झारखंड हाईकोर्ट ने 61 लम्बित आरक्षित मामलों में से 32 फैसले सुना दिए, शेष एक महीने में आने की उम्मीद: सुप्रीम कोर्ट को जानकारी

सुप्रीम कोर्ट को शुक्रवार को बताया गया कि झारखंड हाईकोर्ट ने उन 61 मामलों में से 32 में फैसला सुना दिया है, जिनमें आदेश छह महीने से अधिक समय से आरक्षित पड़े थे। लंबे समय से लंबित फैसलों, खासकर आपराधिक मामलों में, देरी को लेकर शीर्ष अदालत ने पहले हाईकोर्ट पर कड़ी टिप्पणी की थी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत सिन्हा की प्रस्तुतियों पर ध्यान दिया, जिन्होंने हाईकोर्ट की ओर से बताया कि शेष फैसले एक महीने के भीतर सुना दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की मौखिक संदेशावली हाईकोर्ट के न्यायाधीशों तक पहुंचा दी गई है और वे लंबित निर्णयों पर काम कर रहे हैं।

सिन्हा ने कहा, “अब तक 32 फैसले दे दिए गए हैं और बाकी एक महीने में दे दिए जाएंगे। अदालत का मौखिक संदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को बताया गया है और वे शेष मामलों पर निर्णय देने में लगे हैं।”

पीठ ने कहा कि वह मामले को समग्र रूप से देखेगी और इसे जनवरी के लिए सूचीबद्ध कर दिया, साथ ही लंबित मामलों के साथ टैग कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की निगरानी तब बढ़ी जब यह सामने आया कि झारखंड हाईकोर्ट ने कई मामलों में वर्षों से फैसले नहीं सुनाए थे, जिनमें कुछ ऐसे भी थे जिनमें मृत्युदंड और उम्रकैद की सज़ा शामिल थी। शीर्ष अदालत ने 8 अगस्त को सुझाव दिया था कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश लंबित फैसले लिखने के लिए अपनी स्वीकृत छुट्टियाँ लें।

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सिन्हा ने पहले बताया था कि 31 जनवरी तक ऐसे 61 मामले लंबित थे जिनमें फैसले छह महीने से अधिक समय से आरक्षित थे।

यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक उन याचिकाओं के जरिए पहुँचा था जिन्हें झारखंड के दूरस्थ आदिवासी इलाकों के छात्रों ने दायर किया था। उन्होंने शिकायत की थी कि उनके होमगार्ड भर्ती से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने 2023 से कोई फैसला नहीं सुनाया।

2017 में 1,000 से अधिक पदों के लिए की गई भर्ती को झारखंड सरकार ने बाद में रद्द कर दिया था, जबकि याचिकाकर्ताओं के नाम मेरिट सूची में थे। हाईकोर्ट ने इस मामले की 2021 से सुनवाई की थी और 6 अप्रैल 2023 को फैसला आरक्षित कर लिया था, लेकिन लंबे समय तक कोई निर्णय नहीं आया, जिसके बाद छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।

16 मई को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह 31 जनवरी तक आरक्षित सभी फैसलों की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे, चाहे वे सिविल हों या आपराधिक।

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इसी मुद्दे के दौरान यह भी बताया गया कि 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी गई थी कि हाईकोर्ट ने मृत्युदंड पाए छह कैदियों सहित दस मामलों में एक सप्ताह के भीतर फैसला सुना दिया, जब कैदियों ने अपनी अपीलों में देरी को लेकर शीर्ष अदालत का रुख किया था। उनके वकील फ़ौज़िया शकील ने बताया था कि 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस जारी करने के बाद हाईकोर्ट ने तेज़ी से फैसले सुनाए।

13 मई को, उम्रकैद पाए कैदियों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश “अनावश्यक रूप से ब्रेक ले रहे हैं” और उनके प्रदर्शन का ऑडिट किए जाने की आवश्यकता पर भी बात की थी।

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