अपराध वासना का नहीं, प्रेम का परिणाम था: सुप्रीम कोर्ट ने POCSO अधिनियम के तहत दोषसिद्धि रद्द की, पीड़िता से विवाह के बाद दी राहत

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट (POCSO Act), 2012 की धारा 6 और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 366 के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता ने बाद में पीड़िता से शादी कर ली थी और अब वे एक शिशु के साथ सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे हैं। अदालत ने अपीलकर्ता पर यह सख्त शर्त भी रखी है कि वह जीवन भर अपनी पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करेगा।

मामले की पृष्ठभूमि

Video thumbnail

ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 366 के तहत 5 साल और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। इस सजा के खिलाफ अपील को मद्रास हाईकोर्ट ने 13 सितंबर, 2021 को खारिज कर दिया था।

हाईकोर्ट में अपील लंबित रहने के दौरान ही, मई 2021 में, अपीलकर्ता और “अपराध की पीड़िता” ने विवाह कर लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 6 फरवरी, 2024 को तमिलनाडु राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (TNSLSA) को अपीलकर्ता की पत्नी की भलाई के बारे में पता लगाने का निर्देश दिया। TNSLSA की रिपोर्ट ने पुष्टि की कि “शादी के बाद अपीलकर्ता और उसकी पत्नी को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है, जो एक साल से कम उम्र का है, और वे एक सुखी वैदायिक जीवन जी रहे हैं।”

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त सशस्त्र बल कर्मियों के विरुद्ध अनावश्यक कानूनी लड़ाई के लिए केंद्र की आलोचना की

कोर्ट के समक्ष दलीलें

अपीलकर्ता की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर कहा कि “वह अपीलकर्ता पर निर्भर है और अपने वैवाहिक जीवन में पैदा हुए बच्चे के साथ एक सुखी, सामान्य और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहती है।”

अपीलकर्ता की ओर से “दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक सद्भाव को टूटने से बचाने के लिए” अनुच्छेद 142 के तहत दोषसिद्धि को रद्द करने की प्रार्थना की गई।

बेंच ने पीड़िता के पिता (जो मूल शिकायतकर्ता थे) का पक्ष भी जाना। उन्होंने वर्चुअल मोड के माध्यम से अदालत को बताया कि उन्हें “आपराधिक कार्यवाही समाप्त करने पर कोई आपत्ति नहीं है।”

अदालत का विश्लेषण

जस्टिस दीपांकर दत्ता द्वारा लिखे गए फैसले में, अदालत ने कहा कि “एकमात्र सवाल यह है कि क्या वर्तमान मामले में कार्यवाही को रद्द किया जाना चाहिए, यह देखते हुए कि अपीलकर्ता को एक जघन्य अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है।”

READ ALSO  सिर्फ़ ये बता देना कि पीड़ित कहा छुपा है, ये किसी को विधि विरुद्ध जमाव का हिस्सा नहीं बनता: सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने माना कि “अपराध केवल एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे समाज के खिलाफ एक गलत काम है” और जब कोई अपराध होता है, तो यह “समाज की सामूहिक अंतरात्मा को घायल करता है।”

हालांकि, बेंच ने यह भी देखा कि “कानून का प्रशासन व्यावहारिक वास्तविकताओं से अलग नहीं है।” बेंजामिन कार्डोजो के कथन “कानून का अंतिम उद्देश्य समाज का कल्याण है” का हवाला देते हुए, कोर्ट ने माना कि कानून का उद्देश्य “न केवल दोषी को दंडित करना है, बल्कि सद्भाव और सामाजिक व्यवस्था की बहाली भी है।”

अदालत ने इस मामले में “न्याय, निवारण और पुनर्वास के प्रतिस्पर्धी हितों” को संतुलित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। बेंच ने अपराध की प्रकृति पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की: “पॉक्सो एक्ट के तहत अपीलकर्ता द्वारा किए गए दंडनीय अपराध पर विचार करते हुए, हमने यह समझा है कि यह अपराध वासना का नहीं, बल्कि प्यार का नतीजा था।”

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता को जेल में रखना “इस पारिवारिक इकाई को बाधित करेगा और पीड़िता, नवजात शिशु और स्वयं समाज के ताने-बाने को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा।” अदालत इस बात पर सहमत हुई कि “यह एक ऐसा मामला है जहां कानून को न्याय के लिए झुकना चाहिए।”

READ ALSO  अमित शाह की टिप्पणियों से जुड़े मानहानि मामले में यूपी कोर्ट ने राहुल गांधी को तलब किया

अंतिम निर्णय

इन विचारों के आधार पर और “पूर्ण न्याय करने के हित में,” सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए “अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही, जिसमें दोषसिद्धि और सजा शामिल है, को रद्द करने” का आदेश दिया।

हालांकि, यह राहत एक “विशिष्ट शर्त” के अधीन दी गई है कि अपीलकर्ता “अपनी पत्नी और बच्चे को नहीं छोड़ेगा और जीवन भर उन्हें सम्मान के साथ रखेगा।” कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि भविष्य में अपीलकर्ता की ओर से कोई चूक होती है, तो “परिणाम अपीलकर्ता के लिए बहुत सुखद नहीं हो सकते।”

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि “यह आदेश हमारे सामने आई अनूठी परिस्थितियों में दिया गया है और इसे किसी अन्य मामले के लिए मिसाल (precedent) नहीं माना जाएगा।”

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles