एक महत्वपूर्ण फैसले में, चंडीगढ़ की जिला अदालत ने अपहरण और बलात्कार के आरोपों का सामना कर रहे एक व्यक्ति को बरी कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कथित पीड़िता शादी के रिसेप्शन की तस्वीरों में “बेहद खुश” नजर आ रही थी, जहां करीब 200 लोग मौजूद थे।
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश डॉ. यशिका की अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि घटना के समय लड़की नाबालिग थी। नतीजतन, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि लड़की अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ सहमति से संबंध बनाने के लिए स्वतंत्र थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 14 मई, 2023 को लड़की के पिता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से शुरू हुआ था। पिता ने आरोप लगाया था कि उनकी 15 वर्षीय बेटी 12 मई को बिना किसी को बताए घर से चली गई थी। उन्होंने आरोपी पर शादी का झांसा देकर उसे बहला-फुसलाकर ले जाने का आरोप लगाया था।
शिकायत के बाद, पुलिस ने आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) और 376(2)(n) (दुष्कर्म) के साथ-साथ पॉक्सो (POCSO) एक्ट की धारा 4 और 6 के तहत एफआईआर दर्ज की और चार्जशीट दाखिल की। अभियोजन पक्ष ने मेडिकल परीक्षाओं पर भरोसा जताया, जिसमें एक ओसिफिकेशन टेस्ट (हड्डी की जांच) शामिल था, जिसने पीड़िता की हड्डियों की उम्र 15 से 16 वर्ष और दांतों की उम्र 14 से 16 वर्ष के बीच होने का अनुमान लगाया था।
अभियोजन पक्ष का तर्क था कि आरोपी ने पीड़िता को उसके अभिभावकों की हिरासत से जबरन ले जाकर दो साल तक उसके साथ कई बार जबरन शारीरिक संबंध बनाए। हालांकि, आरोपी ने इन आरोपों को स्वीकार नहीं किया।
उम्र का निर्धारण और कोर्ट का तर्क
फैसले का एक मुख्य पहलू पीड़िता की उम्र का निर्धारण था। कोर्ट ने नोट किया कि लड़की के नाबालिग होने के दावे को साबित करने के लिए स्कूल रिकॉर्ड या नगर निगम के जन्म प्रमाण पत्र जैसे कोई ठोस दस्तावेजी सबूत पेश नहीं किए गए।
मेडिकल सबूतों पर विचार करते हुए, जज डॉ. यशिका ने मेडिकल उम्र के अनुमान में “मार्जिन ऑफ एरर” (त्रुटि की संभावना) के कानूनी सिद्धांत को लागू किया। कोर्ट ने कहा:
“पीड़िता की अनुमानित उम्र, जो 15 से 16.5 वर्ष है, पर दो साल के ‘मार्जिन ऑफ एरर’ के सिद्धांत को लागू करने पर, जांच के समय पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक मानी जाती है… इसलिए यदि हम अपराध की तारीख 12 मई, 2023 मानते हैं, तो उस समय पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक थी।”
सहमति और आचरण पर कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने जबरदस्ती के आरोपों को लेकर अभियोजन पक्ष की कहानी में महत्वपूर्ण विरोधाभास पाया। जज ने शादी के रिसेप्शन के विजुअल सबूतों (तस्वीरों) पर कड़ा भरोसा जताया और नोट किया कि यह एक बड़ा आयोजन था जिसमें 200 लोग शामिल हुए थे।
फैसले में कहा गया, “शादी और रिसेप्शन की तस्वीरों में वह बहुत खुश दिख रही है।”
कोर्ट ने आगे कहा कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि आरोपी ने लड़की की इच्छा के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाए। क्रॉस-एग्जामिनेशन (जिरह) के दौरान यह बात सामने आई कि लड़की का घर आरोपी के घर से केवल 5-6 घर दूर था। कोर्ट का तर्क था कि अगर उसे उसकी मर्जी के खिलाफ रखा गया होता, तो उसके पास घर लौटने या शोर मचाने का पूरा अवसर था।
कोर्ट ने कहा, “जहां तक पीड़िता के इस आरोप का सवाल है कि आरोपी ने उसका रेप किया, तो यहां लड़की एक बालिग थी, जिसे बच्चा साबित नहीं किया जा सका। ऐसी परिस्थितियों में, यदि उसके साथ आरोपी द्वारा जबरदस्ती की गई होती… तो उसके पास शोर मचाने का हर अवसर था, लेकिन उसने ऐसा कभी नहीं किया, जो यह दर्शाता है कि वह सहमति से शामिल थी।”
फैसला
पीड़िता और उसके पिता के बयानों में “भौतिक विरोधाभास” (Material Contradictions) को उजागर करते हुए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि झूठे फंसाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जज ने टिप्पणी की कि ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़िता और उसके पिता ने बहला-फुसलाकर ले जाने के आरोप के बारे में “कहानी को तोड़-मरोड़ कर” पेश किया।
पीड़िता के आचरण से अंतिम निष्कर्ष निकालते हुए, कोर्ट ने कहा कि वह संभवतः अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी और उसे जबरन अवैध संबंधों के इरादे से कभी अपहरण नहीं किया गया था। इन निष्कर्षों के आधार पर, कोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

