ट्रायल शुरू होने के बाद ‘उचित तत्परता’ साबित किए बिना लिखित कथन में संशोधन की अनुमति नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश VI नियम 17 के तहत, एक बार मुकदमे का ट्रायल (सुनवाई) शुरू हो जाने के बाद, प्लीडिंग्स में संशोधन की अनुमति केवल तभी दी जा सकती है जब वादी या प्रतिवादी ‘उचित तत्परता’ (Due Diligence) साबित कर सकें। जस्टिस गिरीश कठपालिया की पीठ ने निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें प्रतिवादी को ट्रायल के दौरान अपने ‘लिखित कथन’ (Written Statement) में संशोधन करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला ओम प्रकाश बनाम ब्रह्म सिंह से संबंधित है। याचिकाकर्ता (प्रतिवादी) ने निचली अदालत के 19 नवंबर, 2025 के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। निचली अदालत ने प्रतिवादी के आवेदन को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने अपने लिखित कथन में संशोधन की मांग की थी।

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि संशोधन का आवेदन तब दायर किया गया था जब वादी (Plaintiff) के सबूत दर्ज करने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और छह गवाहों की गवाही हो चुकी थी। मामला अब प्रतिवादी के सबूत दर्ज करने के चरण में था। याचिकाकर्ता ने अपने आवेदन में हाईकोर्ट के समक्ष दायर दो रिट याचिकाओं का संदर्भ जोड़ने की मांग की थी। उसका तर्क था कि चूंकि ये रिट याचिकाएं उसके मूल लिखित कथन को दाखिल करने के बाद दायर की गई थीं, इसलिए वह पहले इनका उल्लेख नहीं कर सका था।

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अदालत ने घटनाओं के निम्नलिखित क्रम को नोट किया:

  • लिखित कथन दाखिल: 04 अगस्त, 2023
  • विवादक (Issues) तय हुए: 01 फरवरी, 2024
  • ट्रायल शुरू हुआ: 09 अप्रैल, 2024
  • रिट याचिकाएं दायर: 19 दिसंबर, 2023 और 15 मार्च, 2024
  • संशोधन आवेदन दायर: 07 जुलाई, 2025

निचली अदालत ने सीपीसी के आदेश VI नियम 17 के परंतुक (Proviso) का हवाला देते हुए आवेदन को खारिज कर दिया था।

पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत का आदेश कानून की नजर में सही नहीं है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता उक्त दो रिट याचिकाओं में पक्षकार नहीं था, इसलिए उसे उन कार्यवाहियों की जानकारी नहीं थी। वकील ने दलील दी कि निचली अदालत ने आदेश VI नियम 17 के परंतुक में उपयोग किए गए ‘उचित तत्परता’ शब्द का अर्थ बहुत अधिक खींच दिया है।

यह भी तर्क दिया गया कि प्रतिवादी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह ट्रायल के दौरान विवाद से संबंधित शुरू होने वाली सभी कानूनी कार्यवाहियों की लगातार जांच करता रहे।

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हाईकोर्ट का विश्लेषण

जस्टिस गिरीश कठपालिया ने तारीखों का विश्लेषण करते हुए पाया कि भले ही रिट याचिकाएं लिखित कथन के बाद दायर की गई थीं, लेकिन वे ट्रायल शुरू होने (09 अप्रैल, 2024) से पहले ही अस्तित्व में आ चुकी थीं। पहली याचिका मुद्दे तय होने से पहले और दूसरी याचिका ट्रायल शुरू होने से पहले दायर की गई थी।

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि आदेश VI नियम 17 का परंतुक यह अनिवार्य करता है कि ट्रायल शुरू होने के बाद संशोधन की अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि अदालत इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती कि ‘उचित तत्परता’ के बावजूद पक्षकार ट्रायल शुरू होने से पहले मामला नहीं उठा सकता था।

हाल ही में ट्रांस एशियन इंडस्ट्रीज एक्सपोजिशन्स प्रा. लि. बनाम मैसर्स जीएस बरार एंड कंपनी (2025:DHC:10841) के मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि “एक बार ट्रायल शुरू हो जाने के बाद, संशोधन की अनुमति देने के लिए ‘उचित तत्परता’ ही मुख्य परीक्षण (Core Test) है।”

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा:

“रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि उचित तत्परता के बावजूद, याचिकाकर्ता/प्रतिवादी वादी के साक्ष्य समाप्त होने तक लिखित कथन में संशोधन की मांग नहीं कर सकता था। यहां तक कि इस बात की भी कोई चर्चा नहीं है कि उचित तत्परता के बावजूद, याचिकाकर्ता ट्रायल शुरू होने से पहले इस मामले को क्यों नहीं उठा सका।”

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अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने यह खुलासा नहीं किया कि उसे उन दो रिट याचिकाओं के बारे में कब और कैसे पता चला। यदि उसे लिखित कथन दाखिल करने के तुरंत बाद पता चल गया था, लेकिन उसने प्रतिवादी के साक्ष्य के चरण तक इंतजार किया, तो यह ‘तत्परता की कमी’ को दर्शाता है।

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि यदि इस चरण पर संशोधन की अनुमति दी जाती है, तो इससे वादी (प्रतिवादी) को गंभीर पूर्वाग्रह (Prejudice) होगा, क्योंकि उसने अपने सभी सबूत पेश कर दिए हैं। इससे ट्रायल में देरी होगी और प्रक्रिया लंबी खिंचेगी।

फैसला

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश में कोई खामी नहीं पाई और याचिका व लंबित आवेदनों को खारिज कर दिया।

केस डीटेल्स (Case Details)

  • केस टाइटल: ओम प्रकाश बनाम ब्रह्म सिंह
  • केस नंबर: CM(M) 2416/2025
  • कोरम: जस्टिस गिरीश कठपालिया

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