छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उन होर्डिंग्स को असंवैधानिक मानने से इनकार किया है, जिनमें आठ गाँवों में पादरियों और “धर्मांतरित ईसाइयों” के प्रवेश पर रोक लगाई गई थी। अदालत ने कहा कि ये होर्डिंग जबरन या लालच देकर किए जा रहे धर्मांतरण को रोकने के उद्देश्य से लगाए गए हैं और इन्हें संविधान का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभू दत्त गुरु की खंडपीठ ने कांकेर ज़िले के दिगबल टांडी और बस्तर ज़िले के नरेंद्र भवानी द्वारा दायर दो जनहित याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह आदेश 28 अक्टूबर को पारित किया। अदालत ने कहा कि ये होर्डिंग संबंधित ग्राम सभाओं द्वारा स्थानीय जनजातीय संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए एक एहतियाती कदम के रूप में लगाए गए प्रतीत होते हैं।
याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि पंचायत विभाग ने “हमारी परंपरा हमारी विरासत” नामक शपथ/प्रस्ताव पारित करने का निर्देश जारी किया, जिसके तहत जिलों और ग्राम पंचायतों को कहा गया कि वे पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के गाँव में प्रवेश पर रोक लगाएँ।
उन्होंने बताया कि भानुप्रतापपुर तहसील के घोटिया ग्राम पंचायत ने एक होर्डिंग लगाई थी, जिसमें लिखा था कि यह गाँव पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA Act) के प्रावधान लागू हैं। ग्राम सभा गाँव की पहचान और संस्कृति की रक्षा करने के लिए सक्षम है।
याचिकाओं में कहा गया कि घोटिया, कुदाल, पारवी, जुनवानी, घोटा, हवेचुर, मुसुरपुट्टा और सुलांगी सहित कई गाँवों में ऐसे ही होर्डिंग लगाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि ग्राम सभा का ऐसा प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है, जो धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता वाई.एस. ठाकुर ने कहा कि PESA नियमों के तहत ग्राम सभा को स्थानीय सांस्कृतिक विरासत, देवी-देवताओं के स्थलों, पूजा प्रणालियों, गोठुल और धुमकुड़िया जैसी संस्थाओं और सामाजिक परंपराओं की रक्षा का अधिकार है।
उन्होंने बताया कि इन होर्डिंग्स का उद्देश्य केवल उन बाहरी पादरियों को गाँव में प्रवेश से रोकना था जो जनजातियों का अवैध रूप से लालच या प्रलोभन देकर धर्मांतरण कर रहे थे। ठाकुर ने यह भी कहा कि यदि किसी व्यक्ति को ग्राम सभा के निर्णय से असहमति है, तो वह उपखंड अधिकारी (राजस्व) के समक्ष अपील कर सकता है, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने वैधानिक उपाय अपनाए बिना सीधे हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
अदालत ने कहा, “जबरन धर्मांतरण को लालच या धोखाधड़ी के माध्यम से रोकने के लिए लगाए गए होर्डिंग्स को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।”
खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को पहले वैकल्पिक वैधानिक उपाय अपनाने चाहिए थे। अदालत ने यह भी जोड़ा कि यदि याचिकाकर्ताओं को यह आशंका है कि उन्हें अपने गाँव में प्रवेश से रोका जाएगा या कोई खतरा है, तो वे पुलिस से सुरक्षा की मांग कर सकते हैं।




