इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक अंतरिम आदेश जारी करते हुए उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) को सहायक अभियोजन अधिकारी (APO) के पद के लिए एक दृष्टिबाधित उम्मीदवार का आवेदन मैनुअल रूप से स्वीकार करने और उसे चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश एक रिट याचिका पर दिया, जिसमें “अंधे” (blind) व्यक्तियों को भर्ती से बाहर रखने को चुनौती दी गई थी। इस भर्ती में उक्त पद को केवल “कम दृष्टि” (low vision) वाले उम्मीदवारों के लिए पहचाना गया था। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने “प्रथम दृष्टया मामला” (prima facie case) स्थापित किया है और “सुविधा का संतुलन” (balance of convenience) उसके पक्ष में है। हालांकि, याचिकाकर्ता की भागीदारी रिट याचिका के अंतिम परिणाम के अधीन होगी।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, मोहम्मद हैदर खान ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका (रिट-सी संख्या 10218/2025) दायर की थी। याचिका में 30 जुलाई, 2021 की एक सूची में क्रम संख्या 21 पर मौजूद उस प्रविष्टि को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें सहायक अभियोजन अधिकारी के पद को दृष्टिबाधितों की व्यापक श्रेणी में केवल “कम दृष्टि” के लिए उपयुक्त के रूप में पहचाना गया था।
याचिकाकर्ता ने 16 सितंबर, 2025 के उस विज्ञापन को भी चुनौती दी, जिसमें एपीओ रिक्तियों के लिए दृष्टिबाधितों हेतु आरक्षित सात रिक्तियों में से चार को विशेष रूप से “कम दृष्टि” उप-श्रेणी के लिए आरक्षित किया गया था, जिससे पूर्णतः दृष्टिबाधित उम्मीदवार बाहर हो गए थे।
याचिकाकर्ता, जो स्वयं दृष्टिबाधित हैं, ने यह घोषित करने की प्रार्थना की कि एपीओ के कार्यों को “उचित समायोजन” (reasonable accommodation) के प्रावधान के साथ दृष्टिबाधित व्यक्तियों द्वारा भी किया जा सकता है। उन्होंने तर्क दिया कि इसलिए वह भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने और आरक्षित रिक्तियों पर विचार किए जाने के हकदार हैं।
प्रस्तुत तर्क
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एस.के. रूंगटा ने दलील दी कि प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा अपनाया गया रुख “विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अल्ट्रा वायर्स (अधिकार क्षेत्र से बाहर)” है। उन्होंने “राज्य सरकार द्वारा अपनाई जा रही पूरी प्रक्रिया को चुनौती दी, जिसमें दृष्टिबाधित दिव्यांग व्यक्तियों को चुनौती के तहत विज्ञापन से पूरी तरह बाहर कर दिया गया है।”
इसके जवाब में, प्रतिवादियों के वकील ने प्रस्तुत किया कि चयन प्रक्रिया में आवेदन करने की अंतिम तिथि 16 अक्टूबर, 2025 को समाप्त हो चुकी है।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और अंतरिम आदेश
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद टिप्पणी की कि “इस मामले पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।” पीठ ने विशेष रूप से माननीय सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले, ‘इन रे: रिक्रूटमेंट ऑफ विजुअली इम्पेयर्ड इन ज्यूडिशियल सर्विसेज (सू मोटो रिट पिटीशन (सी) संख्या 2/2024) दिनांक 3 मार्च, 2025’ का संज्ञान लिया।
याचिकाकर्ता की प्रारंभिक दलीलों में योग्यता पाते हुए, अदालत ने कहा, “उपरोक्त के प्रकाश में, हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता ने प्रथम दृष्टया मामला बनाया है और सुविधा और असुविधा का संतुलन याचिकाकर्ता के पक्ष में है।”
अंतरिम राहत देते हुए, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया, “तदनुसार, हम उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (U.P.P.S.C.) यानी प्रतिवादी संख्या 4 को निर्देश देते हैं कि वे याचिकाकर्ता का आवेदन पत्र मैनुअल रूप से स्वीकार करें और उसे चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दें।”
पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह भागीदारी सशर्त है: “हम यह स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ता का चयन रिट याचिका के परिणाम के अधीन होगा।”
अदालत ने प्रतिवादियों को तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा (counter affidavit) दायर करने का निर्देश दिया है, और उसके बाद एक सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर हलफनामा (rejoinder affidavit) दायर किया जा सकता है। मामले को अगली सुनवाई के लिए 12 जनवरी, 2026 को सूचीबद्ध किया गया है।




