‘द बै*ड्स ऑफ बॉलीवुड’ के निर्माता डिस्क्लेमर की आड़ में छिप रहे हैं, व्यंग्य का बचाव पूर्ण नहीं: समीयर वानखेड़े ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा

 आईआरएस अधिकारी समीयर वानखेड़े ने सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अपने मानहानि वाद में कहा कि वेब सीरीज़ “द बैड्स ऑफ बॉलीवुड”* के निर्माता डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) की आड़ में छिप रहे हैं और व्यंग्य का बचाव (defence of satire) किसी भी तरह से पूर्ण या निरपेक्ष नहीं है।

वानखेड़े के वकील ने तर्क दिया कि सीरीज़ में उनके पेशेवर आचरण को लक्ष्य बनाते हुए “स्लाई एप्रोच” (चालाकी भरा तरीका) अपनाया गया है। उन्होंने कहा, “डिस्क्लेमर का कोई मतलब नहीं। असली बात यह है कि लोग इसे कैसे ग्रहण करते हैं। आपने मेरे पेशेवर जीवन पर कटाक्ष किए हैं। व्यंग्य का बचाव निरपेक्ष नहीं हो सकता।”

वानखेड़े के पक्ष में कहा गया कि यह सीरीज़ “दुर्भावना और प्रतिशोध” से प्रेरित है।
“यह बदले की भावना से बनाई गई रचना है, जिसे कल्पना या फिक्शन के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है,” उनके वकील ने कहा।

Video thumbnail

वानखेड़े ने ₹2 करोड़ के हर्जाने की मांग की है, जिसे वे टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल को कैंसर रोगियों के उपचार हेतु दान देना चाहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने अंतरिम राहत के तौर पर कई वेबसाइटों से कथित मानहानिकारक सामग्री हटाने की मांग की है।

READ ALSO  क्या दूसरी शादी के बाद गर्भवती होने पर मातृत्व अवकाश मिलेगा? हाई कोर्ट करेगा तय

मानहानि वाद में रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट प्रा. लि., नेटफ्लिक्स, एक्स कॉर्प (पूर्व में ट्विटर), गूगल एलएलसी, मेटा प्लेटफॉर्म्स, आरपीएसजी लाइफस्टाइल मीडिया प्रा. लि. और कुछ अज्ञात व्यक्तियों (जॉन डो) को प्रतिवादी बनाया गया है।

8 अक्टूबर को जस्टिस पुरषेन्द्र कुमार कौऱव ने सभी प्रतिवादियों को नोटिस और सम्मन जारी करते हुए सात दिनों में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। अदालत ने वानखेड़े, रेड चिलीज़ और नेटफ्लिक्स को लिखित तर्क दाखिल करने के लिए समय भी दिया था।

READ ALSO  अदालत ने  कारावास के बजाय पेड़ लगाने और नमाज का आदेश दिया 

सोमवार की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह प्रश्न उठाया कि कलात्मक स्वतंत्रता की सीमा क्या है, विशेष रूप से तब जब किसी सार्वजनिक अधिकारी की प्रतिष्ठा पर आंच आने का आरोप हो।

रेड चिलीज़ की ओर से तर्क 17 नवंबर को शुरू होंगे।

वानखेड़े ने अपनी याचिका में कहा है कि यह सीरीज़ नशीले पदार्थों से संबंधित प्रवर्तन एजेंसियों की “भ्रामक और नकारात्मक छवि” प्रस्तुत करती है, जिससे जनता का कानून प्रवर्तन संस्थानों पर भरोसा कम होता है। उनका कहना है कि यह सीरीज़ जानबूझकर इस उद्देश्य से बनाई गई है कि उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल किया जा सके, खासकर तब जब आर्यन खान मामले से जुड़ी कार्यवाही अभी बॉम्बे हाईकोर्ट और एनडीपीएस विशेष अदालत, मुंबई में लंबित है।

READ ALSO  वकील द्वारा आकस्मिक शुल्क लेना अवैध है - हाईकोर्ट ने चेक बाउंस का मुक़दमा रद्द किया
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles