केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि एक मुस्लिम पति अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण (Maintenance) देने की अपनी वैधानिक जिम्मेदारी से यह कहकर नहीं बच सकता कि उसने दूसरी शादी कर ली है या उसकी पत्नी की देखभाल उसका बेटा कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी का भरण-पोषण पाने का अधिकार उसके बच्चों द्वारा उसे सहारा देने की जिम्मेदारी से पूरी तरह स्वतंत्र है।
जस्टिस डॉ. कौसर एडप्पागथ की एकल पीठ ने पति द्वारा दायर दो पुनरीक्षण याचिकाओं (Revision Petitions) को खारिज कर दिया। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उन आदेशों को बरकरार रखा, जिसमें पति को अपनी पहली पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था और बेटे से भरण-पोषण की मांग करने वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह कानूनी विवाद दो याचिकाओं से जुड़ा था:
- RPFC संख्या 398/2018: इसमें त्रिशूर फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पति को अपनी पहली पत्नी को 5,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।
- RPFC संख्या 366/2024: इसमें कुन्नमकुलम फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पति द्वारा अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था।
पति और पहली पत्नी का विवाह 20 अप्रैल, 1983 को हुआ था और उनके तीन बच्चे हैं। दोनों पक्ष 2015 से अलग रह रहे हैं। पति ने स्वीकार किया है कि उसने दूसरी शादी कर ली है और वह अपनी दूसरी पत्नी के साथ रहता है, जबकि बेटा अपनी मां के साथ रहता है।
पक्षों की दलीलें
पति के वकील ने तर्क दिया कि वह बेरोजगार है और उसके पास भरण-पोषण देने के लिए साधन नहीं हैं। उसने यह भी दावा किया कि उसकी पहली पत्नी एक ब्यूटी पार्लर चलाती है और अपनी आजीविका कमाती है, हालांकि कोर्ट ने नोट किया कि “इस दावे को साबित करने के लिए कोई भी सबूत पेश नहीं किया गया।”
इसके अलावा, पति ने तर्क दिया कि चूंकि बेटा अपनी मां को भरण-पोषण प्रदान कर रहा है, इसलिए उसके खिलाफ दावा कानूनी रूप से मान्य नहीं है। उसने यह भी दलील दी कि पत्नी ने 2 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125(4) के तहत बिना किसी पर्याप्त कारण के 2015 में उसका साथ छोड़ दिया था, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है। अंत में, उसने यह भी कहा कि उसे अपनी दूसरी पत्नी का भी भरण-पोषण करना होता है।
इसके विपरीत, पत्नी का कहना था कि उसके पास कोई नौकरी या आय का स्रोत नहीं है, जबकि पति ने 40 वर्षों से अधिक समय तक खाड़ी देश (Gulf) में काम किया है और उसके पास पर्याप्त साधन हैं।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
जस्टिस एडप्पागथ ने पति की दलीलों को खारिज करते हुए मुस्लिम कानून के सिद्धांतों और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) व CrPC के वैधानिक प्रावधानों पर जोर दिया।
बहुविवाह और भरण-पोषण पर
पति द्वारा अपनी दूसरी शादी की दलील दिए जाने पर, कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत एक विवाह (Monogamy) नियम है और बहुविवाह (Polygamy) एक अपवाद है, जिसकी अनुमति तभी है जब पति सभी पत्नियों के साथ “न्यायपूर्वक” व्यवहार कर सके।
“सभी पत्नियों के साथ न्याय करने का अर्थ केवल प्रेम और स्नेह में समानता नहीं है, बल्कि भरण-पोषण में भी समानता है। इसलिए, एक मुस्लिम पति जिसने अपनी पहली शादी के कायम रहते हुए दूसरी शादी की है, वह यह तर्क नहीं दे सकता कि उसके पास अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए साधन नहीं हैं। यह तथ्य कि पति की दूसरी पत्नी है और वह उसका भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है, पहली पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार करने या उसकी हकदार राशि को कम करने का कारण नहीं हो सकता।”
बेटे का दायित्व बनाम पति की जिम्मेदारी
कोर्ट ने BNSS की धारा 144 (CrPC की धारा 125 के अनुरूप) के तहत व्यवस्था को स्पष्ट किया। जज ने कहा कि पति से भरण-पोषण का दावा करने का पत्नी का अधिकार उसके बच्चों द्वारा उसे बनाए रखने के दायित्व से स्वतंत्र है।
“एक मां अपने पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है, भले ही उसके बच्चे उसका भरण-पोषण कर रहे हों। यह तथ्य कि किसी महिला के बेटे या बेटी के पास पर्याप्त साधन हैं और वे उसे भरण-पोषण प्रदान करते हैं, पति को उसके स्वतंत्र वैधानिक दायित्व से मुक्त नहीं करेगा… कि वह अपनी पत्नी को, यदि उसे आवश्यकता हो, सहारा दे।”
अलग रहने का अधिकार
कोर्ट ने पति के इस तर्क को संबोधित किया कि पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है क्योंकि उसने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया था। हसीना बनाम सुहैब (2025 (1) KHC 543) के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कहा कि दूसरी शादी पहली पत्नी के लिए अलग रहने का एक वैध आधार है।
“पहली पत्नी की सहमति के बिना मुस्लिम पति की दूसरी शादी, पहली पत्नी के लिए उससे अलग रहने का पर्याप्त कारण है। दूसरे शब्दों में, एक मुस्लिम पत्नी जो अपने पति द्वारा दूसरी शादी करने पर उससे अलग रहती है, वह CrPC/BNSS के तहत भरण-पोषण के अपने वैधानिक अधिकार का दावा करने से वंचित नहीं होती है।”
निर्णय
केरल हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों की पुष्टि करते हुए कहा कि पत्नी अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार है, और पति अपने बेटे से भरण-पोषण पाने का हकदार नहीं है। निचली अदालत के फैसलों में “कोई अवैधता या अनुचितता” न पाते हुए, हाईकोर्ट ने दोनों पुनरीक्षण याचिकाओं को खारिज कर दिया।
केस विवरण
- केस टाइटल: वप्पिनु बनाम फातिमा व अन्य
- केस नंबर: RPFC Nos. 398 of 2018 & 366 of 2024
- पीठ: डॉ. जस्टिस कौसर एडप्पागथ
- उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट के. जगदीश; प्रतिवादियों के लिए एडवोकेट सुनील नायर पलक्कट, के.एन. अभिलाष।




