बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने गोंदिया जिले स्थित मस्जिद गौसिया की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें नमाज़ के लिए लाउडस्पीकर इस्तेमाल की अनुमति मांगी गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि धर्म का पालन करने के लिए लाउडस्पीकर का प्रयोग अधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता।
न्यायमूर्ति अनिल पंसारे और न्यायमूर्ति राज वकोड़े की खंडपीठ ने 1 दिसंबर को पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी धर्म में यह नहीं कहा गया है कि प्रार्थना ध्वनि विस्तारक यंत्र या ढोल–नगाड़ों के माध्यम से ही की जानी चाहिए। अदालत ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता यह साबित करने के लिए कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं कर पाया कि धार्मिक आचरण के लिए लाउडस्पीकर का प्रयोग आवश्यक या अनिवार्य है।
अदालत ने कहा, “अतः याचिकाकर्ता लाउडस्पीकर लगाने की राहत पाने का हकदार नहीं है। याचिका खारिज की जाती है।”
खण्डपीठ ने शोर प्रदूषण को “सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए गंभीर खतरा” बताते हुए इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया और महाराष्ट्र सरकार से प्रभावी समाधान प्रस्तुत करने को कहा।
अदालत ने कहा कि लगातार तेज़ आवाज़ के संपर्क में आने से शरीर में ‘फाइट या फ्लाइट’ प्रतिक्रिया सक्रिय होती है और कॉर्टिसोल जैसे हानिकारक रसायन रक्त में प्रवेश कर जाते हैं। समय के साथ इनका प्रभाव बढ़कर हृदय रोग, आक्रामक प्रवृत्ति, लगातार थकान, सिरदर्द, उच्च रक्तचाप, मानसिक बीमारी और चिंता जैसी समस्याओं का कारण बनता है। अदालत ने यह भी चेताया कि 120 डेसीबल से अधिक ध्वनि होने पर कान के पर्दे फटने और स्थायी क्षति का खतरा रहता है।
अदालत ने नागपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रमों और समारोहों के दौरान शोर प्रदूषण के नियमों के उल्लंघन पर भी चिंता जताई। अदालत ने कहा, “विभिन्न उत्सवों की अनुमति देते समय इन स्थलों को यह ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए कि नियमों का पालन सुनिश्चित किया जाए।”
खंडपीठ ने यह भी उल्लेख किया कि कई धार्मिक स्थलों पर भजनों का प्रसारण लाउडस्पीकर पर नियमों की पूरी तरह अनदेखी करते हुए किया जाता है।
अदालत ने उम्मीद जताई कि राज्य सरकार इस गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के प्रति संवेदनशील दिखेगी और प्रभावी समाधान लेकर सामने आएगी।

