दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि पत्नी की शैक्षणिक योग्यता या उसे माता-पिता से मिले उपहार (स्त्रीधन) उसे गुजारा भत्ता (Maintenance) पाने के अधिकार से वंचित नहीं करते, यदि वह वास्तव में कमाई नहीं कर रही है। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने पति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा पत्नी को दिए गए 50,000 रुपये प्रति माह के अंतरिम भरण-पोषण के आदेश को बरकरार रखा।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि “केवल कमाने की क्षमता होना, वास्तविक वित्तीय स्वतंत्रता का विकल्प नहीं हो सकता।”
मामले की पृष्ठभूमि
पक्षकारों का विवाह 3 दिसंबर 2018 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। वैवाहिक जीवन में विवाद उत्पन्न होने के बाद, पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDV Act) की धारा 12 के तहत शिकायत दर्ज कराई। पत्नी ने आरोप लगाया कि उसे पति और उसके परिवार द्वारा शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया गया।
20 जुलाई 2024 को, मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (महिला कोर्ट) ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को 50,000 रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण दे। ट्रायल कोर्ट ने पाया कि पति ने अपनी वास्तविक आय छुपाई थी, जबकि पत्नी एक अच्छे वित्तीय पृष्ठभूमि से आने के बावजूद समान जीवन स्तर की हकदार है।
इस आदेश से असंतुष्ट होकर पति ने सत्र न्यायालय (Sessions Court) में अपील की, जिसे 8 जनवरी 2025 को खारिज कर दिया गया। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता-पति की ओर से दलील दी गई कि वह बेरोजगार है, क्योंकि टेलीफोन सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में उसका कार्यकाल 13 जनवरी 2024 को समाप्त हो गया था, जो कि एक मानद पद था। उसने दावा किया कि पत्नी शादी के समय उसकी स्थिति से पूरी तरह अवगत थी। पति ने यह भी तर्क दिया कि पत्नी उच्च शिक्षित है (B.A., M.A., B.Ed.) और उसके पास पर्याप्त स्वतंत्र साधन हैं। यह आरोप लगाया गया कि पत्नी के पास कई संपत्तियां और निवेश हैं और उसकी आयकर रिटर्न (ITR) में ब्याज से होने वाली आय दिखाई गई है, जो उसे पति से अधिक सक्षम बनाती है।
दूसरी ओर, प्रतिवादी-पत्नी ने तर्क दिया कि पति एक संपन्न व्यवसायी परिवार से आता है और विलासितापूर्ण जीवन जीता है। उसने बताया कि शादी के तुरंत बाद वे एक फार्महाउस में रहते थे जिसका मासिक किराया 1,25,000 रुपये था। पत्नी ने कहा कि वह बेरोजगार है और अपने भरण-पोषण के लिए पति पर निर्भर है। उसने स्पष्ट किया कि उसके नाम पर जो भी संपत्ति है, वह उसके पिता द्वारा दी गई थी और पति ने उसके फंड का दुरुपयोग किया है।
कोर्ट का विश्लेषण
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति का बारीकी से विश्लेषण किया और पति की बेरोजगारी की दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने नोट किया कि पति के बैंक स्टेटमेंट में लगातार वित्तीय लेनदेन दिखाई दे रहे हैं, जिसमें कई कंपनियों से क्रेडिट शामिल हैं। इसके अलावा, निर्धारण वर्ष 2019-20 के लिए उसके ITR में 9 लाख रुपये से अधिक की सकल आय दिखाई गई थी, जो उसके “शून्य” आय के दावे का खंडन करती है।
स्त्रीधन और पैतृक संपत्ति पर: पति की इस दलील पर कि पत्नी के पास पैतृक संपत्ति और उपहार हैं, कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के मनीष जैन बनाम आकांक्षा जैन (2017) के फैसले का हवाला दिया। जस्टिस शर्मा ने कहा:
“भरण-पोषण के दावे का आकलन पत्नी की वर्तमान कमाई की क्षमता और शादी के दौरान उसे मिले जीवन स्तर को बनाए रखने की क्षमता के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि उसके मायके वालों की वित्तीय स्थिति पर… स्त्रीधन, विरासत में मिली संपत्ति, या माता-पिता से मिले उपहारों को आय का स्रोत नहीं माना जा सकता, ताकि उसे भरण-पोषण के दावे से वंचित किया जा सके।”
शिक्षा और कमाने की क्षमता पर: कोर्ट ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि पत्नी की शैक्षणिक योग्यता उसे भरण-पोषण पाने से रोकती है। सुप्रीम कोर्ट के रजनीश बनाम नेहा (2021) के फैसले पर भरोसा करते हुए, कोर्ट ने कहा:
“यह स्थापित कानून है कि केवल पत्नी का शिक्षित होना या आय का कोई स्रोत होना उसे भरण-पोषण मांगने से अयोग्य नहीं बनाता… यह महत्वपूर्ण है कि पत्नी वास्तव में कार्यरत हो और एक स्थिर आय कमा रही हो; केवल संभावित या सैद्धांतिक रूप से कमाने की क्षमता वास्तविक वित्तीय स्वतंत्रता का विकल्प नहीं हो सकती।”
फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट के आदेशों में कोई त्रुटि नहीं थी। कोर्ट ने माना कि 50,000 रुपये प्रति माह की राशि “उचित, न्यायसंगत और पत्नी की आवश्यकताओं तथा पति की वित्तीय क्षमता के अनुरूप है।”
तदनुसार, कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया।
केस डीटेल्स:
- केस टाइटल: डी.के. बनाम ए.वाई.
- केस नंबर: CRL.REV.P. 51/2025
- कोरम: जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा
- याचिकाकर्ता के वकील: श्री प्रशांत मेंदीरत्ता, सुश्री जानवी वोहरा, श्री अक्षत कौशिक, सुश्री वीनू सिंह, सुश्री वैष्णवी सक्सेना और सुश्री आम्या, एडवोकेट्स।
- प्रतिवादी के वकील: श्री नवल किशोर झा, एडवोकेट।

