दिल्ली हाई कोर्ट ने फिल्म ‘120 बहादुर’ के सर्टिफिकेट के खिलाफ याचिका पर सुनवाई 26 नवंबर को तय की

दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को अभिनेता फरहान अख्तर की आगामी फिल्म 120 बहादुर को मिले सेंसर सर्टिफिकेट के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की अगली तारीख 26 नवंबर तय की। याचिका में आरोप लगाया गया है कि फिल्म 1962 के रेज़ांग ला युद्ध के ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है और इसके नाम में बदलाव की मांग की गई है।

मामला मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच के समक्ष सूचीबद्ध था, लेकिन बेंच के न बैठने के कारण सुनवाई अगले सप्ताह के लिए टाल दी गई। मामला पुकारे जाने पर याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई पेश नहीं हुआ।

यह याचिका संयुक्‍त अहीर रेजिमेंट मोर्चा नामक चैरिटेबल ट्रस्ट, उसके एक ट्रस्टी और रेज़ांग ला युद्ध में शहीद हुए कई सैनिकों के परिजनों की ओर से दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि यह युद्ध, जो लद्दाख के चुशूल सेक्टर में 18,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था, रक्षा मंत्रालय के इतिहास प्रभाग द्वारा “सामूहिक वीरता की मिसाल” माना गया है। इस लड़ाई में 120 में से 114 सैनिक शहीद हुए थे।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उस समय की C कंपनी मुख्य रूप से रेवाड़ी और आसपास के क्षेत्रों के अहीर सैनिकों से बनी थी, जिसने चुशूल एयरफ़ील्ड की पहली रक्षा पंक्ति के रूप में अद्वितीय साहस और कर्तव्यनिष्ठा के साथ लड़ाई लड़ी।

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फिल्म में परम वीर चक्र से सम्मानित मेजर शैतान सिंह को दर्शाया गया है, जिन्होंने इस लड़ाई का नेतृत्व किया था। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि फिल्म में मेजर शैतान सिंह को “भाटी” नाम के काल्पनिक चरित्र के रूप में अकेले नायक की तरह दिखाकर पूरी लड़ाई को एकल व्यक्तित्व पर केंद्रित किया गया है, जिससे अन्य अहीर सैनिकों के योगदान और सामूहिक पहचान को नज़रअंदाज़ किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि यह प्रस्तुति “ऐतिहासिक सत्य को विकृत” करती है और अहीर समुदाय की रेजिमेंटल गर्व भावना को चोट पहुंचाती है। इसके साथ ही यह सिनेमैटोग्राफ अधिनियम और सर्टिफिकेशन गाइडलाइंस का भी उल्लंघन है, जो इतिहास को तोड़-मरोड़ कर दिखाने वाली फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगाती हैं।

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याचिका में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 का भी हवाला दिया गया है, जो मृत व्यक्तियों के विरुद्ध ऐसे कथनों को अपराध मानती है जो उनके परिजनों की भावनाओं को आहत कर सकते हैं।

याचिकाकर्ताओं ने सेंसर सर्टिफिकेट और फिल्म की 21 नवंबर को प्रस्तावित रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की है। याचिका में फिल्म का नाम बदलने और एक अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) जोड़ने की भी मांग की गई है, जिसमें रेज़ांग ला युद्ध में अहीर सैनिकों के योगदान को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया जाए।

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ट्रस्ट ने बताया कि इस संबंध में उन्होंने संबंधित अधिकारियों को प्रतिनिधित्व भी भेजा है और अनुरोध किया है कि फिल्म के प्रदर्शन से पहले आवश्यक सुधार किए जाएं।

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