सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी दफ्तरों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम को दी मंजूरी, कहा– कर्मचारियों से परामर्श न करना गैरकानूनी नहीं

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी कार्यालयों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम (BAS) की शुरुआत सभी हितधारकों के हित में की गई है और केवल इसलिए कि कर्मचारियों से पहले परामर्श नहीं लिया गया, यह प्रणाली गैरकानूनी नहीं ठहराई जा सकती।

न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वरले की पीठ ने केंद्र सरकार की उस याचिका को मंजूर कर लिया जो ओडिशा हाईकोर्ट के 21 अगस्त 2014 के फैसले को चुनौती देती थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि कार्यालय में बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लागू करने वाले परिपत्र कर्मचारियों से पूर्व परामर्श के बिना जारी किए गए और यह प्रक्रिया केंद्र सरकार के कार्यालयों के प्रशासनिक नियमों के अनुरूप नहीं थी।

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शीर्ष अदालत ने अपने 29 अक्टूबर के आदेश में कहा:

“जब बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम सभी हितधारकों के लाभ के लिए लागू किया गया है, तो केवल इस आधार पर कि कर्मचारियों से पहले परामर्श नहीं किया गया, इसे अवैध नहीं ठहराया जा सकता।”

ओडिशा के प्रधान महालेखाकार (लेखा एवं व्यय) के कार्यालय में 1 जुलाई 2013 से बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लागू किया गया था। इसके लिए 1 जुलाई, 22 अक्टूबर और 6 नवंबर 2013 को परिपत्र जारी किए गए थे। कर्मचारियों ने पहले इसे केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में चुनौती दी थी, लेकिन वहां उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि यह सेवा शर्तों से संबंधित नहीं है। बाद में कर्मचारियों ने ओडिशा हाईकोर्ट का रुख किया, जिसने उनके पक्ष में फैसला दिया।

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केंद्र सरकार ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। लगभग दस साल बाद जब यह मामला सुनवाई में आया, तो केंद्र ने दलील दी कि कार्यालय प्रशासनिक पुस्तिका में ऐसा कोई नियम नहीं है जो कर्मचारियों से परामर्श को आवश्यक बनाता हो। सरकार की ओर से कहा गया कि यह प्रणाली पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए है और इससे कर्मचारियों के साथ-साथ विभाग को भी लाभ होता है।

सुनवाई के दौरान कर्मचारियों की ओर से भी यह स्वीकार किया गया कि अब उन्हें बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लागू करने पर कोई आपत्ति नहीं है। अदालत ने इसे देखते हुए कहा:

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“जब कर्मचारियों को बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम की शुरुआत पर कोई आपत्ति नहीं है, तो अब कोई विवाद शेष नहीं रहता और विभाग इस प्रणाली को लागू करने के लिए स्वतंत्र है।”

पीठ ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट द्वारा इस मामले की जांच करना “पूरी तरह अनावश्यक” था।

सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए प्रधान महालेखाकार (लेखा एवं व्यय) के कार्यालय को अपने पहले जारी किए गए परिपत्रों के अनुरूप बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम लागू करने की अनुमति दे दी।

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