सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 30 के तहत “त्रुटियों के सुधार” की आड़ में दशकों पहले सुलझाए गए राजस्व नक्शे (Revenue Map) के विवादों को फिर से नहीं खोला जा सकता है। जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मामले को नए सिरे से विचार के लिए वापस (Remand) भेजा गया था। शीर्ष अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि “हायर कोर्ट द्वारा अनावश्यक रिमांड मुकदमेबाजी का एक नया दौर पैदा करता है, जिससे बचा जाना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने सुवेज सिंह द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के 21 सितंबर, 2023 के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में अपर कलेक्टर और अपर आयुक्त के उन निष्कर्षों को रद्द कर दिया था, जिनमें निजी प्रतिवादियों (Respondents) के नक्शा सुधार आवेदन को खारिज कर दिया गया था। राजस्व अधिकारियों ने इस आधार पर आवेदन खारिज किया था कि यह मुद्दा पहले ही पिछली कार्यवाही में तय हो चुका था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने खुद को “गलत निर्देशित” (misdirected) किया और संहिता की धारा 30 की गलत व्याख्या की, जिससे प्रतिवादियों को 17 साल पहले तय हो चुके मामले को फिर से खोलने का मौका मिल गया।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद प्लॉट नंबर 22 के नक्शे में सुधार से संबंधित है। निर्णय में दर्ज तथ्यों के अनुसार, निजी प्रतिवादियों ने कलेक्टर के समक्ष प्लॉट नंबर 22/3 के नक्शे में सुधार के लिए आवेदन किया था। इस आवेदन को 27 मई, 1998 को खारिज कर दिया गया था। यह निर्णय एक आयोग की रिपोर्ट (Commission’s Report) पर आधारित था, जिसमें यह स्थापित हुआ था कि अपीलकर्ता प्लॉट नंबर 22/1 और 22/2 पर काबिज थे, जबकि निजी प्रतिवादी प्लॉट नंबर 22/3 पर। इस आदेश के खिलाफ की गई अपील को भी अपर आयुक्त ने 4 सितंबर, 2001 को खारिज कर दिया था।
लगभग 17 साल बाद, उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के लागू होने के बाद, निजी प्रतिवादियों ने धारा 30/38 के तहत उसी राहत यानी राजस्व नक्शे में सुधार की मांग करते हुए एक नया आवेदन दायर किया।
अपर कलेक्टर (न्यायिक), पीलीभीत (प्रतिवादी संख्या 4) ने 15 जनवरी, 2020 को इस नए आवेदन को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि उसी राहत के लिए पहले किए गए प्रयास को अस्वीकार कर दिया गया था। इस आदेश को अपर आयुक्त (प्रशासन) (प्रतिवादी संख्या 5) ने 25 अप्रैल, 2023 को बरकरार रखा। हालांकि, एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इन आदेशों को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता (सुवेज सिंह) के वकील ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट का हस्तक्षेप अनुचित था क्योंकि 4 सितंबर, 2001 का आदेश अंतिम रूप ले चुका था। यह दलील दी गई कि निजी प्रतिवादी एक तय मुद्दे को फिर से खोलने का प्रयास कर रहे थे और यह “एक चौड़ी सड़क पर अपने प्लॉट का रास्ता खोलने का लालच” था। अपीलकर्ता ने जोर देकर कहा कि संहिता की धारा 30 केवल “त्रुटियों या लोप” (errors or omissions) पर लागू होती है, जो इस मामले में मौजूद नहीं थे।
दूसरी ओर, निजी प्रतिवादियों के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के सत्यध्यान घोषाल और अन्य बनाम देवराजिन देबी (श्रीमती) और अन्य (AIR 1960 SC 941) के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि अदालत आमतौर पर रिमांड आदेशों में हस्तक्षेप नहीं करती है। उन्होंने तर्क दिया कि धारा 30 कलेक्टर को सालाना नक्शे बनाए रखने का निर्देश देती है, जिसका अर्थ है कि मामले पर दोबारा गौर किया जा सकता है और रेस ज्यूडिकाटा (Res Judicata) का सिद्धांत सख्ती से लागू नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 30 का बारीकी से विश्लेषण किया, जो “नक्शा और फील्ड बुक के रखरखाव” से संबंधित है। कोर्ट ने पाया कि जहां धारा का पहला भाग सालाना बदलावों (बिक्री, विरासत आदि के कारण) को रिकॉर्ड करने से संबंधित है, वहीं दूसरा भाग पता लगाई गई त्रुटियों को सुधारने से संबंधित है।
धारा 30 के दायरे पर: पीठ ने स्पष्ट किया:
“दूसरा भाग पता लगाई गई त्रुटियों और उनके सुधार के बारे में बात करता है। यह किसी भी समय हो सकता है… यह ऐसा मामला नहीं था जहां राजस्व रिकॉर्ड में कोई त्रुटि पाई गई हो जो संहिता की धारा 30 के तहत सुधार की हकदार हो। बल्कि, निजी प्रतिवादियों का प्रयास उनके द्वारा खरीदे गए प्लॉट का स्थान (location) बदलना था, जो अधिक मूल्यवान हो सकता है। यह संहिता की धारा 30 के तहत परिकल्पित सुधार के दायरे में नहीं आता है।”
तय मुद्दों को फिर से खोलने के प्रयास पर: अदालत ने कहा कि निजी प्रतिवादियों के विक्रेता केवल वही भूमि बेच सकते थे जो उनके कब्जे में थी। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“निजी प्रतिवादियों के पास नक्शे में सुधार के लिए आवेदन करने का कोई कारण (cause of action) नहीं था, जब उन्होंने प्लॉट की स्थिति (location) जानते हुए भी अपनी खुली आँखों से उसे खरीदा था।”
अदालत ने आगे कहा कि निजी प्रतिवादियों को 17 साल से अधिक के अंतराल के बाद उसी मुद्दे को उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने धारा 30 के अर्थ को “गलत पढ़ा और गलत व्याख्या की”।
अनावश्यक रिमांड पर: रिमांड आदेशों में हस्तक्षेप न करने के प्रतिवादियों के तर्क को संबोधित करते हुए, कोर्ट ने इस मामले को सत्यध्यान घोषाल के मामले से अलग बताया। पीठ ने जोर देकर कहा कि रिमांड “गलत आधार” पर आधारित था और इससे केवल अनावश्यक मुकदमेबाजी ही पैदा होगी।
कोर्ट ने एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ, उत्तर प्रदेश राज्य बनाम सुधीर कुमार सिंह, और कृष्णदत्त अवस्थी बनाम मध्य प्रदेश राज्य का हवाला देते हुए कहा:
“विचार मुकदमेबाजी को कम करने का है, न कि उसे पैदा करने का। हायर कोर्ट द्वारा किसी भी अनावश्यक रिमांड से मुकदमेबाजी का एक नया दौर शुरू होता है, जिससे बचा जाना चाहिए।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट के 21 सितंबर, 2023 के आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया। इसके साथ ही राजस्व अधिकारियों के उन आदेशों को बहाल कर दिया गया, जिनमें नक्शा सुधार के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
केस विवरण:
- केस शीर्षक: सुवेज सिंह बनाम राम नरेश और अन्य
- साइटेशन: 2025 INSC 1405
- अपील संख्या: सिविल अपील (S.L.P. (C) No. 1681 of 2024 से उत्पन्न)

