परीक्षण न होना कोर्ट ने अभियोजन के मामले में एक बड़ी खामी यह पाई कि जिस पोती (इंदु बाई) ने सबसे पहले सूचना दी थी, उसे गवाह के रूप में पेश ही नहीं किया गया।
3. स्वतंत्र गवाहों का मुकर जाना कोर्ट ने देखा कि स्वतंत्र गवाह, जिनमें PW-1 (राम गुलाल), PW-2 (सरपंच) और PW-3 शामिल थे, पक्षद्रोही हो गए। PW-1 ने स्पष्ट कहा कि उसने घटना नहीं देखी। PW-2 और PW-3 ने पुलिस द्वारा किसी भी जब्ती या मेमोरेंडम बयान से इनकार किया। कोर्ट ने कहा: “स्वतंत्र गवाहों ने अभियोजन के मामले का समर्थन नहीं किया, इसलिए आरोपियों के मेमोरेंडम बयान के आधार पर हथियारों की बरामदगी पर विश्वास नहीं किया जा सकता।”
4. मेडिकल साक्ष्य में विसंगति कोर्ट ने पाया कि मेडिकल साक्ष्य और अभियोजन की कहानी में अंतर था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में तीन ‘इन्साइज्ड घाव’ (कटे हुए घाव) का उल्लेख था, जबकि केवल एक पत्थर बरामद हुआ था। कोर्ट ने टिप्पणी की: “यह विश्वास करना मुश्किल है कि तीन इन्साइज्ड घाव एक ही पत्थर से हुए हों… डॉक्टर (PW-7) ने भी अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया कि पत्थर से कौन सी चोट लगी थी।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ताओं के खिलाफ अपना मामला संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। पीठ ने कहा:
“इस प्रकार, केवल PW-4 के बयान पर भरोसा करके सजा नहीं दी जा सकती।”
परिणामस्वरूप, कोर्ट ने अपीलों को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने 30 जुलाई 2025 को जमानत पर रिहा किए गए अपीलकर्ताओं के बेल बॉन्ड को डिस्चार्ज करने का आदेश दिया।
केस डिटेल्स:
- केस टाइटल: पुनीमती और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य (संलग्न अपील के साथ)
- केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 3647 और 3648 ऑफ 2025
- साइटेशन: 2025 INSC 1454
- कोरम: जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस विपुल एम. पंचोली

