सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) और सूचना आयुक्तों (Information Commissioners) के पदों के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के नाम सार्वजनिक करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की पीठ ने हालांकि झारखंड और हिमाचल प्रदेश सहित सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने राज्य सूचना आयोगों में लंबित रिक्तियों को तुरंत भरें।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, याचिकाकर्ता अंजलि भारद्वाज और अन्य की ओर से पेश हुए। उन्होंने अदालत से कहा कि सरकार “सूचना का अधिकार अधिनियम को समाप्त करने की कोशिश कर रही है” क्योंकि केंद्र और राज्य सूचना आयोग लंबे समय से लगभग निष्क्रिय हैं।
भूषण ने बताया कि वर्तमान में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के पास कोई प्रमुख नहीं है और 10 में से 8 सूचना आयुक्तों के पद रिक्त हैं, जिससे आयोग पर करीब 30,000 मामलों का लंबित बोझ है।
उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के नाम सार्वजनिक किए जाएं ताकि जनता यह जान सके कि क्या सही और योग्य लोगों का चयन किया जा रहा है।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने अदालत को बताया कि चयन समिति ने पहले ही कुछ नाम शॉर्टलिस्ट कर लिए हैं और उन्हें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली पैनल के पास भेजा गया है।
उन्होंने कहा कि यह पैनल अगले दो से तीन सप्ताह में चयन प्रक्रिया पूरी कर लेगा, इसलिए अदालत से कोई अतिरिक्त निर्देश जारी न करने का अनुरोध किया।
पीठ ने नामों के प्रकटीकरण के लिए कोई आदेश जारी करने से इनकार किया, लेकिन केंद्र और सभी राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सूचना आयोगों में सभी रिक्तियां शीघ्र भरी जाएं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “हम इस मामले को निपटा नहीं रहे हैं, बल्कि हर दो सप्ताह में सुनवाई करेंगे ताकि अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।”
झारखंड सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरुणाभ चौधरी ने अदालत को बताया कि विधानसभा में विपक्ष के नेता के अभाव के कारण प्रक्रिया में देरी हुई थी, लेकिन अब प्रक्रिया शुरू हो गई है और सभी रिक्त पद शीघ्र भरे जाएंगे।
केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों में नियुक्तियों में देरी का मुद्दा पिछले कई वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
7 जनवरी को शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि सभी रिक्तियां तुरंत भरी जाएं और यह भी टिप्पणी की थी कि केवल नौकरशाहों की नियुक्ति उचित नहीं है; आयोगों में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ और प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए थे कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति समयबद्ध तरीके से की जाए और चयन समिति के सदस्यों के नाम वेबसाइट पर सार्वजनिक किए जाएं।
इसके बावजूद झारखंड, त्रिपुरा और तेलंगाना जैसे राज्यों में सूचना आयोग लगभग निष्क्रिय हैं क्योंकि कोई आयुक्त नियुक्त नहीं है।
अब यह मामला दो सप्ताह बाद फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा।




