इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मानहानि मामले में ‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट’ का हवाला देने पर सीजेएम से जवाब तलब किया; कार्यवाही पर रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने हरदोई के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) द्वारा जारी एक समन आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने यह कदम तब उठाया जब यह संज्ञान में आया कि मजिस्ट्रेट ने मानहानि के मामले में समन जारी करते समय ‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट’ का अवलोकन करने की बात अपने आदेश में लिखी थी। न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ल ने इसे निचली अदालत द्वारा “बिना सोचे-समझे” (non-application of mind) पारित आदेश करार दिया है।

हाईकोर्ट भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने पाया कि मजिस्ट्रेट ने यंत्रवत तरीके से समन आदेश जारी किया और मानहानि जैसे मामले में अप्रासंगिक दस्तावेजों, जैसे कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट, का जिक्र किया। परिणामस्वरुप, कोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगाते हुए संबंधित न्यायिक अधिकारी से स्पष्टीकरण मांग लिया है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, विकर्ण प्रताप सिंह, ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए 3 अप्रैल, 2025 के समन आदेश, 11 दिसंबर, 2024 को जांच अधिकारी द्वारा दायर आरोप पत्र (चार्जशीट) और आपराधिक वाद संख्या 24449/2025 (स्टेट ऑफ यूपी बनाम विकर्ण प्रताप सिंह) की पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

यह मामला मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हरदोई की अदालत में लंबित है, जो अपराध संख्या 0546/2024 से उत्पन्न हुआ है। इसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 (मानहानि), 351(3) (आपराधिक धमकी), और 352 (जानबूझकर अपमान) के तहत अपराध शामिल हैं। ये धाराएं भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499, 500, 501, 502, 506 और 504 के समान हैं।

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पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता के विद्वान अधिवक्ता, श्री नदीम मुर्तजा, ने समन आदेश की वैधता को मुख्य रूप से दो आधारों पर चुनौती दी:

  1. मस्तिष्क का प्रयोग नहीं (Non-Application of Mind): अधिवक्ता ने कोर्ट का ध्यान समन आदेश के उस हिस्से की ओर आकर्षित किया जहां सीजेएम, हरदोई ने दर्ज किया था कि उन्होंने “मेडिकल रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि का अवलोकन किया है।” श्री मुर्तजा ने तर्क दिया कि “बीएनएस की धारा 356 के तहत समन आदेश पारित करते समय पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने का कोई औचित्य नहीं था।” उन्होंने कहा कि यह त्रुटि स्पष्ट करती है कि यह आदेश “बिना सोचे-समझे पारित किया गया है।”
  2. प्रक्रियात्मक रोक (Procedural Embargo): यह भी दलील दी गई कि बीएनएस की धारा 356 के तहत आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए कोर्ट को “बीएनएसएस की धारा 222 के तहत परिकल्पित परिवाद (complaint) प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना आवश्यक है।” अधिवक्ता ने कहा कि धारा 222 पुलिस रिपोर्ट पर धारा 356 बीएनएस के तहत अपराध का संज्ञान लेने पर रोक लगाती है।
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कोर्ट का विश्लेषण

न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ल ने दलीलों पर विचार किया और कहा कि “मामले में विचार करने की आवश्यकता है।” कोर्ट ने मानहानि के मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए समन आदेश पारित करने के तरीके पर कड़ी आपत्ति जताई।

न्यायिक अधिकारी के आचरण के संबंध में एक सख्त टिप्पणी करते हुए, कोर्ट ने कहा:

“यद्यपि यह एक न्यायिक कार्यवाही है, लेकिन यह न्यायालय अपनी आंखें नहीं मूंद सकता जब न्यायिक अधिकारियों द्वारा बिना मस्तिष्क का प्रयोग किए (without application of mind) ऐसे आदेश पारित किए जाते हैं।”

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निर्णय

दलीलों और रिकॉर्ड पर मौजूद स्पष्ट त्रुटि को देखते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश पारित किए:

  • कार्यवाही पर रोक: मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हरदोई द्वारा पारित 3 अप्रैल, 2025 के समन आदेश का प्रभाव और संचालन याचिकाकर्ता के संबंध में अगली सुनवाई की तारीख तक स्थगित (stayed) रहेगा।
  • स्पष्टीकरण तलब: रजिस्ट्रार (कम्प्लायंस) को निर्देश दिया गया है कि वे संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को इस आदेश से अवगत कराएं। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि मजिस्ट्रेट “अगली सुनवाई से पहले एक सीलबंद लिफाफे में अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें।”
  • नोटिस: कोर्ट ने प्रतिवादी संख्या 2 को नोटिस जारी किया और प्रतिवादियों को जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।

मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी, 2026 को सूचीबद्ध की गई है।

केस विवरण:

  • केस शीर्षक: विकर्ण प्रताप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
  • केस संख्या: APPLICATION U/S 528 BNSS No. 1953 of 2025
  • पीठ: न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ल

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