पटना हाई कोर्ट ने मुजफ्फरपुर के साहेबगंज थाना से जुड़े 28 साल पुराने डकैती मामले में कथित पुलिस निष्क्रियता को गंभीरता से लेते हुए थाना प्रभारी (SHO) और अनुसंधान पदाधिकारी (IO) को इस माह के अंत में अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति सत्यव्रत वर्मा ने यह आदेश पश्चिम चंपारण निवासी 72 वर्षीय उमाशंकर सिंह उर्फ उमा द्वारा दायर आपराधिक विविध याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। अदालत ने पुलिस अधिकारियों से यह स्पष्ट करने को कहा है कि न्यायालय द्वारा वारंट और कुर्की/जब्ती आदेश जारी किए जाने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
अभियोजन के अनुसार, 9 अगस्त 1997 को स्थानीय चौकीदार शत्रुघ्न राय और रमेश महतो ने साहेबगंज थाने की पुलिस को सूचना दी थी कि गopal तिवारी अपने सहयोगियों के साथ नयाटोला दोस्तपुर इलाके में डकैती की योजना बना रहा है। सूचना मिलने पर पुलिस ने छापेमारी की, जिसमें रामबाबू सिंह उर्फ विजय सिंह को एक लोडेड राइफल के साथ गिरफ्तार किया गया, जबकि अन्य आरोपी मौके से फरार हो गए।
पुलिस के अनुसार, उमाशंकर सिंह भी इस मामले में नामजद आरोपी था और घटना के बाद से फरार बताया गया। इसके बाद उसके खिलाफ न्यायालय से वारंट प्राप्त किया गया और वर्ष 2007 में कुर्की का आदेश भी लिया गया। आरोपी को पकड़ने के लिए विज्ञापन भी प्रकाशित किया गया, लेकिन इसके बावजूद कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई और मामला वर्षों तक लंबित बना रहा।
सुनवाई के दौरान, अपर लोक अभियोजक (APP) ने SHO और IO के निर्देश पर अदालत को बताया कि आरोपी के विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 82 की प्रक्रिया वर्ष 2001 में तथा धारा 83 की प्रक्रिया वर्ष 2007 में जारी की गई थी। यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी और वह इन कार्यवाहियों में अनुपस्थित रहा।
वहीं, उमाशंकर सिंह ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि धारा 82 और 83 की कोई भी प्रक्रिया वास्तव में कभी निष्पादित नहीं की गई। उनका कहना था कि यदि वास्तव में कुर्की की कार्रवाई होती, तो वह वर्ष 2007 में ही आत्मसमर्पण कर देते।
याचिकाकर्ता ने FIR में गंभीर त्रुटियों की ओर भी अदालत का ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि प्राथमिकी में उनके पिता का नाम और पूरा पता दर्ज नहीं है, जो पुलिस की यांत्रिक और लापरवाह कार्यशैली को दर्शाता है। उनके वकील ने यह भी दलील दी कि FIR में केवल “केसरिया” थाना लिखा गया है, जिला का उल्लेख नहीं किया गया, जबकि याचिकाकर्ता पूर्वी चंपारण के कल्याणपुर थाना क्षेत्र का निवासी है।
यह भी तर्क दिया गया कि यदि धारा 83 CrPC की कार्रवाई वास्तव में हुई होती, तो पुलिस को घर-गृहस्थी की वस्तुओं की जब्ती करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।
लगभग तीन दशकों तक लंबित रहे इस मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट ने गंभीर चिंता जताई। अदालत ने कहा कि न्यायालय के आदेशों के बावजूद वर्षों तक कोई ठोस कदम न उठाया जाना प्रथम दृष्टया लापरवाही को दर्शाता है।
इसी के मद्देनज़र, हाईकोर्ट ने साहेबगंज थाने के SHO और IO को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि 28 वर्षों तक अदालत की प्रक्रियाओं को प्रभावी ढंग से लागू क्यों नहीं किया गया।
अब यह मामला इस माह के अंत में फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होगा, जहां अदालत पुलिस अधिकारियों से लंबित मामले में जवाबदेही तय करने पर विचार करेगी।

