उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में लगातार बढ़ती जंगल की आग की घटनाओं पर गंभीर रुख बनाए रखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय रावत को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अगली सुनवाई में शामिल होकर अपना विशेषज्ञ मत प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी।
यह मामला “In the Matter of Forest Area, Forest Health, and Wildlife Conservation” शीर्षक के तहत स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) जनहित याचिकाओं के माध्यम से चल रहा है। इन याचिकाओं में राज्य के विभिन्न हिस्सों में बढ़ती वनाग्नि की घटनाओं को उजागर किया गया है और आरोप लगाया गया है कि 2016 में जारी निर्देशों के बावजूद सरकार ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठा रही है।
संयुक्त सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने राज्य सरकार को कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए। इनमें शामिल हैं:
- वन विभाग में खाली सभी पदों को छह महीने के भीतर भरना
- ग्राम पंचायतों को वन प्रबंधन में अधिक अधिकार देना
- जंगलों की सालभर निगरानी सुनिश्चित करना
पीठ ने यह भी पूछा कि पर्वतीय भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) कराना संभव है या नहीं।
इससे पहले हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर विस्तृत कार्ययोजना दाखिल करने का निर्देश दिया था। याचिकाओं में कहा गया कि सरकार द्वारा हेलीकॉप्टर से आग पर काबू पाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन यह तरीका अत्यधिक महंगा होने के साथ-साथ पूरी तरह प्रभावी भी नहीं है। इसके बजाय गांव स्तर पर समितियों का गठन कर उन्हें प्रशिक्षित एवं सुसज्जित करना अधिक उपयुक्त और व्यावहारिक समाधान हो सकता है।
अदालत ने यह भी याद दिलाया कि इससे पहले भी ग्राम स्तर पर ऐसी समितियां बनाने और वनाग्नि की रोकथाम के लिए सक्रिय उपाय अपनाने के निर्देश कई बार दिए जा चुके हैं।
प्रो. अजय रावत को विशेषज्ञ के रूप में न्यायालय की सहायता करने का निर्देश मिलने के बाद उम्मीद है कि अगली सुनवाई में अदालत व्यापक नीति की बजाय उसके जमीनी क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित करेगी। मामला अब 28 नवंबर को फिर सूचीबद्ध होगा।




