भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 28 अक्टूबर, 2025 को यह माना है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) की धारा 528 (जो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के बराबर है) के तहत दायर याचिका, जिसमें घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 (डी.वी. एक्ट) के तहत कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई है, कानूनी रूप से सुनवाई योग्य (maintainable) है।
कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (इंदौर) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने ऐसी याचिका को “सुनवाई योग्य नहीं” (not maintainable) मानते हुए खारिज कर दिया था। मामले को गुण-दोष (merits) के आधार पर नए सिरे से विचार करने के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया गया है।
यह आदेश जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने एक आपराधिक अपील [विशेष अनुमति याचिका (Crl.) संख्या 9534/2025 से उत्पन्न] में पारित किया।
अपील की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ताओं ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 10 दिसंबर, 2024 के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
हाईकोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ताओं ने बीएनएसएस, 2023 की धारा 528 (482 Cr.P.C.) के तहत एक याचिका दायर की थी, जिसमें प्रतिवादी द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई डी.वी. एक्ट की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट ने इस याचिका को “सुनवाई योग्य नहीं” मानते हुए खारिज कर दिया था। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह विशेष अनुमति याचिका दायर की।
कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अक्टूबर, 2025 को अपील की अनुमति दी।
आदेश में यह उल्लेख किया गया कि इस मुद्दे पर कानूनी स्थिति पर पक्षकारों के बीच कोई विवाद नहीं था। आदेश के पैरा 3 में कहा गया है, “पक्षकारों के वकील इस बात पर विवाद नहीं करते हैं कि इस मुद्दे पर कानून शौरभ कुमार त्रिपाठी बनाम विधि रावल¹ मामले में इस कोर्ट के फैसले द्वारा अच्छी तरह से स्थापित है, जिसमें यह माना गया था कि डी.वी. एक्ट की धारा 12(1) से उत्पन्न होने वाली कार्यवाही को चुनौती देने वाली Cr.P.C. की धारा 482 के तहत याचिका सुनवाई योग्य है।”
इस स्थापित मिसाल के आलोक में, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट के विचार को बरकरार नहीं रखा जा सकता।
बेंच ने पैरा 4 में कहा, “इस कोर्ट के उपरोक्त फैसले के मद्देनजर, हाईकोर्ट द्वारा याचिका को सुनवाई योग्य नहीं मानने वाले विचार को कानूनी रूप से बरकरार नहीं रखा जा सकता है।”
नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। आदेश के पैरा 5 में कहा गया है: “हाईकोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित आदेश को रद्द किया जाता है और मामले को गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से विचार के लिए वापस भेजा जाता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों को 11 नवंबर, 2025 को हाईकोर्ट के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया और तदनुसार अपील का निपटारा कर दिया।




