बदलती परिस्थितियों में जुवेनाइल की दूसरी रिवीजन याचिका सुनवाई योग्य; पुनर्वास दृष्टिकोण अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत मंज़ूर की

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि परिस्थितियां बदलती हैं, जैसे कि जांच पूरी हो जाना या हिरासत की लंबी अवधि, तो किशोर (Juvenile) द्वारा जमानत के लिए दायर दूसरी रिवीजन याचिका सुनवाई योग्य (maintainable) है। शीर्ष अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक किशोर की याचिका को केवल यह कहकर खारिज कर दिया गया था कि यह बिना किसी नए आधार के दायर दूसरी रिवीजन है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील राजस्थान हाईकोर्ट (जयपुर पीठ) के 17 सितंबर, 2025 के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने आपराधिक रिवीजन याचिका संख्या 1297/2025 को खारिज करते हुए किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जेजे एक्ट) के तहत याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को नामंजूर करने वाले आदेश की पुष्टि की थी।

मामले का घटनाक्रम तब शुरू हुआ जब याचिकाकर्ता (जो कि एक किशोर है) की पहली जमानत याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि उसकी रिहाई उसे “बुरी संगति” में डाल सकती है। जेजे एक्ट की धारा 101 के तहत इस अस्वीकृति के खिलाफ अपील 13 फरवरी, 2025 को खारिज कर दी गई थी, और इसके बाद धारा 102 के तहत दायर रिवीजन याचिका भी 22 अप्रैल, 2025 को खारिज हो गई थी।

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हालांकि, जांच पूरी होने के बाद, याचिकाकर्ता ने जमानत के लिए नए सिरे से आवेदन किया। इस बाद के आवेदन को 24 जून, 2025 को खारिज कर दिया गया और संबंधित अपील 14 जुलाई, 2025 को खारिज कर दी गई। इसके परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने याचिका को यह मानते हुए खारिज कर दिया कि यह समान आधारों पर दूसरी रिवीजन है और इसलिए पोषणीय नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने हाईकोर्ट के तर्क की आलोचनात्मक जांच की। पीठ ने पाया कि हाईकोर्ट ने यह मानने में त्रुटि की है कि विषयगत रिवीजन एक दूसरी रिवीजन होने के कारण सुनवाई योग्य नहीं है।

अदालत ने इस निष्कर्ष के लिए तीन स्पष्ट कारण बताए:

  1. अलग वाद कारण (Distinct Cause of Action): कोर्ट ने नोट किया कि पहली रिवीजन उस जमानत याचिका की अस्वीकृति से उत्पन्न हुई थी जो जांच लंबित रहने के दौरान दायर की गई थी, जबकि वर्तमान याचिका जांच पूरी होने के बाद दायर की गई थी।
  2. दूसरी जमानत पर कोई रोक नहीं: पीठ ने स्पष्ट किया कि दूसरी जमानत अर्जी दाखिल करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है। कोर्ट ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि दूसरी जमानत प्रार्थना पर नए आधारों पर विचार करना पड़ सकता है। लेकिन, जमानत के संदर्भ में, हिरासत की अवधि, परिस्थितियों में, एक नया आधार बन सकती है।” कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह विशेष रूप से “एक किशोर के संदर्भ में प्रासंगिक है जहां जमानत नियम है और इसे अस्वीकार करना एक अपवाद है।”
  3. बदली हुई परिस्थितियाँ: कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दूसरे आवेदन के समय, जांच पूरी हो चुकी थी, और सह-आरोपी (जो एक किशोर भी था) को पहले ही जमानत मिल चुकी थी।
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गुण-दोष के आधार पर निर्णय

जमानत याचिका पर गुण-दोष के आधार पर फैसला करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड पर रखी गई सामाजिक जांच रिपोर्ट (Social Investigation Report) पर भरोसा किया। कोर्ट ने नोट किया कि रिपोर्ट में किशोर के अपने परिवार में पुनर्वास को उचित माना गया है। इसके अलावा, रिपोर्ट में याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों के किसी भी आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं किया गया है और न ही यह सुझाव दिया गया है कि उसकी रिहाई से वह बुरी संगति में पड़ जाएगा।

पीठ ने टिप्पणी की:

“ऐसी परिस्थितियों में, हमारे विचार में, हाईकोर्ट को जेजे एक्ट की धारा 12 के जनादेश को ध्यान में रखते हुए अपीलकर्ता को जमानत दे देनी चाहिए थी।”

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के 17 सितंबर, 2025 के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि अपीलकर्ता को “बिना किसी जमानती (surety) के जमानत पर रिहा किया जाए।”

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इसके अतिरिक्त, किशोर के निरंतर कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए, कोर्ट ने क्षेत्राधिकार वाले किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) को निर्देश दिया कि वह परिवीक्षा अधिकारी (Probation Officer) को “किशोर को निगरानी में रखने और उसके आचरण के बारे में बोर्ड को आवधिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने” के लिए उचित निर्देश जारी करे।

केस डीटेल्स:

  • केस टाइटल: विधि विरुद्ध किशोर ‘एए’ बनाम राजस्थान राज्य
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर [SLP (Crl.) No. 18636/2025 से उद्भूत]
  • कोरम: माननीय जस्टिस मनोज मिश्रा और माननीय जस्टिस जॉयमाल्या बागची
  • याचिकाकर्ता के वकील: सुश्री असीमा गुप्ता, श्री पंकज सिंघल, श्री चंदन कश्यप, सुश्री हर्षिता राज, श्री मोनू कुमार, श्री आयुष आनंद (एओआर)
  • प्रतिवादी के वकील: सुश्री संस्कृति पाठक (ए.ए.जी.), सुश्री शगुफा खान, श्री अमन प्रसाद, सुश्री निधि जसवाल (एओआर)

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