इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 528 के तहत दायर एक याचिका को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि चार्जशीट (आरोप पत्र) दाखिल हो चुकी है और कोर्ट ने उस पर संज्ञान ले लिया है, तो चार्जशीट और संज्ञान आदेश को रिकॉर्ड पर लाए बिना केवल एफआईआर (FIR) रद्द करने की याचिका पोषणीय (maintainable) नहीं है।
न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार सिन्हा की पीठ ने विश्व बंधु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य (आवेदन धारा 482 संख्या 22266 वर्ष 2024) के मामले में यह निर्णय 3 दिसंबर, 2025 को सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
याची विश्व बंधु ने मेरठ के सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन में 14 जून, 2024 को दर्ज एफआईआर संख्या 192/2024 को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। यह एफआईआर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मेरठ के धारा 156(3) सीआरपीसी (CrPC) के तहत दिए गए आदेश के बाद भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत दर्ज की गई थी।
शिकायतकर्ता, जो नवयुग सहकारी आवास समिति के प्रबंधक हैं, ने आरोप लगाया कि याची ने अन्य लोगों के साथ साजिश रचकर एक फर्जी ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ तैयार की और 12 सितंबर, 1988 को एक फर्जी बैनामा (Sale Deed) निष्पादित किया। यह भूखंड मूल रूप से 1978 में हरेराम दुआ नामक व्यक्ति को आवंटित किया गया था। एफआईआर में कहा गया कि मूल आवंटी ने कभी ऐसी कोई पावर ऑफ अटॉर्नी निष्पादित नहीं की थी।
पक्षों की दलीलें
याची का पक्ष: याची के अधिवक्ता श्री आलोक सक्सेना ने तर्क दिया कि वर्तमान एफआईआर दर्ज करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। उन्होंने कहा कि समान तथ्यों पर पहले ही एक एफआईआर (संख्या 0039/2022) दर्ज की जा चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट द्वारा टी.टी. एंटनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में प्रतिपादित सिद्धांत के अनुसार उसी अपराध के लिए दूसरी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती।
अधिवक्ता ने यह भी दलील दी कि यह विवाद मूल रूप से दीवानी (Civil) प्रकृति का है और यूपी कोआपरेटिव सोसाइटीज एक्ट के तहत मध्यस्थ (Arbitrator) के समक्ष लंबित है। उन्होंने जी. सागर सूरी और परमजीत बत्रा के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जब किसी दीवानी विवाद को आपराधिक रंग दिया जाता है, तो हाईकोर्ट को कार्यवाही रद्द कर देनी चाहिए। इसके अलावा, शीला सेबेस्टियन के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि याची ने कोई फर्जी दस्तावेज नहीं बनाया है, इसलिए जालसाजी का अपराध नहीं बनता।
विपक्षी का पक्ष: विपक्षी संख्या 2 के अधिवक्ता श्री सुनील कुमार मिश्रा और राज्य सरकार के अधिवक्ता (AGA) श्री बी.पी. सिंह ने याचिका की पोषणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि याची ने कोर्ट को गुमराह किया है और कथित पावर ऑफ अटॉर्नी एक मनगढ़ंत दस्तावेज है।
विपक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ (Full Bench) के राम लाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि धारा 528 BNSS (पूर्व में धारा 482 CrPC) के तहत यह आवेदन पोषणीय नहीं है।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
हाईकोर्ट ने मुख्य रूप से इस बात पर विचार किया कि क्या मौजूदा परिस्थितियों में धारा 528 BNSS के तहत याचिका स्वीकार्य है या नहीं। न्यायमूर्ति सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले प्रज्ञा प्रांजल कुलकर्णी बनाम महाराष्ट्र राज्य (विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) संख्या 13424/2025, दिनांक 03.09.2025) का उल्लेख किया।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय को उद्धृत करते हुए कहा:
“जब तक अपराध का संज्ञान नहीं लिया जाता, तब तक अनुच्छेद 226 के तहत एफआईआर/चार्जशीट रद्द करने का आदेश जारी किया जा सकता है; हालांकि, एक बार जब संज्ञान लेने का न्यायिक आदेश आ जाता है, तो अनुच्छेद 226 की शक्ति उपलब्ध नहीं होती। तब धारा 528 BNSS के तहत शक्ति का प्रयोग न केवल एफआईआर/चार्जशीट को बल्कि संज्ञान लेने वाले आदेश को भी रद्द करने के लिए किया जा सकता है, बशर्ते उसे चुनौती देने के लिए आवश्यक दलीलों के साथ रिकॉर्ड पर रखा जाए।”
हाईकोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामले में याची ने अपनी प्रार्थना में केवल एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। कोर्ट ने कहा:
“वर्तमान आवेदन में की गई प्रार्थनाओं के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि आवेदक ने केवल एफआईआर रद्द करने की मांग की है और उसने सक्षम न्यायालय द्वारा चार्जशीट पर लिए गए संज्ञान और चार्जशीट को रिकॉर्ड पर नहीं रखा है।”
प्रज्ञा प्रांजल कुलकर्णी मामले के सिद्धांत को लागू करते हुए, हाईकोर्ट ने माना कि चूंकि चार्जशीट और संज्ञान आदेश को रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है, इसलिए धारा 528 BNSS का उपयोग करके एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि आवेदन पोषणीय ही नहीं है, इसलिए मामले के गुण-दोष (merits) पर विचार नहीं किया जा सकता। तदनुसार, हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
केस विवरण:
- केस का नाम: विश्व बंधु बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य
- आवेदन संख्या: 482 संख्या 22266 वर्ष 2024
- पीठ: न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार सिन्हा
- याची के अधिवक्ता: आलोक सक्सेना
- विपक्षी के अधिवक्ता: आयुष मिश्रा, सुनील कुमार मिश्रा, जी.ए.

