इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने जमानत मामलों में पुलिस निर्देशों (Instructions) को मंगाने के लिए दशकों से चली आ रही मैनुअल “पैरोकार” व्यवस्था को समय और सरकारी धन की बर्बादी बताया है। कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक (DGP) को आदेश दिया है कि अब भविष्य में जमानत याचिकाओं से संबंधित निर्देश संयुक्त निदेशक (अभियोजन) को ईमेल के माध्यम से भेजे जाएं। इसके साथ ही, कोर्ट ने राज्य सरकार को इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए एक आईपीएस अधिकारी को नोडल अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया है।
रटवार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने यह महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए। कोर्ट ने पाया कि 2009 से ICJS परियोजना मौजूद होने और तकनीकी प्रगति के बावजूद, हाईकोर्ट में पुलिस से निर्देश प्राप्त करने की प्रक्रिया अभी भी पुरानी और धीमी है, जिससे न्याय मिलने में देरी होती है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया, जब सरकारी वकील (AGA) ने कोर्ट को सूचित किया कि नोटिस तामील होने के बावजूद संबंधित पुलिस थाने से निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं। इस देरी के कारणों को समझने के लिए, कोर्ट ने संयुक्त निदेशक (अभियोजन), हाईकोर्ट इलाहाबाद को तलब किया।
संयुक्त निदेशक ने कोर्ट को बताया कि वर्तमान में प्रक्रिया पूरी तरह मैनुअल है। सरकारी वकील के कार्यालय में जमानत नोटिस प्राप्त होने पर इसे जिले के पुलिस पैरोकार को सौंपा जाता है, जो इसे भौतिक रूप से जिले के पुलिस कार्यालय तक ले जाता है। वहां से इसे थाने भेजा जाता है, जहां विवेचक (I.O.) केस डायरी या टिप्पणी तैयार करते हैं, और फिर उसी लंबी प्रक्रिया से पैरोकार के माध्यम से निर्देश हाईकोर्ट तक पहुंचते हैं।
कोर्ट ने 20 नवंबर, 2025 के अपने आदेश में कहा था कि इस प्रक्रिया में दो सप्ताह से अधिक का समय लग जाता है, जबकि ICJS पोर्टल के माध्यम से यही जानकारी कुछ ही घंटों में प्राप्त की जा सकती है। कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि जिला अदालतों के पास CCTNS का एक्सेस है, लेकिन हाईकोर्ट के सरकारी वकील के कार्यालय के पास पुलिस पोर्टल या आपराधिक इतिहास (DCRB/SCRB) का सीधा एक्सेस नहीं है।
कोर्ट में प्रस्तुत दलीलें और स्पष्टीकरण
कोर्ट के आदेश के अनुपालन में, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित हुए और अपनी बात रखी:
- श्री नवीन अरोड़ा, अपर पुलिस महानिदेशक (तकनीकी), यूपी: उन्होंने कोर्ट को सूचित किया कि ICJS परियोजना के लिए नोडल एजेंसी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) है और तकनीकी भागीदार NIC है। उन्होंने बताया कि पुलिस की भूमिका केवल सहायता करने की है। उन्होंने आश्वासन दिया कि “ICJS-2.0 कुछ महीनों के भीतर लॉन्च किया जाएगा,” जिससे डेटा प्राप्त करने की समस्याएं हल हो जाएंगी।
- श्री शशि कांत शर्मा, उप महानिदेशक, NIC, नई दिल्ली: उन्होंने सुझाव दिया कि जब तक ICJS 2.0 पूरी तरह लागू नहीं हो जाता, तब तक एक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में संयुक्त निदेशक (अभियोजन) को आवश्यक डेटा तक पहुंच प्रदान की जा सकती है।
- श्री पी.सी. मीणा, जेल महानिदेशक, यूपी: उन्होंने बताया कि जिला जेल अधीक्षकों को ई-प्रिज़न पोर्टल पर कैदियों की प्रविष्टि करने का निर्देश दिया गया है ताकि रिहाई आदेश इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजे जा सकें।
संयुक्त निदेशक (अभियोजन) ने कोर्ट को अपनी मजबूरी बताते हुए कहा कि उनके कार्यालय में कर्मचारियों की भारी कमी है और केवल पांच लोग ही पूरा काम संभाल रहे हैं।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां
न्यायमूर्ति देशवाल ने ICJS परियोजना की धीमी गति पर गहरी चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि “इस परियोजना के लिए हजारों करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं और 16 साल से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन यह परियोजना अभी भी धीमी गति से चल रही है।”
कोर्ट ने कहा कि ICJS का उद्देश्य “वन डेटा वन एंट्री” (एक बार डेटा प्रविष्टि) के सिद्धांत को लागू करना है। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि ICJS के लागू न होने से विशिष्ट कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है:
- गैंगस्टर एक्ट: यूपी गिरोहबंद और समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) नियमावली, 2021 के नियम 5 के तहत गैंग चार्ट को ICJS और CCTNS पर अपलोड करना अनिवार्य है, जो अभी नहीं किया जा रहा है।
- BNSS: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) नियम, 2024 का नियम 31(3) ICJS के माध्यम से समन तामील करने का प्रावधान करता है, जो अभी बाधित है।
कोर्ट ने पैरोकारों के माध्यम से निर्देश भेजने की मैनुअल प्रक्रिया को “पुलिसकर्मियों के समय और जनता के पैसे की बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं” करार दिया।
हाईकोर्ट का निर्णय और निर्देश
कोर्ट ने जमानत प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और ICJS को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- नोडल आईपीएस अधिकारी की नियुक्ति: कोर्ट ने मुख्य सचिव, यूपी को निर्देश दिया कि वे श्री मोहम्मद इरफान अंसारी (IPS), जो पहले से ही हाईकोर्ट में नोडल अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं, या किसी अन्य उपयुक्त आईपीएस अधिकारी को ICJS प्लेटफॉर्म पर डेटा एकीकरण के लिए नोडल अधिकारी नामित करें।
- ईमेल से निर्देश: पुलिस महानिदेशक (DGP), यूपी को निर्देश दिया गया कि वे जमानत और आपराधिक मामलों में निर्देश मैनुअल पैरोकार प्रणाली के बजाय संयुक्त निदेशक (अभियोजन) को उनके ईमेल आईडी (jdhcprosecutionah-UP@nic.in) पर इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से भेजने के लिए आवश्यक आदेश जारी करें।
- स्टाफ की व्यवस्था: मुख्य सचिव को निर्देश दिया गया कि वे संयुक्त निदेशक (अभियोजन) के कार्यालय को पर्याप्त कर्मचारी उपलब्ध कराएं ताकि ICJS परियोजना को उचित रूप से लागू किया जा सके।
- NCRB को निर्देश: महानिदेशक, NCRB, नई दिल्ली को यूपी में ICJS परियोजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया गया।
कोर्ट ने श्री नवीन अरोड़ा, श्री शशि कांत शर्मा और श्री पी.सी. मीणा द्वारा दी गई सहायता की सराहना की। मुख्य जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने 18 दिसंबर, 2025 की तारीख तय की है।
केस विवरण:
- केस टाइटल: रटवार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- केस संख्या: क्रिमिनल मिसलेनियस बेल एप्लीकेशन संख्या 41021 ऑफ 2025
- न्यायाधीश: न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल
- आवेदक के वकील: सौरभ पांडेय
- प्रतिवादी के वकील: अखिलेश कुमार यादव, जी.ए.

