पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने संशोधित (modified) वाहनों के खिलाफ अपने पिछले आदेश का पालन न करने पर पंजाब के चार वरिष्ठ अधिकारियों, जिनमें पुलिस महानिदेशक (DGP) गौरव यादव भी शामिल हैं, पर ₹2 लाख का जुर्माना लगाया है।
न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा ने आदेश दिया कि यह राशि चारों अधिकारियों के वेतन से समान रूप से ₹50,000 प्रति अधिकारी के हिसाब से वसूली जाए और इसे पंजाब मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कराया जाए।
अन्य तीन अधिकारी जिन पर जुर्माना लगाया गया है, वे हैं—आईएएस अधिकारी प्रदीप कुमार (सचिव, परिवहन विभाग), मनीष कुमार (राज्य परिवहन आयुक्त) और जितेन्द्र जोरवाल (उपायुक्त, संगरूर)।
यह कार्रवाई शहीद भगत सिंह मिनी ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन पंजाब बनाम राज्य पंजाब एवं अन्य शीर्षक वाली अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान हुई।
इस याचिका में वर्ष 2023 के उस आदेश की अवहेलना का आरोप लगाया गया था जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के उल्लंघन में सड़कों पर चल रहे संशोधित वाहनों को रोकने के लिए “उचित और प्रभावी कदम” उठाने का निर्देश दिया था।
न्यायालय ने पाया कि कई अवसर दिए जाने के बावजूद अधिकारियों ने न तो अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की और न ही कोई शपथपत्र प्रस्तुत किया।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“इस न्यायालय द्वारा 20.09.2023 के आदेश के अनुपालन हेतु अंतिम अवसर लागत ₹1,00,000 के साथ दिया गया था। न तो अनुपालन शपथपत्र दाखिल किए गए और न ही लागत जमा करने की रसीद अदालत के समक्ष प्रस्तुत की गई।”
न्यायालय ने इसे “स्पष्ट और जानबूझकर की गई अवमानना” बताते हुए कहा कि आदेशों का पालन करने के बजाय अधिकारियों ने दो आवेदन दाखिल किए—एक आदेश में संशोधन हेतु और दूसरा आदेश वापस लेने के लिए।
“इन दोनों आवेदनों में कोई मेरिट नहीं है। अनुपालन शपथपत्र दाखिल करने के बजाय ऐसे आवेदन दाखिल करना न्यायिक प्रक्रिया के प्रति लापरवाह और अवमाननापूर्ण रवैये को दर्शाता है,” आदेश में कहा गया।
न्यायालय ने पंजाब पुलिस और परिवहन विभाग द्वारा दाखिल चालान रिपोर्टों की भी समीक्षा की और उनमें विरोधाभास पाया।
“रिपोर्टों के अवलोकन से स्पष्ट है कि चालान किए गए और जब्त किए गए वाहनों की संख्या में भिन्नता है। यह अधिकारियों की गंभीरता और तत्परता की कमी को दर्शाता है,” कोर्ट ने कहा।
हाईकोर्ट ने इस निरंतर अवमानना को गंभीर मानते हुए अगली सुनवाई की तारीख 27 नवंबर तय की है ताकि यह देखा जा सके कि अधिकारी अदालत के आदेशों का पालन करते हैं या नहीं।




